हम हैं अपनी दुनिया के मालिक, स्वयं बनाते भाग्य

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प्रतिकूल ग्रहों को शांत करने के लिए करें ये उपाय
प्रतिकूल ग्रहों को शांत करने के लिए करें ये उपाय।

We are the sole creator and responsible for our world : हम हैं अपनी दुनिया के मालिक, स्वयं बनाते हैं भाग्य। हम जैसा चाहते और सोचते हैं, वैसा ही करते हैं। वही हमें मिलता भी है। दूसरे शब्दों में कहें तो हम अपने ब्रह्मांड के सर्वेसर्वा हैं। भाग्य या परिस्थिति जैसे भी हों, हम उसे अपने पक्ष में कर सकते हैं। वेद में भी प्रकृति के प्रति एकतरफा प्रेम और समर्पण दिखाते हुए सफल और सुखद जीवन की कामना की गई है। वस्तुतः वह इसी सिद्धांत को प्रतिपादित करती है। आप ध्यान दें तो पाएंगे कि वेद मंत्रों में ऐसे देवता से भी अपने पक्ष में होने का विश्वासपूर्वक अनुरोध किया गया जो प्रतिद्वंद्वी के साथ नजर आते हैं। यही कारण है कि ऋषियों ने काफी हद तक इच्छानुसार अपना जीवन जीया। इस सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाली राजा भोज से जुड़ी एक प्रेरक कहानी प्रस्तुत कर रहा हूं।

राजा भोज की कथा

एक बार राजा भोज की सभा चल रही थी। उसी समय एक व्यापारी ने अनुमति लेकर प्रवेश किया। राजा भोज की दृष्टि उस पर पड़ी तो उसे देखते ही अचानक उनके मन में उसके प्रति तीव्र नकारात्मक विचार आया। उसके प्रति मन घृणा और क्रोध से भर गया। उनकी तीव्र इच्छा हुई कि किसी प्रकार से इस व्यापारी की सारी संपत्ति छीन ली जाए। उसकी संपत्ति राजकोष में जमा कर दी जाए। व्यापारी जब तक वहां रहा भोज का मन रह-रहकर उसकी संपत्ति छीन लेने का करता रहा। कुछ देर बाद व्यापारी चला गया। उसके जाने के बाद राजा को अपने ही विचार पर पश्चाताप होने लगा। सोचने लगे कि मेरी नीति सभी नागरिक के लिए संतान की तरह है। मेरा न्याय विख्यात है। फिर ऐसा निकृष्ट विचार मेरे मन में क्यों आया? इसी प्रसंग में छुपा है वह रहस्य कि कैसे हम हैं अपनी दुनिया के मालिक?

मंत्री को बताई विकृत सोच की समस्या

उन्होंने अपने विद्वान मंत्री को बुलाकर सारी बात बताई और इसका समाधान पूछा। मंत्री ने कहा- इसका उत्तर देने के लिए आप मुझे कुछ समय दें। राजा मान गए। मंत्री विलक्षण बुद्धि का था। उसने सोच-विचार के बाद सबसे पहले व्यापारी के बारे में जानने का निश्चय किया। फिर सीधा व्यापारी से मैत्री गांठने पहुंचा। कुछ दिन बाद ही व्यापारी से गहरी मित्रता हो गई। तब एक दिन उसे विश्वास में लेकर पूछा कि मित्र तुम चिंतित क्यों रहते हो? तुम्हारा चंदन का बहुत बड़ा कारोबार है। उसमें तुम्हें लगातार भारी मुनाफा होता रहा है, फिर चिंता कैसी? व्यापारी ने कहा कि यह सही है कि मैं चंदन का बहुत बड़ा व्यापारी हूं। कारोबार को और ऊंचाई देने के लिए मैंने अपनी पूंजी के बड़े हिस्से से उत्तम कोटि का काफी चंदन खरीद कर रख लिया है। मैंने सोचा कि उसे ऊंची कीमत पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाऊंगा।

