वासंतिक नवरात्र का है अत्यधिक महत्व

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साल में 4 नवरात्र होते हैं जिसमें चैत्र मास का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें 9 दिनों तक आद्याशक्ति भगवती का व्रत तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है। मां के पूजन, पाठ, जप, तप से पूरा ब्रह्मांड शुद्ध और मन साफ होता है। माता सबों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। चैत्र नवरात्रि का महत्व इसलिए भी अधिक होता है क्योंकि इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म होता है। माता जगदम्बा के साथ भगवान श्रीराम के पूजन का यह विशेष अवसर होता है।


नवरात्र में नौ दिनों तक माता की पूजा मां के अलग-अलग नव रूपों में होती है जिसमें अलग-अलग कामना के साथ  अलग-अलग भोग लगाया जाता है।


प्रथम दिवस माता शैलपुत्री की पूजा होती है जिसमे गाय के घी से बना प्रसाद अर्पण किया जाता है, जिससे रोग का नाश होता है।


दूसरे दिन ब्रम्हाचारणी की पूजा होती है जिसमें शक्कर का प्रयोग दीर्घायु बनने के लिए होता है।


तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा होती है जिसमें दुध से बनी वस्तु का प्रसाद चढ़ाने से दुःख का  नाश होता है। चतुर्थ दिवस माता कुष्मांडा की पूजा शक्ति और भक्ति पाने के  लिए होता है।


पंचम दिवस स्कन्द को केले का भोग बुद्धि विकास के लिए अर्पण किया जाता है।


छठे दिवस को माता कात्यायनी की पुजा सुंदरता और आकर्षण को बढ़ाने के लिए होता है।


सप्तम दिवस माता कालरात्रि की पूजा शोक नाश और दुर्घटनाओं से बचने के लिए होती है। इस दिन गुड़ से बनी वस्तु का भोग लगाना चाहिए।


आठवें दिन महागौरी को नारियल का भोग लगता है जिससे मोक्ष मिलता है।


नवें दिवस में माता नव दुर्गा की पूजा पूर्व जन्मों के पाप का नाश और सर्व सुख के लिये होता है।


कुवारी पूजन नवरात्र का अनिवार्य अंग है। कुमारिका माता जगदम्बा का अनिवार्य अंग है। समर्थ हो तो 9 दिनों तक 9 कन्या या 7 5 या3 कन्या का पूजन हो। इसमे ब्राह्मण कन्या का सर्वाधिक महत्व दिया गया है।साथ मे बटुक के रूप में गणेश का पूजा सत्कार होता है।



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