मंत्र और योग के जनक हैं शिव, वही सत्य और सुंदर हैं

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भगवान शिव का तीन अंक से संबंध का रहस्य
भगवान शिव का तीन अंक से संबंध का रहस्य।

 Shiva is the father of mantra and yoga : मंत्र और योग के जनक हैं शिव। वही सत्य और सुंदर हैं। शिव ही सभी तरह के ज्ञान-विज्ञान के जनक हैं। चाहे योग हो या ध्यान या फिर मंत्रों की दुनिया। शिव हर क्षेत्र में बेजोड़ हैं। योग की सभी मुद्राएं शिव की ही देन है। आज भी योग की जितनी भी विधाएं हैं, चाहे वह पातंजलि का योग दर्शन हो या फिर बुद्ध का योग से संदर्भित अष्टांगिक मार्ग, सभी का आधार शिव योग सूत्र ही है। शिव ही परम योगी हैं। वे ही योग के उपद्रष्टा, विवेचक और उत्पन्नकर्ता हैं। आज पूरी दुनिया एक बार फिर उसी योग दर्शन की ओर अग्रसर है। उसके जरिए पहले लोग निरोग व चिरायु जीवन का आनंद लेते थे।

सत्यम शिवम सुंदरम

सत्यम्, शिवम्,  सुंदरम। अर्थात जो सत्य है वही ब्रह्म है। ब्रह्म अर्थात परमात्मा। जो शिव है वही परम शुभ है व पवित्र है। और जो सुंदर है वही प्रकृति है। अर्थात परमात्मा, शिव और पार्वती के अलावा कुछ भी जानने योग्य नहीं है। इन्हें जानना और इन्हीं में लीन हो जाने का मार्ग है योग। शिव कहते हैं कि मनुष्य पशु है। इसी पशुता को समझना ही योग और तंत्र का प्रारंभ है। योग में मोक्ष या परमात्मा की प्राप्ति के तीन मार्ग हैं। यें हैं- जागरण, अध्ययन और समर्पण। शिव परम तत्व या सत्य को जानने के मार्ग योग के बारे में माता पार्वती को अमरनाथ की पवित्र गुफा में बताया। वह ज्ञान बहुत ही गूढ़, गंभीर और रहस्यमय था। उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो गईं हैं। वह ज्ञान योग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। उसे पूरी तरह जान लेने वाले के लिए कुछ भी असाध्य नहीं हैं। वह अमरत्व को प्राप्त हो जाता है।

वैदिक काल के रूद्र को पुराण में शंकर हो गए

 मंत्र और योग के माध्यम से मनचाहा जीवन जी सकते हैं। विज्ञान भैरव तंत्र में भगवान शिव द्वारा बताए 112 ध्यान सूत्र हैं। इसके साथ शिव संहिता में उनकी शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। शिव के योग को तंत्र का वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग भी है। शिव को आदि देव और आदिनाथ भी कहा गया है। वैदिक काल के रुद्र का स्वरूप पौराणिक काल में पूरी तरह बदल गया। वेद जिन्हें रूद्र कहते हैं, पुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं। शिव का न तो प्रारंभ है और न अंत। उन्हें स्वयंभू इसलिए कहा जाता है कि वे आदि देव हैं। जब धरती पर कुछ नहीं था, सिर्फ वही थे। उनका दर्शन कहता है कि यथार्थ में जीओ। वर्तमान में जीओ। अपनी चिंता वृत्तियों से मत लड़ो। उन्हें अजनबी बन कर देखो। कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो।

धरणा, ध्यान व समाधि योग के मुख्य अवयव

शिव ही मंत्र और योग के जनक हैं। उन्होंने धारणा, ध्यान और समाधि को ही योग के मुख्य अवयव बताए हैं। उन्होंने कहा कि साधक को भूल कर भी सिद्धियों के प्रलोभन में नहीं पड़ना चाहिए। धन, यौवन और सत्ता ये तीनों अनर्थकारी हैं। इनका सदुपयोग किया जाए तो बड़ा सुखदायी भी हैं। बुद्धि के साथ एकाकार करके भगवान के विषय में सोचो तो यह हुआ बुद्धि का योग। मन के साथ एकाकार करके परमात्मा का साकार स्वरूप का चिंतन और उसमें प्रीति करो, तो यह हुआ भक्ति योग। संसार और इंद्रियों के साथ एकता करके जो कार्य किया जाए, वह है कर्मयोग। आज जो लोग योग की मुद्राएं करते हैं, वे व्यावहारिक रूप से इन्हीं तीनों सूत्रों के अंग हैं। योग मानसिक, आध्यात्मिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से भी मानव की समृद्धि का कारक है।

प्रस्तुति : डॉ. राजीव रंजन ठाकुर

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