God is bound by the laws of creation, no one is immortal : ईश्वर बंधे हैं सृष्टि के नियम से। अमर कोई नहीं है। सिर्फ आयु कम या अधिक होती है। ब्रह्मांड की हर वस्तु व जीव-जंतु की आयु तय है। यहां तक की त्रिदेव भी इससे अलग नहीं हैं। हां, उनकी आयु हमसे अधिक है। इंद्र भी व्यक्ति नहीं पद है। उस पर अलग-अलग व्यक्तित्व विराजमान रहे हैं। महान ऋषि काल के गाल में समा गए। धर्मग्रंथों में इसके बारे में विस्तार से लिखा है। व्यास के अनुसार त्रिदेवों की आयु तय है। मनुष्यों की तरह उनकी आयु भी सौ साल है। अंतर यह है कि जहां हमारी आयु सौर वर्ष में है। वहीं त्रिदेवों के एक दिन का मतलब चार अरब बत्तीस करोड़ तीस लाख सौर वर्ष है। मौजूदा त्रिदेवों करीब साढ़े पचास साल हैं।
नर के बिना नारायण अधूरे
प्रकृति ऊर्जा की मुख्य स्रोत है। मनुष्यों को उससे ही ऊर्जा मिलती है। विष्णु हर साल योग निद्रा से ऊर्जा पाते हैं। शिव अक्सर ध्यान में चले जाते हैं। स्वर्ग में रहने वाले देवों को ऊर्जा के लिए खुद कर्म करने का अधिकार नहीं है। वे इसके लिए अपने भक्तों पर निर्भर हैं। उन्हें हवन, जप व भक्ति से ऊर्जा मिलती है। सबमें प्रकृति ही माध्यम है। मनुष्य और देवों में अनन्य संबंध है। वेदों ने देवताओं को मनुष्य के मित्र और पिता की तरह कहा है। प्रकृति की व्यवस्था में मानव और भगवान पूरक हैं। धर्मग्रंथों ने नर और नारायण को एक-दूसरे के पूरक कहा है।
यह भी पढ़ें- वास्तु और ग्रहों के संतुलन से एक-दूसरे की कमी दूर करेंसभी धर्मों ने मनुष्य को ईश्वर की संतान कहा
सभी धर्मों ने मनुष्य को ईश्वर की संतान कहा है। माता-पिता के लिए संतान का महत्व सभी जानते हैं। हम भगवान के बिना अधूरे हैं। तो वे भी हमारे बिना अपूर्ण हैं। हमें उनकी कृपा की जरूरत है। तो वे प्रार्थना, जप, हवन, भाव आदि से बल पाते हैं। इसी कारण भक्त के लिए भगवान व्यग्र रहते हैं। अतः समर्पित भाव से उनकी उपासना करें। विश्वास रखें कि वे आपको फल अवश्य देंगे। जितने महत्वपूर्ण हमारे लिए ईश्वर हैं, उतने ही महत्वपूर्ण हम उनके लिए हैं।
सिर्फ प्रकृति में ही पूर्णता
सिर्फ प्रकृति ही पूर्ण है। शेष सभी अपूर्ण हैं। सभी सृष्टि के नियम से बंधे हैं, यहां तक कि ईश्वर भी बंधे हैं सृष्टि के नियम से। वह भी अधूरे हैं। शक्ति के बिना वे आत्मा रहित शरीर समान हैं। इसी कारण उन्हें शक्ति को साथ लेना पड़ा है। सृष्टि का नियम देवी-देवताओं से लेकर सभी जीव-जंतुओं पर लागू होता है। इसका यह अर्थ नहीं कि देवी-देवता बेकार या कमजोर हैं। वे हमारे लिए अति महत्वपूर्ण हैं। वे सृष्टि के संचालक हैं। उनकी क्षमता हमसे करोड़ों गुना ज्यादा है। वे हमारे लिए दयालु हैं। अतः उनकी प्रार्थना करने पर फल अवश्य मिलता है।
प्रकृति की ऊर्जा से कोई भी बन सकता है विशिष्ट
प्रकृति के सिद्धांत को व्यापक नजरिये से देखें। मानव का भाग्य उसके कर्म से तय होता है। कर्म प्रकृति में हमारे क्रियाकलापों से होता है। देवी-देवता उसी की ऊर्जा के बल पर विशिष्ट हैं। ऋषि-मुनि ने भी इस ऊर्जा का दोहन किया। उसी बल पर वे महामानव बने। वशिष्ट, विश्वामित्र, वाल्मीकि, व्यास इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। नियमित साधना से हम भी वैसे बन सकते हैं। हमें भी खास शक्तियां मिल सकती हैं। जरूरत सही दिशा में कर्म करने की है।
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