लकवा पीड़ितों के लिए चमत्कारिक है बुटाटी धाम

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Butati Dham is miracle for paralysed : लकवा पीड़ितों के लिए चमत्कारिक है बुटाटी धाम। यहां लकवा के मरीज आते हैं अपनों के सहारे और जाते हैं अपने पैरों पर चलकर। इस मंदिर में सप्ताह भर में ही चमत्कार दिखनेे लगताा हैै। इसकेे लिए  न किसी दवा की जरूरत पड़़ती है और न डाक्टर या वैद्य की। भभूत और मंदिर की परिक्रमा के साथ ईश्वर पर विश्वास और आस्था का यहां आश्चर्यजनक फल मिलता है। दुखी लोग आशा और भरोसे के साथ इस मंदिर में आते हैं और इस घोर कलियुग में ईश्वर को धन्यवाद देकर चमत्कार को नमस्कार करते हुए विदा होते हैं।

विज्ञान के लिए चुनौती

विज्ञान और चिकित्सकों के लिए यह मंदिर एक चुनौती है। यह आस्था का बड़ा केंद्र है और यहां आए दिन लोगों को चमत्कार देखने को मिल जाते हैं। बिना डाक्टर, वैद्य एवं हकीम के तथा बिना दवा के यहां लोगों को असाध्य लकवे की बीमारी से मुक्ति मिल जाती है। यह चमत्कारिक मंदिर है राजस्थान में जहां सिर्फ ईश्वरीय कृपा से ही मरीज को लकवे से मुक्ति मिल जाती है। सुबह-शाम मंदिर में आरती के दौरान पवित्र जल के छींटे का भी बड़ा प्रभाव माना जाता है। मान्यता है कि पवित्र जल का छींटा भी रोगमुक्ति में मददगार होता है। इसलिए आरती के दौरान मंदिर प्रांगण में भारी भीड़ उमड़ती है।

पांच हजार साल से हो रहा चमत्कार

राजस्थान में नागौर से चालीस किलोमीटर दूर अजमेर-नागौर रोड पर कुचेरा क़स्बे के पास है बूटाटी धाम। इसे चतुरदास जी महाराज के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर प्रसिद्ध है लकवे से पीडि़त व्यक्तियों को पूरी तरह से स्वस्थ करने के लिए । यहां लकवा पीडि़त और उनके परिजनों का हुजूम उमड़ा रहता है। वे सप्ताह भर यहीं पड़े रहते हैं। यहां रहने के लिए कोई खर्च करने की जरूरत नहीं होती है। रहने और खाने की व्यवस्था पूरी तरह से नि:शुल्क है। मंदिर प्रबंधन की ओर से इस मंदिर में इलाज करवाने आने वाले मरीजों और उनके परिजनों के रुकने और खाने की व्यवस्था की जाती है। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां 5000 साल से लकवा के मरीजों को चमत्कार देखने को मिल रहा है।

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परिक्रमा और हवनकुंड की भभूति ही है दवा

इस मंदिर में बीमारी का इलाज न तो कोई पंडित करता है न ही कोई वैद्य या हकीम। बस यहां आपको सात दिन के लिए मरीज के साथ आकर रहना होता है। इन सात दिनों में रोजाना मंदिर की परिक्रमा लगानी होती है। शुरू में मरीज खुद चल-फिर नहीं पाते तो उन्हें परिजन लादकर या सहारा देकर परिक्रमा कराते हैं। इसके साथ ही मरीज के शरीर पर हवन कुंड की भभूति लगाई जाती है। धीरे धीरे लकवे की बीमारी दूर होने लगती है और मरीज के हाथ-पैर हिलने लगते हैं। जो व्यक्ति लकवे के कारण बोल नहीं सकते थे वे भी धीरे-धीरे बोलना शुरू कर देते हैं।

ऐसे होता है लकवा पीड़ितों के लिए चमत्कार 

कहते हैं कि कुछ तो जगह का महत्व था और बड़ा कारण यहां के एक महान संत चतुरदास जी महाराज बने। उनमें मानवता के प्रति अपार करुणा थी। आध्यात्मिक बल से ही वह मरीजों की बीमारियों को दूर करते थे। उन्होंने घोर तपस्या की और इस स्थान पर लोगों को रोगों से मुक्ति दिलाने की सिद्धि प्राप्त की। कालांतर में संत चतुरदास जी महाराज ने देह का त्याग किया लेकिन मान्यता है कि उनकी शक्ति आज भी अदृश्य रूप में मरीजों को मदद करती है और उन्हें रोगमुक्त करती है। इसीलिए यहां उनकी समाधि की परिक्रमा का विशेष महत्व है। उससे लकवाग्रस्त व्यक्ति को शीघ्र लाभ मिलने लगता है।

 

जनसेवा में लगता है दान में आई राशि का बड़ा हिस्सा

मंदिर की इसी कीर्ति और महिमा देखकर भक्त मुक्तहस्त से दान भी करते हैं। मंदिर प्रबंधन दान में आई राशि का अधिकतर हिस्सा जन सेवा में ही लगा देता है। मंदिर के रखरखाव के साथ ही यहां आने वाले जरूरतमंद लोगों के रहने व खाने-पीने के इंतजाम में उसे खर्च किया जाता है। भक्तगण यूं तो सालों भर यहां बड़ी संख्या में आते रहते हैं लेकिन अधिक ठंड में भीड़ में कुछ कमी होती है। मौसम के लिहाज से सितंबर से नवंबर और फरवरी से मार्च का समय ज्यादा अनुकूल होता है।

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