अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण जोर-शोर से

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अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण जोर-शोर से
अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण जोर-शोर से

Grand Ram Temple In Ayodhya : अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है। सदियों की प्रतीक्षा के बाद यह ऐतिहासिक दिन आया है। पांच अगस्त 2020 की तिथि इतिहास में दर्ज हो गई है। मंदिर के भूमिपूजन के साथ हिंदुओं की आस पूरी हुई है। मैं इस लेख में इसके पुरातन इतिहास और धार्मिक महत्व की जानकारी दूंगा। सात मोक्षदायी नगरी में काशी, उज्जैन, द्वारिका, मथुरा, हरिद्वार, कांचीपुरम और अयोध्या है। अथर्व वेद में इसका जिक्र ईश्वर के नगर के रूप में आया है। इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। सरयू नदी के तट पर स्थित इस नगरी को भगवान राम के पूर्वज वैवस्वत मनु ने बसाया था। उन्होंने ही इसका नाम अयोध्या रखा। महर्षि वाल्मीकि ने इसकी तुलना इंद्रलोक से की। रघुवंशी राजाओं के इस नगर को कौशल भी कहा जाता था।

जैन और बौद्ध धर्म का भी बड़ा केंद्र

यह बौद्धों और जैनियों का भी बड़ा केंद्र रहा है। चीनी यात्री हेनत्सांग के अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे। उस समय इसे साकेत कहा जाने लगा। यह पावन नगरी जैनियों की आस्था का भी बड़ा केंद्र है। उसके पहले तीर्थंकर सहित पांच तीर्थंकरों की यह जन्मभूमि है। भगवान राम और जैनियों से जुड़ा एक और दिलचस्प तथ्य है। इसकी जानकारी कम लोगों को है कि श्रीराम सहित सभी तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश के थे। अब उसी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है।

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कई बार उजड़ा लेकिन नहीं डिगी आस्था

भगवान राम के साथ नगरवासी की जल समाधि के बाद अयोध्या वीरान हो गया था। काफी समय तक यह उजड़ा हुआ सा रहा। सिर्फ जन्मभूमि आबाद रही। बाद में भगवान राम के पुत्र कुश ने इसे फिर बसाया। उन्होंने यहीं अपनी राजधानी बनाई। उनके बाद 44 पीढ़ियों तक सूर्यवंशी यहां शासन करते रहे। महाभारत काल में कौशलराज बृहद्बल ने दुर्योधन का साथ दिया। वे युद्ध में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए। उसके बाद फिर यह नगर उजाड़ सा हो गया। हालांकि राम जन्भूमि का महत्व तब भी था। कुछ अभिलेखों के अनुसार गुप्तवंश के चंद्रगुप्त द्वतीय के समय में यह नगर पुनः आबाद हुआ। उन्होंने इसे अपनी राजधानी बनाया। महाकवि कालिदास के रघुवंश में इसका कई बार जिक्र आया है।

विक्रमादित्य ने करवाया था भव्य मंदिर का निर्माण

हाल के अयोध्या को लेकर इतिहासकारों में मत भिन्नता है। अधिकतर ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व विक्रमादित्य के हाथों इसकी पुनर्स्थापना मानते हैं। उन्होंने कुआं, सरोवर और महल आदि बनवाए थे। बाद के भी कई राजाओं ने समय-समय पर इसकी देखरेख की। 14वीं सदी तक यह स्वरूप में बरकार था। बाबर के शासनकाल में इसे तोड़ा गया। फिर उसी स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया। हिंदुओं का तीव्र विरोध तब से चलता रहा। इसलिए वहां मुस्लिमों के धार्मिक क्रियाकलाप भी नहीं हो सके। 1992 में विवादित ढांचा भी नहीं रहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राममंदिर का रास्ता साफ हो गया है। अब तो अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है।

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