Ellora : where the stones speak : एलोरा : जहां पत्थर बोलते हैं। एलोरा की गुफाएं आकर्षण का बड़ा केंद्र हैं। सच तो यह है कि बचपन से ही लोगों से सुनकर मेरे मन में अजंता – एलोरा की गुफाएं एक तिलिस्म के रूप में स्थापित थीं। उनके विषय में स्कूल में ही पढ़ा था। फिर शिक्षकों व अन्य लोगों से काफी सुना था। उसी समय मेरे किशोर मन में देश-दुनिया घूमने-देखने की अभिलाषा पैदा हुई थी। वह अब कार्यरूप में परिणति हो रही है।
घृष्णेश्वर में खाने-पीने की अच्छी जगह नहीं
घृष्णेश्वर से एलोरा गुफाओं की दूरी लगभग एक किलोमीटर होगी। दोपहर ढल रही थी। बच्चे भूख-भूख का शोर मचा रहे थे। घृष्णेश्वर में खाने-पीने का कोई अच्छा ठिकाना नहीं दिखा। अब हमारे पास एलोरा खिसकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अपना सामान घसीटते हुए हम उस तरफ निकल पड़े। वहां हमारे एक और मित्र श्री विनय ओझा जी सपरिवार हमारी प्रतीक्षा में थे। दरअसल उन दिनों वे मुंबई में पोस्ट थे। उन्हें जब इष्टदेव जी ने बताया कि हम लोग महाराष्ट्र भ्रमण पर जा रहे हैं, तो उन्होंने भी एलोरा में हमारा साथ पकड़ने का निश्चय कर लिया। वे एक बड़ी गाड़ी लेकर आए थे जिसमें हम तीनों का परिवार आसानी से आ जाए।
एलोरा की गुफाओं का साक्षात्कार विस्मयकारी
भोजनोपरांत हम प्रवेश टिकट लेकर गुफाओं की तरफ चल पड़े। आज न जाने कितनी लंबी प्रतीक्षा के बाद मेरी यह इच्छा पूरी होने जा रही थी कि भारत की इस अनमोल धरोहर का साक्षात्कार होने जा रहा था। और यह भी सच है कि गुफाओं का साक्षात्कार कम विस्मयकारी नहीं था। पहली ही गुफा से यह एहसास होने लग जाता है कि मानवमन और मष्तिष्क का कोई शानी नहीं है। कितनी कल्पना है, कितना धैर्य है और कला के प्रति कितना अनुराग है उसका। यह अनुराग तो उसे भौतिकवाद से भी कहीं दूर ले जाता है। और भर्तृहरि की बात को बरबस मानना ही पड़ता है कि साहित्य, संगीत और कला से युक्त मनुष्य ही मनुष्य है। इतर जन तो पशु ही हैं। यह कहना सही है कि एलोरा : जहां पत्थर बोलते हैं।
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एक ही पत्थर को काटकर बनाई गई गुफाएं
न जाने कितने वर्षों तक अपनी कल्पना को वह छेनी हथौड़ी से साकार करता रहा। परिणाम के रूप में अजंता – एलोरा की गुफाएं सामने आईं। एलोरा की अधिकांश गुफाएं एक ही पत्थर को काटकर बनाई गई हैं। देखकर आभास होता है कि यह कोई नक्काशीदार भवन है। एलोरा में कुल 34 गुफाएं हैं। वे जैन, बौद्ध और हिंदू धर्म को समर्पित हैं। इनमें से 12 गुफाएं महायान बौद्ध, 17 गुफाएं हिंदू धर्म और 5 गुफाएं जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करती हैं। मान्यता है कि गुफाओं का निर्माण काल 550 ई0 से 1000 ई0 तक है। बौद्ध गुफाएं सर्वाधिक प्राचीन हैं। इनका सृजनकाल 550 से 650 ई0 रहा होगा। हिंदू गुफाओं का सृजन 600 से 875 ई0 तक हुआ। सबसे अंत में जैन गुफाएं बनाई गईं जिनका समय 800 ई0 से 1000 ई0 तक है। हालांकि इनका क्रम काल एवं स्थान के रूप में व्यवस्थित नहीं है।
हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों में शिव की प्रधानता
बौद्ध गुफाएं क्रम संख्या एक से बारह तक फैली हैं। इनमें जगह-जगह बुद्ध की आकृति बनी है। गुफा संख्या 12 में बुद्ध की एक बड़ी प्रतिमा है जो उनके समाधिस्थ रूप को दिखाती है। क्रम संख्या 14 से 29 तक की गुफाएं हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। अधिकांश गुफाओं में शिव की मूर्तियां और नक्काशी है। इससे प्रतीत होता है कि उस समय शैव धर्म की प्रधानता थी। पंद्रहवीं गुफा में दशावतार का चित्रण है।
सबसे बड़ा आकर्षण
एलोरा : जहां पत्थर बोलते हैं में सबसे बड़ा आकर्षण कैलाश मंदिर है जो गुफा संख्या 16 के रूप में क्रमबद्ध है। इसकी वास्तुकला अवर्णनीय है। एक ही विशाल शिला को काटकर बनाया गया यह मंदिर चमत्कार से कम नहीं है। वास्तुकार की कल्पना निश्चित ही अप्रतिम ऊंचाई पर पहुंची हुई दिखती है। इसमें लंकाधिपति राक्षसराज रावण को कैलाश पर्वत को हिलाते हुए दिखाया गया है। क्रम संख्या 30 से 34 तक की गुफाएं जैन धर्म को प्रदर्शित करती हैं। ये गुफाएं हिंदू गुफाओं के बाद शुरू होती हैं। इंद्रसभा गुफा जैन गुफाओं में सबसे सुंदर है। इसके अतिरिक्त तीर्थंकर पारसनाथ और गोमतेष्वर की मूर्तियां मनमोहक हैं। जगन्नाथ सभा भी ध्यान आकर्षित करने वाली हैं। हां, धार्मिक अत्याचार यहां भी पीछा नहीं छोड़ता। अनेक गुफाओं में सुंदर मूर्तियों को धर्मांधतावश खंडित किया गया है। आखिर वह कौन सी मानसिकता है जो कला को भी धर्मों में बांटती है?
ऐसे जाएं और यहां ठहरें
इस तरह एलोरा : जहां पत्थर बोलते हैं की यात्रा पूरी हुई। शाम हो चली थी। न तो यहां ठहरने की अच्छी सुविधा है और न हमारा ठहरने का मन था। सो हम अपनी गाड़ी में बैठे और जलगांव की ओर चल पड़े। एलोरा गुफाएं औरंगाबाद शहर से 30 किमी की दूरी पर हैं। बसें और टैक्सियां लगातार जाती रहती हैं। हां, टैक्सियों के रेट से जरा संभलकर रहें और मोल भाव कर लें। ठहरने के लिए औरंगाबाद शहर ही ठीक रहेगा। यहां मध्यम दर्जे के होटल नहीं हैं। ढाबे खूब हैं और भोजन की दिक्कत नहीं है।
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