Chhinnmasta : भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं छठी महाविद्या छिन्नमस्ता। वे कुंडलिनी जगाने में सहायक हैं। भक्तों को हर भौतिक सुख भी देती हैं। छिन्नमस्ता आध्यात्म के क्षेत्र में निर्णायक हैं। विद्यात्रयी में ये दूसरे स्थान पर हैं। इनका दूसरा नाम प्रचंड चंडिका है। कुंडलिनी जगाने में रोधिनी नाड़ी की बाघा आती है। माता उस बाधा को यह पार कराती हैं। इस विद्या को कपालवेधनी कहते हैं। देवी का रूप प्रचंड है। एक हाथ में खडग व दूसरे में अपना ही कटा मस्तक है। गले से निकलती रक्त की तीन धाराओं में एक इनके मुंह में जाती है। बाकी दो धाराओं से वर्णिनी एवं डाकिनी को तृप्त करती हैं। इस रूप में आध्यात्मिक संदेश निहित है।
सांसारिक रूप से भी महत्वपूर्ण
देवी को आध्यात्मिक चेतना के लिए जाना जाता है। साथ ही सांसारिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। ये उग्र देवी मानी जाती हैं। अतः इनकी साधना भी कठिन कही जाती है। लेकिन भौतिक लाभ के लिए सात्विक पूजा अत्यंत सरल है। उसमें सिर्फ भक्तिभाव होना चाहिए। देवी उसी से प्रसन्न हो जाती है। इनके मंदिरों में भी दो तरह के रूप हैं। हिमाचल के चिंतपूर्णी में सात्विक पूजा होती है। हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। विदेश से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं। वहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। झारखंड के रजरप्पा में उग्र रूप है। रोज खूब बलि चढ़ती है। तांत्रिक साधना का बड़ा केंद्र है। मेरा अनुभव है कि शांति की तलाश के लिए दोनों मंदिर समान हैं। दोनों ही जगह भक्ति से ही देवी प्रसन्न होती हैं। भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। इसलिए दोनों मंदिर आस्था के बड़े केंद्र हैं।
साधना उग्र, इसलिए सावधानी बरतें
आमतौर पर इन्हें उग्र माना जाता है। इनकी साधना कठिन मानी जाती है। सिर्फ साधना के उच्चतम शिखर में करना चाहिए। सामान्य साधकों के लिए यह अत्यंत कठिन है। अतः बिना गुरु की देखरेख के न करें। यदि गुरु न मिलें तो साधक का स्तर ऊंचा होना चाहिए। उसे इष्टदेवी के 25 लाख जप किया होना चाहिए। साथ ही 25 लाख नवार्ण मंत्र जप भी कर लें। नवार्ण के बदले 16 लाख त्रिपुर सुंदरी का जप कर सकते हैं। या 25 लाख काल भैरव का जप किया हो। यदि इतना जप नहीं किया तो जोखिम न लें। अन्यथा खतरे में पड़ सकते हैं।
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छिन्नमस्ता के मंत्र विचित्र हैं
माता छिन्नमस्ता के मंत्र विचित्र हैं। इनमें कई महाविद्या व देवता समाहित हैं। अत: इनका प्रभाव भी बड़ा व्यापक है। इससे भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। नीचे मंत्रों को साधना विधि के साथ दे रहा हूं।
एकाक्षर मंत्र
हूं।
त्रयक्षर मंत्र
ऊं हूं ऊं।
षडक्षर मंत्र
1-ह्रीं क्लीं श्रीं ऐं हूं फट्।
2-ह्रीं क्लीं हूं ऐं हूं फट्।
3-ह्रीं ऐं हूं ऐं हूं फट्।
द्वादशाक्षर
हूं वज्रवैरोचनीये हूं फट् स्वाहा।
त्रयोदशाक्षर मंत्र
ऊं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा।
चतुर्दशाक्षर मंत्र
1-ह्रीं हूं ऐं ऊं वज्रवैरोचनीये फट् स्वाहा।
2-ह्रीं हूं ऐं वज्रवैरोचनीये फट् स्वाहा।
3-ह्रीं हूं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं फट् स्वाहा।
विशेष–
बीजक्षरों के अंतर से कामना मंत्र बदलते हैं। उनके अनुसार ही प्रयोग करना चाहिए। पांच लाख जप के बाद हवन व तर्पण करें। इसके बाद ही प्रयोग करने चाहिए।
भक्तों की हर मनोकामना पूरी करने वाला मंत्र
ऊं सर्वसिद्धिप्रदे वर्णिनीये सर्वसिद्धिप्रदे डाकनीये वज्रवैरोचनीये एह्योहि इमं बलिं गृö गृö मम सिद्धिं देहिं ह्रीं फट स्वाहा।
साधना विधि व जप संख्या
इस मंत्र का पुरश्चरण चार लाख है। पलास व बेल के फूल-फल से दशांश हवन करें। फिर तर्पण व मार्जन करें। अंत में ब्राह्मण व कुमारी भोजन कराना चाहिए। इस मंत्र से भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं माता। सिर्फ हवन सामग्री में अंतर करना होता है। मालती फूल से हवन करें तो वाकसिद्धि होगी। चंपा फूल से सुख प्राप्ति होती है। छाग मांस को घी में सिक्त कर एक माह तक नित्य 108-108 मंत्रों से हवन करने से सबका वशीकरण होता है। लालकनेर से राजा का वशीकरण होता है। बेल के फूल-फल, उदुंबर एवं पलाश फल से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं माता। लेकिन स्त्री को ऊपर वाला मंत्र ग्रहण नहीं करना चाहिए।
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