दूसरी महाविद्या तारा ज्ञान की देवी हैं। ये उपासक को यशस्वी बनाती हैं। इनका एक नाम नील सरस्वती भी है। इनकी साधना करने वाले को रोजगार भी ज्ञान के क्षेत्र में ही मिलता है। तारा के उपासक की तर्क शक्ति अद्भुत होती है। हालांकि इसे भौतिक ज्ञान में समेटना उचित नहीं है। दस में दूसरी महाविद्या होने से इनका क्षेत्र व्यापक है। यह जीवन के अंधकार को दूर करती हैं। अर्थात सांसारिक के साथ आध्यात्मिक ज्ञान देती हैं। अपने भक्तों को सारे जंजाल से तार (मुक्त) देती हैं। इनकी साधना से सब कुछ पाया जा सकता है।
बौद्ध विद्या को लेकर भ्रम
कई लोग मानते हैं कि तारा बौद्धों की देवी हैं। महर्षि वशिष्ठ ने बुद्ध से यह विद्या सीखी। मैं इससे सहमत नहीं हूं। वशिष्ठ का कालखंड बुद्ध से सदियों पहले का है। वे तारा के साधक थे। उन्होंने उनके कई मंत्र बनाए हैं। बौध विद्वान व दलाईलामा के सहयोगी साम दोंग रिंपोछे भी ऐसा ही मानते हैं। वे निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री भी रहे। उन्होंने कहा कि यह सही है कि ऐसा भ्रम फैला है। इसका कारण यह है कि तारा की सर्वाधिक उपासना बौद्ध करते हैं। उनके पास तारा का काफी ज्ञान है। सच यह है कि तारा मूल देवी हैं। बौद्ध धर्म का इतिहास ही बहुत बाद का है।
मूल मंत्र पर विवाद
तारा के आठ स्वरूप माने जाते हैं। उनमें तीन प्रचलित हैं। ये हैं- उग्रतारा, नील सरस्वती और एकजटा। इनके मंत्रों को लेकर भी विवाद है। इनका एकाक्षरी मंत्र त्रीं है। कथा के अनुसार साधना में लगातार असफलता से खिन्न महर्षि वशिष्ट ने उन्हें शाप दे दिया था। शांत होने पर माता ने उन्हें त्रीं के साथ सकार लगाने के लिए कहा। महर्षि ने स्त्रीं का जप किया। तब उन्हें सफलता मिली। कालांतर में कृष्णावतार में शाप का प्रभाव खत्म हो गया। स्त्रीं शीघ्र फल देने वाला मंत्र है। इसके बाद भी कई विद्वान त्रीं का प्रयोग करते हैं। दोनों में अंतर व प्रभाव पर चर्चा विवाद का विषय है। साधकों को इसमें नहीं पड़ना चाहिए। उन्हें स्त्रीं का ही जप करना चाहिए। इस मंत्र की उपयोगिता पर कोई शक नहीं है।
एकाक्षर मंत्र
स्त्रीं या त्रीं
ध्यान
प्रत्यालीढपदां घोरां मुंडमालाविभूषिताम्। खर्वा लंबोदरींभीमां व्याघ्रचर्म्मावृत्तां कटौ।
नवयौवनसंपन्नां पंचमुद्रा विभूषिताम्। चतुर्भुजां लोलजिह्वां महाभीमां वरप्रदम्।
खंगकर्तृसमायुक्तसव्येतरभुजद्वयाम्। कपोलोत्पलसंयुक्तसव्यपाणियुगान्विताम्।
पिंगाग्रैकजटांध्यायेन्मौलावक्षोभ्यभूषिताम्। बलार्कमंडलाकारलोचनत्रय भूषिताम्।
ज्वलच्चितामध्यगतां घोरदंष्ट्राकरालिनीम्। स्वादेशस्मेरवदनां ह्यलंकारविभूषिताम्।
विश्वव्यापकतोयान्त: श्वेतपद्मोपरिं स्थिताम्।
षोढान्यास
