धर्म और आध्यात्म की राह पर चलने वाले लोगों के लिए खलील जिब्रान के वचन अनमोल हैं। उसे आत्मसात कर व्यक्ति निर्विवाद रूप से अपना स्तर ऊंचा उठा सकता है। आइए नजर डालें उनके कुछ चुने हुए अनमोल वचनों पर :-
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सत्य को जानना चाहिए पर उसको कहना कभी-कभी चाहिए।
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दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है।
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कुछ सुखों की इच्छा ही मेरे दु:खों का अंश है।
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यदि तुम अपने अंदर कुछ लिखने की प्रेरणा का अनुभव करो तो तुम्हारे भीतर ये बातें होनी चाहिए- 1. ज्ञान कला का जादू 2. शब्दों के संगीत का ज्ञान और 3. श्रोताओं को मोह लेने का जादू।
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यदि तुम्हारे हाथ रुपए से भरे हुए हैं तो फिर वे परमात्मा की वंदना के लिए कैसे उठ सकते हैं।
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बहुत-सी स्त्रियाँ पुरुषों के मन को मोह लेती हैं। परंतु बिरली ही स्त्रियाँ हैं जो अपने वश में रख सकती हैं। जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
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मित्रता सदा एक मधुर उत्तरदायित्व है, न कि स्वार्थपूर्ति का अवसर।
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मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं।
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यदि अतिथि नहीं होते तो सब घर कब्र बन जाते।
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यदि तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या, घृणा का ज्वालामुखी धधक रहा है, तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो?
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यथार्थ में अच्छा वही है जो उन सब लोगों से मिलकर रहता है जो बुरे समझे जाते हैं।
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इससे बड़ा और क्या अपराध हो सकता है कि दूसरों के अपराधों को जानते रहें।
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यथार्थ महापुरुष वह आदमी है जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है।
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अतिशयोक्ति एक ऐसी यथार्थता है जो अपने आपे से बाहर हो गई है।
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दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो।
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संसार में केवल दो तत्व हैं- एक सौंदर्य और दूसरा सत्य। सौंदर्य प्रेम करने वालों के हृदय में है और सत्य किसान की भुजाओं में।
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इच्छा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत।
- नि:संदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी।
यदि तुम जाति, देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ तो नि:संदेह तुम देवता के समान बन जाओगे।