गीता उपदेश
श्रलोक- न जायते म्रियते वा विपश्र्चिन्न बभूव कश्र्चित् |
अजो नित्यः शाश्र्वतोSयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे||
भावार्थ : मनुष्य का शरीर आत्मा के लिए कपड़े के समान है, जिस तरह से मनुष्य हर दिन कपड़े बदलता है, ठीक उसी तरह आत्मा, शरीर बदलती है। मृत्य, आत्मा के लिए सिर्फ एक पड़ाव है। बचपन, यौवन और मृत्यु, यह पूरा सफर सिर्फ शरीर का है, आत्मा का सफर तो चलता रहता है।