एलोरा का अद्भुत कैलाश मंदिर, अजूबे से कम नहीं

554
एलोरा का अदभुत कैलाश मंदिर, अजूबे से कम नहीं
एलोरा का अदभुत कैलाश मंदिर, अजूबे से कम नहीं।

Kailash Temple of Ellora is no less then a wonder : एलोरा का अद्भुत कैलाश मंदिर किसी अजूबे से कम नहीं है। वैसे भी एलोरा नाम सुनते ही मन में एक अद्भुत छवि उभर जाती है। लेकिन कम लोगों को पता होगा कि वहां की 34 गुफाओं में कैलाश मंदिर गुफा विशिष्ट है। पूरे पर्वत के चट्टान को तराश कर यह कलाकृति बनाई गई है। उस दौर में जेसीबी मशीनें नहीं थीं। पत्थरों को काटने के लिए डायनामाइट नहीं थे। तब ये कैसे संभव हुआ होगा सोच कर आश्चर्य होता है। कई बार लगता है कि ये इंसान के वश की बात नहीं। कहीं साक्षात शिव ने ही तो मदद नहीं कर दी? यहां की ज्यादातर गुफाओं में प्राकृतिक प्रकाश पहुंचता है। मात्र कुछ गुफाओं को देखने के लिए टार्च की जरूरत होती है। इसमें मदद के लिए पुरातत्व विभाग के कर्मचारी मौजूद रहते हैं।

कैलाश मंदिर की विशिष्टता

मंदिर निर्माण के क्रम में 40 हजार टन भार के पत्थरों को चट्टान से हटाया गया।
90 फीट है इस अनूठे मंदिर की ऊंचाई।
276 फीट लंबा, 154 फीट चौड़ा है गुफा मंदिर।
200 साल लगे इसके निर्माण में। अर्ता दस पीढ़ियों ने काम किया।
7000 शिल्पियों ने लगातार काम करके तैयार किया है ये मंदिर।

आज भी अजंता से अधिक व्यवस्थित लगती हैं एलोरा गुफाएं। भिन्न कालखंड में व्यापार मार्ग के अत्यंत निकट होने के कारण इनकी कभी उपेक्षा नहीं हुई। इन गुफाओं को देखने के लिए उत्साही यात्रियों के साथ-साथ महत्वपूर्ण लोग नियमित रूप से आते रहे।

शिव को समर्पित है 16 नंबर गुफा

एलोरा का अद्भुत कैलाश मंदिर मन मोह लेता है। यह 16 नंबर की गुफा में है जो सबसे बड़ी है। यह गुफा मूल रूप से भगवान शिव को समर्पित है। इसमें सबसे अधिक खुदाई-तराशने का काम किया गया है। बाहर से मूर्ति की तरह समूचे पर्वत को ही तराश कर इसे द्रविड़ शैली के मंदिर का रूप दिया गया है। पूरा मंदिर मात्र एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसकी नक्काशी अत्यंत विशाल और भव्य है। विशाल गोपुरम से प्रवेश करते ही सामने खुले मंडप में नंदी की प्रतिमा नजर आती है। इसमें विशाल शिवलिंग है। साथ ही हाथी की विशाल प्रतिमा भी है। वह अब खंडित हो चुकी है। उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी और स्तंभ बने हुए हैं।

कैलाश पर्वत का रूप देने का प्रयास

वास्तुकारों ने कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने की कोशिश की है। भैरव की मूर्ति भयकारक दिखाई देती है। वहीं पार्वती की मूर्ति स्नेहिल नजर आती है। शिव तो यहां ऐसे वेग में तांडव करते नजर आते हैं जैसा कहीं और दिखाई नहीं देता। इसके निर्माण का श्रेय राष्ट्रकूट शासक कृष्‍णा- प्रथम (लगभग 757-783 ई) को जाता है। वह दंति दुर्ग के उत्तराधिकारी थे। हालांकि माना जाता है कि इसका निर्माण कई पीढ़ियों में हुआ है। पर पूरा कृष्णा प्रथम के शासनकाल में हुआ।

इस भव्य मंदिर में नहीं होती पूजा

एलोरा का अद्भुत कैलाश मंदिर जिसमें शिव-पार्वती का परिणय चित्रित करने में कलाकारों ने मानो कल्पनाशीलता का चरमोत्कर्ष दे दिया है। शिव पार्वती का विवाह, विष्णु का नरसिंह अवतार, रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाया जाना आदि चित्र यहां दीवारों में उकेरे गए हैं। वास्तव में यह देश के ही सात अजूबों में नहीं बल्कि दुनिया के सात अजूबों में शामिल होने लायक है। कैलाश मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर है। देश भर में शिव मंदिरों का प्रवेश द्वार आम तौर पर पश्चिम की ओर नहीं होता। इस मंदिर में कभी पूजा किए जाने का प्रमाण भी नहीं मिलता। आज भी इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं है। कोई नियमित पूजा पाठ का कोई सिलसिला नहीं चलता।

साभार-हरिशंकर राढ़ी

यह भी पढ़ें- अजंता में पत्थर बोलते हैं, कण-कण में है अध्यात्म

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here