श्रीकृष्ण ने की थी सरस्वती की पहली पूजा

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मां सरस्वती की उत्पत्ति ही मानव के कल्याण और उसके जीवन में रस घोलने के लिए हुई है। जाहिर है कि इसलिए वह मानवों के इस पृथ्वी पर आने के बाद ही धरा पर अवतरित हुईं। मनुष्य में हर तरह के ज्ञान-विज्ञान, स्वर, शब्द, नाद आदि की रचना उन्होंने ही की है। अतः हर तरह के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उनकी उपासना अत्यंत उपयोगी होती है। यही कारण है कि शिक्षण संस्थाओं में वसंत पंचमी बड़े की धूमधाम से मनाई जाती है। शिक्षा ही मनुष्य को पशुओं से अलग बनाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करने के बाद मनुष्य की रचना की। मनुष्य की रचना के बाद उन्होंने अनुभव किया कि केवल इससे ही सृष्टि की गति नहीं दी जा सकती है क्योंकि सब कुछ सूना-सूना, सुस्त और बेजान सा लग रहा था। तब उन्होंने भगवान विष्णु से मंत्रणा की और उनकी सहमति उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना की, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। शब्द के माधुर्य और रस से युक्त होने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा। सरस्वती ने जब अपनी वीणा को झंकृत किया, तो समस्त सृष्टि में नाद की पहली अनुगूंज हुई। चूंकि सरस्वती का अवतरण माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
एक कथा यह भी है कि ब्रह्मा जी ने सरस्वती देवी की रचना की और उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया। माता सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ, उससे साशब्द फूट पड़ा। यह शब्द संगीत के सात सुरों में प्रथम सुर है। इस ध्वनि से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा। हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों और अन्य जीवों को वाणी मिल गयी। नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी। इससे ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए वागेश्वरीनाम दिया।
वसंत पंचमी के दिन न सिर्फ विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है बल्कि इसी दिन बच्चों को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है, ताकि उस पर मां सरस्वती की कृपा बनी रहे। सबसे प्रचलित स्तुति है…
सरस्वती महामायी विद्या कमल लोचनी।
विश्वरूपी विशालाक्षी, विद्याम्देहि परमेश्वरी।।
इस दिन रति और कामदेव की पूजा भी की जाती है। इस दिन पहनावा भी परंपरागत होता है। मसलन पुरुष कुर्ता-पायजामा पहनते हैं, तो महिलाएं पीले रंग के कपड़े पहनती हैं। इस दिन गायन-वादन के साथ अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
श्रीकृष्ण ने की सरस्वती की प्रथम पूजा : माता सरस्वती की सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण ने ही की है। प्रचलित कथा के अनुसार माता सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा, तो उनके रूप पर मोहित हो गईं और पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं। भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं, परंतु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण ने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाला माघ मास की शुक्ल पंचमी को तुम्हारा पूजन करेगा। यह वरदान देने के बाद स्वयं श्रीकृष्ण ने पहले देवी की पूजा की।
शक्ति के रूप में भी मां सरस्वती : मत्स्यपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, मार्कण्डेयपुराण, स्कंदपुराण तथा अन्य ग्रंथों में भी देवी सरस्वती की महिमा का वर्णन किया गया है। इन धर्मग्रंथों में देवी सरस्वती को सतरूपा, शारदा, वीणापाणि, वाग्देवी, भारती, प्रज्ञापारमिता, वागीश्वरी तथा हंसवाहिनी आदि नामों से संबोधित किया गया है। ‘दुर्गा सप्तशती’ में मां आदिशक्ति के महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूपों का वर्णन और महात्म्य बताया गया है।
कुंभकर्ण की निद्रा का कारण बनीं सरस्वती : कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए, तो देवों ने निवेदन किया कि आप इसको वर तो दे रहे हैं, लेकिन यह आसुरी प्रवृत्ति का है और अपने ज्ञान और शक्ति का कभी भी दुरुपयोग कर सकता है। तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा- मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है.इस तरह त्रेता युग में कुंभकर्ण सोता ही रहा और जब जागा तो भगवान श्रीराम उसकी मुक्ति का कारण बने।

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