आशा और सकारात्मकता की शक्ति से प्रभावी कुछ भी नहीं

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आशा और सकारात्मकता की शक्ति से प्रभावी कुछ भी नहीं
आशा और सकारात्मकता की शक्ति से प्रभावी कुछ भी नहीं।

Nothing is greater than the power of hope and positivity : आशा और सकारात्मकता की शक्ति से प्रभावी कुछ भी नहीं। जब तक मनुष्य के मन में आशा का दीपक जलता रहता है, सफलता की संभावना बनी रहती है। क्योंकि तब तक वह सफलता के लिए प्रयास करता रहता है। निराशा की स्थिति में वह चुप बैठ जाता है। इसके साथ ही सारी संभावना भी समाप्त हो जाती है। इसकी प्रशंसा मात्र धर्म ग्रंथों में ही नहीं, मनोविज्ञान ने भी की है। चिकित्सा विज्ञान ने भी इसकी शक्ति को पहचान लिया है। इसकी व्याख्या करता एक प्रेरक प्रसंग है। काल्पनिक होने के बाद भी इसकी प्रासंगिकता के कारण इसे दे रहा हूं। सत्य पर आधारित यह काल्पनिक घटना कुछ इस तरह की है।

प्रतीक रूप में चार मोमबत्तियों की कथा

रात का समय था। किसी शहर में चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। वहां एक घर के एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पाकर आज वे एक-दूसरे से दिल की बातें कर रही थीं। पहली मोमबत्ती बोली, “मैं शांति हूं। इस वर्तमान स्थिति में मेरा दम घुट रहा है। मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी आवश्यकता नहीं है। हर तरफ आपाधापी और लूट-मार मची हुई है। मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती।” ऐसा कहते हुए वह मोमबत्ती बुझ गयी। दूसरी मोमबत्ती बोली, “मैं विश्वास हूं। मेरा महत्व दिनों-दिन घटता जा रहा है। मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहां कोई आवश्यकता नहीं है। मैं भी यहां से जा रही हूं। यह कहकर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी। इस तरह शांति और विश्वास रूपी मोमबत्तियां बुझ गईं।

प्रेम व आशा रूपी मोमबत्ती जल रही थीं

कमरे में अब दो ही मोमबत्ती जल रही थीं। वे थी प्रेम और विश्वास की प्रतीक। तभी तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली, “मैं प्रेम हूं। मेरे पास जलते रहने की ताकत है। लेकिन अब इच्छा मरने लगी है। आज के भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास समय ही नहीं। आशा और सकारात्मकता की शक्ति के अभाव में दूसरों से तो दूर लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं। मैं ये सब और नहीं सह सकती। मैं भी जा रही हूं।” ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी। वह अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ। मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया। उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे और वह भरे गले से वह बोला। “अरे, तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रहीं?

आशा ने कहा-जब तक मैं हूं सबको फिर से जलाना संभव

तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ कर जा सकती हो?” यह कहकर बच्चा रोने लगा। तभी वहां जल रही चौथी मोमबत्ती बोली, “प्यारे बच्चे घबराओ नहीं। मैं आशा हूं। और जब तक मैं जल रही हूं। बाकी सभी मोमबत्तियों को फिर से जलाया जा सकता है।” यह सुन बच्चे की आंखें चमक उठीं। उसने आशा के बल पर शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया। यदि हम सकारात्मक रहे और हमारी भावना अच्छी रही तो हम प्रयास करना जारी रखेंगे। तब निश्चय ही दुख के बादल छंटेंगे और सुख आएगा। वैसे भी समय का चक्र कभी रुकता या धीमा नहीं होता है। उस चक्र में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि समय के चक्र को समझते हुए हम आशा और सकारात्मकता की शक्ति के साथ क्रियाशील बने रहें।

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