महानवमी का महात्म्य

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अधिकतर लोग यही जानते हैं आश्विन शुक्ल नवमी का महत्व दुर्गा पूजा के दौरान महानवमी के रूप में है और यह दिन माता की उपासना ;इसके बारे में पहले के लेख में स्पष्ट किया जा चुका हैद्ध के लिए अत्यंत उपयोगी होता है। यह सही भी है और अधिकतर लोग इसी तरह से इस दिन को मनाते हैं लेकिन कम लोग इसके अन्य महत्व तरीके और इस दौरान और क्या.क्या कर सकते हैं के बारे में जानते हैं। ऐसे अनजान लोगों के लिए इस दिन की महत्ता के बारे में संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूं। ध्यान रहे कि इसका मकसद इस दिन को लेकर प्रचलित विभिन्न विधि.विधान से सुधि पाठकों को अवगत कराना है। आप जिस विधि से पूजन कर रहे होंए नि:संकोच करते हैंए उसी से आपको फल भी प्राप्त होगा।
1.नवमी के दिन व्रत और पूजन का समापन करने वाले अधिकतर भक्तजन सुबह की पूजा के समय ही सारे काम खत्म कर व्रत का भी समापन करते हैं। सामान्य भक्तों के लिए यह ठीक भी है लेकिन ध्यान रखें कि नवरात्र के दौरान व्रतए पूजा और उपासना के लिए सप्तमीए अष्टमी और नवमी सर्वाधिक उपयोगी है। अत: विशेष शक्ति या फल की कामना करने वाले कई साधक नवमी को भी सप्तमी व अष्टमी की तरह विशेष पूजनए मंत्र जप आदि कर दशांश हवन करते हैं। ऐसे लोग अपराह्न या शाम को ही ब्राह्मण व कुमारी भोजन आदि कराकर यथाशक्ति दान देते हैं। शाम को दीप जलने के बाद बंधु.बांधवों के साथ भोजन कर व्रत का समापन करते हैं।
2.हेमाद्री और देवी भागवत के अनुसार इस दिन सुबह उठते ही स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो के समक्ष खड़े होकर दृ उपेध्य नवमीं त्वद्य यामेष्वष्टसु चंडिके। तेन प्रीता भव त्वं भो: संसारात् त्राहि मां सदा। . मंत्र से प्रार्थना करें। इसके बाद माता की पूजा करें और यथाशक्ति भोग लगाएं। यदि नवमी के दिन मूल पूर्वा और उत्तराका का योग बने तो यह दिन महान अवसर वाला हो जाता है। इस दिन जितना ज्यादा से ज्यादा पूजा मंत्र जप आदि संभव हो करें। यह महान फल प्रदान करने वाला योग है।
3.भद्रकाली व्रत रू विष्णु धर्मोत्तर के अनुसार आश्विन शुक्ल नवमी के दिन अपने घर ;जहां भी रह रहे होंद्ध के पूर्व भाग में भद्रकाली की स्थापना कर दिन भर व्रत रखें और गंध.पुष्प आदि से माता का पूजन करें।
4.रथनवमी रू भविष्य पुराण के अनुसार आश्विन शुक्ल नवमी के दिन नवीन रथ में आसन बिछाकर महिषासुर का वध करने वाली माता का महिष पर ही आरूढ़ स्वनिर्मित मूर्ति स्थापित कर पूजन करें। इसके बाद रथ को सड़कों पर घुमाते हुए यथास्थान ले आएं और पुन: माता का पूजन करें।
4.शौर्य व्रत रू ब्रह्मपुराण में ऐसे साधकों के लिए व्रत व पूजन की विधि बताई गई है जो नवरात्र के नौ दिन व्रत.पूजन कर पाने में सक्षम नहीं हैं। उन्हें सप्तमी को तीन दिन ;सप्तमीए अष्टमी और नवमीद्ध के लिए व्रत.उपासना का संकल्प लेना चाहिए। अष्टमी को पूरी तरह से उपवास रखें और नवमी को माता का पूजन.उपासना कर दृ दुर्गा देवीं महामायां महाभागां महाप्रभाम्।दृ से प्रार्थना कर ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराएं और दिन भर स्वयं पीसे हुए सत्तू को लेते हुए व्रत रखें। अपनी इच्छा व भक्ति के अनुसार नवमी की शाम या दशमी को विसर्जन के उपरांत व्रत समाप्त कर सकते हैं।
नवरात्र के दौरान कुछ साधक शतचंडी ;अर्थात. नवरात्र के दौरान दुर्गा सप्तशती का सौ पाठद्ध पाठ भी करते हैं। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में ऐसा करना अत्यंत कठिन है लेकिन करने वाले कर ही रहे हैं। इसका महान फल है और कठिन से कठिन कार्य सिद्ध करने वाला है। इसके लिए साधकों को नवरात्र से पहले ही आसन.ध्यान.पाठ आदि को सिद्ध करने का लगातार अभ्यास करना चाहिए। इसके साथ ही पहले ही प्रतिदिन किए जाने वाले पाठ.पूजन आदि का रूटीन बना लें। फिर प्रतिदिन कब और किस तरह से कितने पाठ करने हैंए उसे तय कर पूरी ताकत से जुट जाएं। ध्यान रहे कि इतने बड़े आयोजन को करने के लिए यमए नियमए आसनए ब्रह्मचर्यए सात्विक भोजन आदि का सख्ती से पालन करें। मां भगवती आपकी सहायता अवश्य करेंगी।

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