पितृपक्ष में नहीं भूलें श्राद्ध और तर्पण करना

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श्राद्ध करने के लाभ जानिए, ऐसे मिलता है पितरों को भोजन
श्राद्ध करने के लाभ जानिए, ऐसे मिलता है पितरों को भोजन।

Pitrapaksh 2021 is starting on 20 September : पितृपक्ष में नहीं भूलें श्राद्ध और तर्पण करना। यह न सिर्फ पितरों अपितु स्वयं के कल्याण के लिए भी आवश्यक है। इस वर्ष (2021 में) भाद्रपद पूर्णिमा 20 सितंबर सोमवार से शुरू हो रहा है। इसका समापन अश्विनी अमावस्या छह अक्बटूर बुधवार को होगा। तिथि के हेरफेर के कारण इस बार 26 सितंबर को श्राद्ध की तिथि नहीं है। यह समय पितरों को प्रसन्न करने के साथ-साथ अपने कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त करने के लिए उपयुक्त है। पितर को देवतुल्य माना जाता है। उनकी उपेक्षा किसी भी व्यक्ति के जीवन को तबाह कर सकती है। जन्मकुंडली में पितृ दोष सबसे कठिन दोषों में से एक है। इसका निवारण भी पितरों की शरण में जाकर ही हो सकता है। श्राद्ध व तर्पण इसका सटीक तरीका है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं करना चाहिए। 

बेहद महत्वपूर्ण है पितृपक्ष

पितृपक्ष का महत्व उपनिषद और पुराण दोनों में बताया गया है। यमराज आत्माओं को पितृपक्ष के दौरान पृथ्वी लोक में आने की अनुमति देते हैं। इस समय पितर अपने वंशजों से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के माध्यम से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। ऐसा करने वालों के लिए भी यह कार्य अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। कोरोना काल में उचित होगा कि पितृपक्ष पर शारीरिक दूरी का पालन अवश्य किया जाए। भीड़भाड़ वाले इलाके से परहेज करें। पंडितों व गरीबों को भोजन कराने के बदले उन्हें भोजन के नाम पर अनाज और पैसे दें।

किस तिथि को करें भोज श्राद्ध, तर्पण

पितृपक्ष में नहीं भूलें पितरों का श्राद्ध, तर्पण और उनके निमित्त भोज करना। हालांकि इसका एक तरीका है, उसी अनुसार प्रक्रिया करें। पहले पितर के निधन की तिथि देखें। किसी का निधन द्वितीया को हुआ तो उसके लिए श्राद्ध और भोजन भी द्वितीया को होगा। पूर्णिमा और अमावास्या को जिनका देहावसान हुआ है, उनके लिए अमावास्या उपयुक्त है। पूर्णिमा तिथि अगस्त्य ऋषि के लिए मानी जाती है। निधन की तिथि का पता नहीं तो अष्टमी पुरुषों और महिलाओं के लिए नवमी तिथि उपयुक्त है। जिस महिला की मृत्यु पति के रहते होती है, कुछ जगहों पर उसका श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इसी कारण इसे मातृनवमी भी कहते हैं। अकाल मृत्यु वाले का श्राद्ध चतुर्दशी को करने का विधान है।

क्या करें

तर्पण : काला तिल, कुश, जौ, दूध और जल से पितर का तर्पण करें। इसके लिए कांसे का पात्र सबसे अच्छा है। वह नहीं मिले तो मिट्टी के पात्र से भी तर्पण कर सकते हैं। 

पिंडदान : पितर को पका हुआ चावल या जौ का पिंड बनाकर अर्पित किया जाता है। बाद में उसे किसी जलाशय में प्रवाहित करने की परंपरा है। 

वस्त्रदान : इस अवसर पर ब्राह्मणों और निर्धनों को वस्त्र दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं।

दक्षिणा : पितर के निमित्त भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों को यथासाध्य दक्षिणा देनी चाहिए। एक तरह से यह पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है।

नोट- यदि कुछ भी संभव न हो तो भी पितृपक्ष में नहीं भूलें पितरों को। मात्र समर्पित भाव से तर्पण देकर भी उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं।

सदंर्भ- गरुड़ पुराण, भारतीय ज्योतिष, विक्रम संवत, और विश्वविद्यालय पंचांग।

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