ऐसा है विष्णु का स्वरूप, भक्तों को देते हैं मनचाहा वरदान

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ऐसा है विष्णु का स्वरूप, भक्तों को देते हैं मनचाहा वरदान
ऐसा है विष्णु का स्वरूप, भक्तों को देते हैं मनचाहा वरदान

Such is the form of Vishnu, he gives the desired boon to the devotee : ऐसा है विष्णु  का स्वरूप, भक्तों को देते हैं मनचाहा वरदान। त्रिदेवों में प्रमुख माने जाने वाले भगवान विष्णु जगत के पालनहार हैं। सिर्फ भक्ति से ही प्रसन्न होकर भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं। भव्य मनमोहक रूप वाले भगवान अपने नीचे वाले बायें हाथ में पद्म यानी कमल, नीचे वाले दाहिने हाथ में कौमोदकी नाम की गदा, ऊपर वाले बाएं हाथ में पांचजन्य नामक शंख और ऊपर वाले दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण किए रहते हैं। पुराणों में उनके द्वारा धारण किए जाने वाले आभूषणों तथा आयुधों को भी प्रतीकात्मक और उनके रूप व गुणों के अनुरूप माना गया है। उनके रूप, गुण और उनके द्वारा धारण की हुई हर वस्तुओं के अर्थों को समझ कर तदनुसार उनकी उपासना करने से साधक को बहुत जल्दी सफलता मिलती है।

धारण की गई वस्तुओं के अर्थ

भगवान विष्णु की प्रिय कौस्तुभ मणि, चराचर जगत के निर्लेप, निर्गुण तथा निर्मल क्षेत्र स्वरूप का प्रतीक है। उनका श्रीवत्स, प्रधान या मूल प्रकृति का प्रतीक है। कौमोदकी बुद्धि का प्रतीक मानी जाती है। यह अज्ञानता पर चोट करती है। पांचजन्य पंचमहाभूतों के उदय का कारण और तामस अहंकार को स्पष्ट करता है। शार्ङ्ग धनुष इंद्रियों को उत्पन्न करने वाले राजस अहंकार का प्रतीक है। उसे तीर के संधान से खत्म किया जा सकता है। सुदर्शन चक्र का अर्थ सात्विकता और वैजयंती माला में पंचतन्मात्रा तथा पंचमहाभूतों के संयोग को बताता है। माला में जड़े मुक्ता, माणिक्य, मरकत, इंद्रनील और हीरा मिलाकर पांचों रत्न को पंच तथ्यों का स्वरूप है। उनके बाण ज्ञानेंद्रियों तथा कर्मेंद्रियों के प्रतीक हैं। खड्ग विद्यामय ज्ञान है जो मनुष्य के अज्ञानमय कोष से आच्छादित रहने का प्रतीक है। इस प्रकार समस्त सृजनात्मक उपादान तत्त्वों को भगवान ने धारण कर रखा है।

कर्ता भाव त्याग कर करें कर्म

गीता में कृष्ण रूप में भगवान ने साफ कहा है कि वही ज्ञान हैं, वही अज्ञान हैं। इस चराचर जगत में जो कुछ हो रहा है, उसके मूल में वही हैं। वही समस्त चराचर जगत में व्याप्त हैं। वहीं प्रेरणा हैं और वही कर्म हैं। अज्ञानी मनुष्य इसे नहीं समझता है और खुद को कर्ता मान दुख और संताप भोगता है। जो मनुष्य भगवान के मूल स्वरूप और संदेश को समझकर कर्ता भाव का त्याग कर निष्काम भाव से कर्म करता है। वह अपने समस्त कर्मों को भगवान को अर्पित कर उनकी भक्ति करता है। फिर उसे कोई दुख नहीं छू सकता है। उसका सदा कल्याण होता है। ऐसा है विष्णु का स्वरूप। वे भक्तों को देते हैं मनचाहा वरदान

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