तैयार हों लक्ष्मी पूजन के लिए

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कोजागरा/लक्ष्मी पूजा पर विशेष


आश्विन शुक्ल पूर्णिमा कोजागरा (लक्ष्मी पूजा) के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भक्तिपूर्वक विधि-विधान से की गई मां लक्ष्मी की पूजा का भक्तों को भरपूर फल मिलता है। इस दिन की पूजा में एक खास बात यह भी है कि माता के लक्ष्मी के साथ ऐरावत पर सवार देवराज इंद्र की भी उपासना की जाती है। मिथिलांचल में यह काफी प्रचलित है। 

लक्ष्मी-इंद्र की पूजा

मान्यता के अनुसार माता लक्ष्मी और देवराज इंद्र की सुबह विधिपूर्वक पंचोपचार या षोडषोपचार पूजन कर उपवास रखा जाए। देर शाम या रात्रि में (मुहुर्त के अनुसार) पुन: लक्ष्मी पूजन किया जाए। इस दौरान कम से कम ग्यारह (उसी अनुपात में अपने सामर्थ्य के अनुसार 101, 1101, 11001 आदि) घी के दीप जलाकर अपने घर में पूजा स्थान, छत, तुलसी का पौधा, आसपास के क्षेत्र, चौराहा, गली, देव मंदिर आदि में रखें और रात्रि जागरण कर प्रात:कल स्नान कर इंद्र-लक्ष्मी का पूजन करें। इसके बाद ब्राह्मणों को घी-शक्कर मिली खीर का भोजन कराकर दक्षिणा दे संतुष्ट कर अनंत फल प्राप्त करें। माता लक्ष्मी को मखाना, नारियल, पान पत्ता, फूल (सर्वश्रेष्ठ—कमल नहीं तो लाल गुलाब) पसंद है। अत: संभव हो तो उनके पूजन में इन सामग्रियों को अवश्य रखें। यह भी ध्यान रहे कि इस पूरी प्रक्रिया में रात्रि जागरण और प्रकाश का बहुत महत्व है। अत: उपासक दोनों के प्रति सजग और जागरूक रहें।

मंत्र जप के लिए उपयुक्त समय कुछ इलाकों में मान्यता है कि खीर बनाकर रात भर खुली चांदनी में छोड़कर सुबह सपरिवार प्रसाद रूप में उसे ग्रहण किया जाए। इस तरह करना परिवार की सुख, शांति और समृद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी माना जाता है। यह अवसर गंभीर साधकों या भौतिक लक्ष्य की इच्छा रखकर साधना करने वालों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन किसी मंत्र को कम संख्या में जपकर भी अधिक फल की प्राप्ति की जा सकती है। लक्ष्मी के मंत्रों को सिद्ध करने तथा धनवान बनने के लिए भी यह समय अत्यंत शुभ होता है। चाहें कि तो इस दिन किसी मंत्र को शुरू कर दीपावली के दिन उसकी पूर्णाहूति कर सकें तो ज्यादा लाभदाय होगा। इससे निश्चय ही माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी। बेहतर होगा कि जपे गए मंत्र का दशांश हवन कर लें।

हवन सामग्री

लक्ष्मी के मंत्रों के लिए हवन सामग्री में त्रिमधु (घी, मधु और चीनी) अत्यंत लाभकारी होता है। ऐसी सामग्री की बाजार में उपलब्धता थोड़ी कठिन होगी। अत: बेहतर होगा कि बाजार से तैयार हवन सामग्री खरीदकर उसमें तीनों वस्तु घर में ही मिला लें।

नीचे लक्ष्मी के कुछ उपयोगी और शीघ्र फायदा देने वाले कुछ मंत्रों की संक्षिप्त विधि की जानकारी दी जा रही है। आप चाहें तो इनमें से किसी भी मंत्र को कोजागरा से इसे शुरू कर सकते हैं। यदि साधना के लिए ज्यादा समय न हो तो कोजागरा के दिन और रात मिलाकर अधिक से अधिक संख्या में (पहले से ही तय कर लें) जप कर दशांश हवन करना भी कल्याणकारी होता है। निश्चय ही माता लक्ष्मी की कृपा मिलेगी।

लक्ष्मी देवी के कुछ प्रमुख मंत्र

  1. श्रीं—- इस मंत्र का 12 लाख जप करना उपयुक्त माना जाता है। जप करके घी, मधु, शर्करायुक्त रद्म तिल एवं बिल्व पत्र से दशांश हवन करना चाहिए। जीवन भर धन की कमी नहीं रहेगी। माता हमेशा आपके भंडार में बनी रहेंगी। आपका हाथ कभी खाली नहीं रहेगा।
  2. 2. श्रीं श्रीये नम: मह्यं श्रीयं देहि देहि दापय दापय स्वाहा——- आठ दिन एक माला करें तो धन प्राप्ति का योग अवश्य बनेगा। यथाशक्ति जप संख्या बढ़ा भी सकते हैं। दशांश हवन कर लें तो और अच्छा रहेगा।
  3. . ऊं ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: जगत्प्रसूत्यै नम:—- कोजागरा से दीपावली के 15 दिन में एक लाख जप करें। दशांश कुबेर मंत्र ( ऊं वैश्रवणाय स्वाहा) करें। इसके साथ ही मूल मंत्र का दशांश तिल, बिल्वपत्र, खीर एवं तिलाज्य से हवन भी करें। साधक को निश्चय धन-धान्य की प्रचूरता रहेगी। वटवृक्ष की लकड़ी से कुबेर के लिए हवन करने पर कभी अन्न व संपदा की कमी नहीं रहती है।  

लक्ष्मी द्वादशनामानि स्तोत्र

त्रैलोक्य पूजिते देवि कमले विष्णुवल्लभे। यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा।।
ईश्वरी कमला लक्ष्मीश्चला भूतिर्हरिप्रिया। पद्मा  पद्मलया  स्मपदुच्चै:  श्री  पद्मधारिणी।।
द्वदशैतानि नामानि लक्ष्मीं सम्पूज्य य: पठेत्। श्थिरा लक्ष्मीर्भवेत्तस्य पुत्रदारादिभि: सह।।

नोट – स्तोत्र में ही इसका महत्व वर्णित है। फिर भी पाठकों की सुविधा के लिए कुछ अतिरिक्त जानकारी देना चाहता हूं। यदि धन संबंधी कोई संकट हो तो इस स्तोत्र का 108 बार पाठ अत्यंत कल्याणकारी होता है। यदि संकट गंभीर हो तो 1008 बार पाठ कर लें। संकट समाप्त होने तक प्रतिदिन निश्चित संख्या में इसका पाठ करते रहने पर कभी आर्थिक संकट आपको छू भी नहीं सकेगा। कोजागरा के दिन इसे करना लाभकारी होता है। 

पूजन का अनुकूल समय

लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे उपयुक्त समय पूर्णिमा काल से माना जाता है। लेकिन भारतीय परंपरा में तिथि की गणना सूर्योदय से और लक्ष्मी पूजन का समय सूर्यास्त से देखा जाता है। सूर्यास्त के बाद का समय लक्ष्मी पूजन के लिए उपयुक्त होता है। अत: उसी हिसाब से मुहुर्त निकाला जाता है। 

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