शारदीय नवरात्र : शक्ति पाने व मनोकामना पूर्ण करने का अवसर

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शारदीय नवरात्र : शक्ति साधना व मनोकामना पूर्ण करने का सबसे अच्छा अवसर है। इस समय प्रकृति का दृश्य मनोरम होता है। कण-कण में ऊर्जा भरी रहती है। इसलिए जहां साधक इसमें शक्ति संचय करते हैं। मनोकामना के लिए पूजा करने का भी यह शानदार मौका होता है। यह नवरात्रि नव दिनों का संयोग है। इसमें नौ द्वार, नौ ग्रह, नौ धातु एवं नौ विष को नियंत्रित करने वाली नौ देवियों का पूजन होता है। महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती का संगम है। उन्हें ही नवदुर्गा कहा जाता है। मार्कण्डेय पुराण में इसमें विस्तार से लिखा है। महर्षि बाल्मीकि ने लिखा है कि राम ने शारदीय नवरात्र में पूजन किया था। उनकी मनोकामना रावण पर विजय प्राप्ति थी। वे सफल हुए। तब से असत्य व अधर्म पर सत्य की जीत के रूप में इसे मनाया जाने लगा।
माता का वाहन सिंह है। माता समस्त मनोकामना को पूर्ण करने वाली है। पूजन के दौरान प्रथम तीन दिनों तक माता दुर्गा की पूजा की जाती है। इससे ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है।
चौथे से छठे दिन तक माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।यह सुख, शांति समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की देवी है। सातवें आठवें दिन माता सरस्वती की पूजा की जाती है। इससे ज्ञान और बुद्धि का संचार होता है। इसे माता के द्वारा महिसासुर वध के रूप में भी मनाया जाता है।
ऋषकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार 10 अक्टूबर को प्रतिपदा सुबह 7 : 53 तक है। इससे पूर्व ही कलश स्थापना कर लेना चाहिये। इसके बाद चित्रा नक्षत्र और बैधृति योग होने से कलश स्थापना निषिद्ध है। इसलिए पुनः अभिजीत मुहूर्त में दिन के 11 : 27 से 12 : 23 के बीच मे किया जा सकता है।
माता की आगमन और विदाई
शशि सूर्ये गजा रुढा, शनि भोमे तुरंगमे।
गुरू शुक्रे च दालायं, बुधे नौका प्रकीर्तिताः।।

इस वर्ष नवरात्र बुधवार को आरंभ हो रहा है इसलिये माता दुर्गा का आगमन नौका पर है, वहीं विदाई हाथी पर है जो कुछ लाभ-हानि को दर्शाता है। वर्षा अच्छी होगी पर कृषि कार्य में हानि होगी। महंगाई और धार्मिक उन्माद का भारत में वर्चस्व बढ़ेगा।
विजयादशमी
नवरात्र के दसवें दिन विजयादशमी पर्व मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन लंकापति रावण के अत्यचार से भगवान राम ने सभी देवी-देवताओं को मुक्त करवाया था। रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था । तब श्री राम ने लक्ष्मण और हनुमान के साथ मिल कर रावण के साथ घोर युद्ध किया । इसी बीच भगवान राम ने शक्ति के रूप में माता की पूजा की थी। इसी दौरान भगवान राम ने दशमी को दस सिरों वाले रावण का वध किया था। तब से प्रत्येक वर्ष दशमी के दिन को रावण रूपी बुराई को जलाने की परंपरा है। अर्थात असत्य पर सत्य की विजय का पर्व मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार महिषासुर को भगवान का वरदान था कि उसे कोई पुरुष वध नहीं सकता है। उस असुर का अत्याचार तीनों लोकों में था सभी मानव-देवता त्राहिमाम कर रहे थे। तब जाकर सभी देवी-देवताओं ने अपनी-अपनी अपनी शक्ति प्रकट कर एक किया और उस महाशक्ति रूपी माता दुर्गा का अवतरण हुआ और माता ने उस राक्षस का वध किया।

दशमी तिथि

ऋषिकेश पंचांग के अनुसार दशमी तिथि 18 अक्टूबर को रात्रि 2 : 32 में प्रवेश कर रहा है। वहीं यह 19 की रात्रि 4: 39 तक रहेगा।
इस बीच पड़ने वाला विजय मुहूर्त दोपहर 1 :58 से दिन में 2 : 43 तक है। अपराह्न पूजन का समय 1 : 13 से 3: 28 तक है।

आज के दिन शमी पूजन और अपराजिता का पूजन का विशेष महत्व है। नीलकंठ का दर्शन भी शुभ माना गया है। रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र और राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
ऐसी मान्यता है कि आज के दिन दसों दिशा खुला रहता है। कोई भी कार्य आज किया जाय तो उसका पूर्ण फल प्राप्त होता है।
आज पान खाने और अपने से बड़ों-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने चाहिए

आचार्य प्रणव मिश्र
आचार्यकुलम, अरगोड़ा राँची
9031249105

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