life without sprituatality is meaningless : अध्यात्म के बिना जीवन निरर्थक है। उसी के बल पर चरम लक्ष्य पा सकते हैं। ईश्वर को पाने के लिए समर्पण जरूरी है। वह समर्पण अध्यात्म से ही आता है। लोग छोटी समस्याओं में उलझ कर रह जाते हैं। जीवन के मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं। जो समझ जाते वे भवसागर पार करते हैं। इसे निम्न प्रेरक कथा से समझा जा सकता है।
बोध कथा : ऊंट का बंटवारा
किसी गाँव में बुद्धिमान व्यक्ति रहता था। उसके पास 19 ऊंट थे। एक दिन उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। उसमें लिखा था, मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को दें। उसका एक चौथाई मेरी बेटी को मिले। उसका पांचवां हिस्सा मेरे नौकर को दिए जाएं। सब चक्कर में पड़ गए। यह बंटवारा कैसे होगा? 19 ऊंटों का आधा साढ़े नौ हुआ। अर्थात एक ऊंट को काटना पड़ेगा। फिर तो ऊंट ही मर जायेगा। बंटवारा कैसे होगा? चलो एक को काट दिया तो बचे 18 ऊंट। उनका एक चौथाई साढ़े चार-साढ़े चार हुआ। फिर कैसे बंटवारा होगा? सभी बहुत उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान बुलाया गया। वह व्यक्ति अपने ऊंट पर चढ़ कर आया। समस्या सुनी और थोड़ा दिमाग लगाया। फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊंट मिला दो। फिर बंटवारा करो।
19 के फेर में फंसे लोग
इस उलझन पर विचार करें। आप पाएंगे कि अध्यात्म के बिना जीवन निरर्थक है। अब कथा को पढ़ें। सब फिर उलझन में फंस गए। सोचा कि एक पागल मर गया। वह ऊटपटांग वसीयत कर चला गया। अब ये दूसरा पागल आ गया। यह बोलता है कि उनमें मेरा ऊंट मिला दो। फिर बंटवारा करो। सबने सोचा बात मानने में क्या हर्ज है? अपना क्या जाता है? जिसका जा रहा है उसे ही चिंता नहीं। हम क्यों परेशान हों? सलाह के अनुसार बंटवारा शुरू किया गया। 19 में बुद्धिमान आदमी का एक ऊंट मिलाया गया। अब कुल ऊंट 20 हुए। बाकी हिसाब नीचे खुद देखें।
20 का आधा 10 बेटे को दे दिए।
फिर चौथाई पांच बेटी को दे दिए।
उसका पांचवां हिस्सा चार नौकर को दे दिए। 10+5+4=19 बच गया एक ऊंट। वह बुद्धिमान व्यक्ति का था। वह उसे लेकर अपने गांव लौट गया।
ऐसे ही चलता है जीवन
ऐसा ही हमारा जीवन चलता है। हमारे जीवन में पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेंद्रियां, पांच प्राण और चार अंतःकरण है। साथ ही चतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) को ऊंट के रूप में देखें। अर्थात कुल 19 ऊंट होते हैं। मनुष्य सारा जीवन इन्हीं के बंटवारे में उलझा रहता है। वह जीवन के मूल तत्व को समझ ही नहीं पाता। जब तक अहं का त्याग कर आत्मा रूपी ऊंट नहीं मिलाया जाता। जीवन अधूरा रहता है। इसके बिना सुख, शांति व आनंद की प्राप्ति नहीं होती है। इसी लिए कहा गया कि अध्यात्म के बिना जीवन निरर्थक है। ज्ञानेंद्रियों, कर्मेंद्रियों, प्राण और अंतःकरण चतुष्टय के साथ जब तक आत्मा को एकाकार नहीं किया जाएगा, जीवन अधूरा, अपूर्ण और असंतुष्ट रहेगा।
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