अपना भाग्य खुद बनाएं

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असफलता, बाधाएं और चुनौतियों बनाती हैं व्यक्ति को महान

मनुष्य में वह क्षमता है कि वह अपना भाग्य खुद निर्मित कर सकता है। दुर्भाग्य से अधिकतर लोग इस राज से अंजान रहते हैं और अक्सर दुख व असफलता का सामना होने पर हाथ पर हाथ धरे बैठे भाग्य को कोसते रहते हैं। आप ऐसे लोगों को अक्सर कहते सुन सकते हैं- “क्या करें, हमारे भाग्य में ही ऐसा लिखा है, हमें ऐसी ही बुरी स्थिति में रहना पड़ेगा। यदि हमारे भाग्य में सफलता लिखी होती तो अब तक के प्रयत्न असफल क्यों होते?” ऐसे अदूरदर्शी मनुष्य भाग्यवाद के गूढ़ सिद्धांतों को नहीं समझते और न यह समझते हैं कि इस तरह की मान्यता बना लेने के कारण वे किस प्रकार अपने भविष्य के निर्माण में भारी बाधा उपस्थित कर रहे हैं। ऐसे लोग मार्ग की बाधाओं का मुकाबला नहीं कर सकते। बल्कि उसके सामने घुटने टेक कर उसे स्वीकार कर लेते हैं।


सफलता की देवी को प्रसन्न करने के लिए कर्म और पुरुषार्थ की भेंट चढ़ानी ही पड़ती है। मनचाहे लक्ष्य को पाने के लिए कड़े परिश्रम (कर्म) की आहूति देनी पड़ती है। जो मनुष्य पुरुषार्थी नहीं है, प्रयत्न और परिश्रम में दृढ़ता नहीं रखता, वह स्थायी सफलता का अधिकारी नहीं हो सकता। यदि अनायास किसी प्रकार कोई संपत्ति और सफलता उसे प्राप्त हो भी जाये तो वह उससे संतोषजनक लाभ नहीं उठा सकता। अनायास आई संपत्ति और सफलता वह ऐसे ही अनायास चली जाती है जैसे कि आई थी।


रोटी का असली स्वाद वही जानता है जिसने परिश्रम करने के पश्चात् भूख लगने पर ग्रास तोड़ा हो। धन का उपयोग वह जानता है जिसने पसीना बहाकर कमाया हो। सफलता का मूल्यांकन वही कर सकता है जिसने अनेक कठिनाइयों, बाधाओं और असफलताओं से संघर्ष किया हो। जो विपरीत परिस्थितियों और बाधाओं के बीच मुस्कराते रहना और हर असफलता के बाद दूने उत्साह से आगे बढऩा जानता है। वस्तुत: वही विजयलक्ष्मी और सफलता का अधिकारी होता है। सफलता उसी का वरण करती है।


जो लोग सफलता के मार्ग में आने वाली बाधाओं और विलंब से मुक्ति की धैयपूर्वक प्रतीक्षा नहीं कर सकते, जो लोग अभीष्ट प्राप्ति के पथ में आने वाली बाधाओं से लड़ना नहीं जानते हैं वे ही अपनी अयोग्यता और ओछेपन को बेचारे भाग्य के ऊपर थोप कर स्वयं निर्दोष बनने का उपहासास्पद प्रयत्न करते हैं। ऐसी आत्मवंचना से लाभ कुछ नहीं हानि अपार है। सबसे बड़ी हानि यह है कि अपने को अभागा मानने वाला मनुष्य आशा के प्रकाश से हाथ धो बैठता है और निराशा के अंधकार में भटकते रहने के कारण लक्ष्य की प्राप्ति से कोसों पीछे रह जाता है।


इतिहास गवाह है कि जिन महापुरुषों ने बड़े-बड़े कार्य किये हैं उन्होंने एक से एक बढ़कर आपत्तियों को झेला है। यदि वे हर एक कठिनाई के समय ऐसा सोचते कि “हमारे भाग्य में यदि सफलता बंधी होती तो यह बाधा क्यों उपस्थित होती, इसलिए जब कोई बात भाग्य में ही नहीं है तो प्रयत्न क्यों करें?” विचार कीजिए कि ऐसी मान्यता यदि उन्होंने रखी होती तो क्या वे इतने महान बने होते? क्या उन्हें सफलता मिली होती? विश्वमित्र, वशिष्ठ, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध से लेकर महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस तक को देखें, उन्होंने जबर्दस्त कठिनाइयों और बाधाओं से मुकाबला किया और युग पुरुष कहलाए। यदि उन्होंने अपने समकालीन लोगों की तरह ऐशो-आराम की जिंदगी बिताई होती तो उन्हीं की तरह गुमनामी में खो गए होते।


बाधाएं, कठिनाइयां, आपत्तियां और असफलताएं एक प्रकार की कसौटी हैं जिन पर पात्र-कुपात्र की खरे-खोटे की परख होती है। जो इस कसौटी पर खरे उतरते हैं, सफलता के अधिकारी सिद्ध होते हैं उन्हें ही इष्ट की प्राप्ति होती है। जो सस्ती सफलता के फिराक में रहते हैं, बिना अड़चन और स्वल्प प्रयत्न में जो मनमाने मनसूबे पूरे करना चाहते हैं वे न तो प्रकृति के नियमों को समझते हैं न ईश्वरीय विधान को। उन्हें जानना चाहिए कि कायर पुरुष भाग्य की दुहाई देते रहते हैं और उद्योगी पुरुष कड़ी मेहनत, लगन और लक्ष्य के प्रति समर्पण से विजय लक्ष्मी को प्राप्त करते हैं।



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