षोढान्यास का विशेष महत्व है। ये न्यास हैं- रूद्रन्यास, ग्रहन्यास, लोकपालन्यास, शिवशक्तिन्यास, तारादिन्यास और पीठन्यास। विशेष साधना में इसकी आवश्यकता है। सामान्य साधक सिर्फ ध्यान से काम चला सकते हैं।
उग्रतारा (तारा) मंत्र प्रयोग
एकाक्षर मंत्र ऊपर दिया जा चुका है। स्त्रीं बेहतर है। पहले उस मंत्र का 25 लाख जप कर लें। इसके बाद ही अन्य मंत्रों पर ध्यान दें। माता के सभी मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। कामना पूर्ति के लिए बीज मंत्र भी प्रभावी हैं। कामना से पूर्व और बाद में मंत्र मिलाकर जप करने से लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
त्र्यक्षर मंत्र
हूं स्त्रीं हूं
चतुरक्षर मंत्र
ह्रीं ह्रीं स्त्रीं हूं
पंचाक्षर मंत्र
ऊं ह्रीं स्त्रीं हुं फट
विनियोग
अस्य श्री तारामंत्रस्य अक्षोभ्य ऋषि:। वृहती छंद:। तारा देवता। ह्रीं बीजं। हूं शक्ति:। स्त्रीं कीलकं। आत्मनोभीष्टसिद्धये जपे विनियोग:।
ऋष्यादिन्यास
ऊं अक्षोभ्य ऋषिये नम: शिरसि। वृहतीछंदसे नम: मुखे। तारादेवताये नम: हृदि। ऊं ह्रीं (हूं) बीजाय नम: गुह्ये। ऊं हूं (फट्) शक्तिये नम: पादयो:। ऊं स्त्रीं कीलकं नाभौ। विनियोगाय नम: सर्वांगे।
षडंगान्यास
ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रैं, ह्रीं, ह्र: से क्रमश: हृदयादि व करन्यास करना चाहिए।
एकजटा रूप के लिए षडंगन्यास
ऊं ह्रीं त्रां ह्रां एक जटायै हृदयाय नम:। हृं त्रीं ह्रीं तारिण्यै शिरसे स्वाहा। हूं त्रूं हूं वज्रोदकायै शिखायै वषट्। ह्रैं त्रैं ह्रैं उग्रतारायै कवचाय हुं। ह्रौं त्रौं ह्रौं महापरिवासरायै नेत्रत्रयाय वौषट्। ह्र: त्र: ह्र: पिंगोग्रैकजटायै अस्त्राय फट्। इसी तरह करन्यास करें।
ध्यान
प्रत्यालीढ पदार्पितांघ्रि शवहृत् घोराट्टहासांपराम्। खडगेंदीवर कर्तृ खर्पर भुजां हूंकार बीजोद्धभवाम्।
खर्वां नीलविशाल पिंगलजटाजूटैक नागैर्युताम्। जाड्यंन्यस्य कपालके त्रिजतां हंत्युग्रतारा स्वयम्।
तारा मंत्र की जप विधि और फल
संकल्प लेकर साधना शुरू करें। चार लाख मंत्र का जप करें। फिर दशांश (40 हजार) हवन करें। हवन में दूध व घी मिश्रित लाल कमलों का प्रयोग करें। विशेष फल के लिए निर्जन स्थान या खाली घर में जप करें। मंदिर, वन या पर्वत भी उपयुक्त है। इससे लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा होती है। पुरश्चरण के बाद मंत्र का प्रयोग करें। बच्चे के जन्म लेते ही उसकी जीभ पर मंत्र लिखें। इसमें शहद एवं घी से सोना या श्वेतदूर्वा का प्रयोग करें। बालक आगे चलकर महान विद्वान बनेगा। उसे शत्रु कभी परास्त नहीं कर पाएंगे। गोरोचन को मंत्र से सौ बार अभिमंत्रित करें। उसका तिलक लगाएं। इससे सामूहिक वशीकरण होता है। महत्वपूर्ण काम के लिए जाते समय इसका तिलक लाभकारी होता है।
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