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मंत्री ने व्यापारी से बात कर जानी सच्चाई

फिर मैंने चंदन से भरी गाड़ियां लेकर अनेक शहरों के चक्कर लगाए। पर कहीं इतने महंगे चंदन की तरीके से बिक्री नहीं हो सकी। इतनी अधिक कीमत में लोग चंदन खरीदने के लिए तैयार नहीं हैं। इसमें मेरा बहुत धन फंस गया है। इससे व्यापार प्रभावित होने लगा है। अब बर्बादी से बचने का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा है। व्यापारी की बातें सुनकर मंत्री ने पूछा- क्या हानि से बचने का कोई उपाय नहीं? व्यापारी हंसकर कहने लगा कि सिर्फ एक उपाय है। अगर राजा की मृत्यु हो जाए तो उनके दाह-संस्कार के लिए सारा चंदन बिक सकता है। अब तो यही अंतिम मार्ग दिखता है। मंत्री को राजा के प्रश्न का उत्तर मिल गया। अब उपाय के रूप में व्यापारी से कहा कि तुम नित्य राजा का भोजन पकाने के लिए 40 किलो चंदन की लकड़ी भेज दो।

राजा की मृत्यु के बदले दीर्घायु की कामना करने लगा

हम हैं अपनी दुनिया के मालिक का सूत्र काम करने लगा। मंत्री की बात सुनकर व्यापारी बड़ा प्रसन्न हुआ। प्रतिदिन चंदन की नकद बिक्री से तो उसकी सारी समस्या ही दूर होने वाली थी। वह मन ही मन राजा के दीर्घायु होने की कामना करने लगा। ताकि राजा की रसोई के लिए चंदन लंबे समय तक बेचता रहे। कुछ समय बाद कृतज्ञ व्यापारी फिर राजा के दर्शन के लिए दरबार में हाजिर हुआ। उसे देखकर राजा के मन में विचार उठा कि कितना आकर्षक और अच्छा व्यक्ति है। इसे कुछ पुरस्कार देना चाहिए। राजा का मन व्यापारी की ओर खिंचने लगा था। वह उसे कुछ देना चाहते थे। उन्होंने किसी तरह अपनी भावना दबाई। अब उनकी उलझन और बढ़ गई। व्यापारी के सभा से जाते ही उन्होंने मंत्री को बुलाकर कुछ ही दिन में मन में उपजने वाली परस्पर विरोधी भावना के बारे में पूछा।

व्यापारी के प्रति विरोधी भाव से बढ़ी राजा की उलझन

राजा ने मंत्री से कहा- यह व्यापारी पहली बार आया था तो मेरे मन में उसके प्रति बुरे भाव आए थे। मैंने तुमसे प्रश्न किया था। तुमने अब तक मुझे जवाब नहीं दिया है। आज इसे देखकर मेरे मन के भाव उलट गए। मेरे मन में इतना परिवर्तन कैसे हो गया? मंत्री ने कहा- महाराज! मैं आपके दोनों ही प्रश्नों का उत्तर आज दे रहा हूं। यह जब पहली बार आया था तब आपकी मृत्यु की कामना रखता था। अब यह आपके लंबे जीवन की कामना करता रहता है। इसलिए आपके मन में इसके प्रति परस्पर विरोधी भावनाओं ने जन्म लिया है। जैसी भावना एक के मन में होती है, वैसा ही प्रतिबिंब सामने वाले के मन पर पड़ने लगता है। यह प्रकृति का सिद्धांत है। उन्होंने राजा को व्यापारी के बारे में पूरी कथा सुनाई। उन्होंने परस्पर विरोधी भावों का संतोषजनक कारण बताया।

यही सत्य है- हम हैं अपनी दुनिया के मालिक

सच्चाई यही है कि हम हैं अपनी दुनिया के मालिक। हम अपने विचार से स्वयं अपना भाग्य बनाते हैं। जब हम किसी व्यक्ति का मूल्यांकन कर रहे होते हैं तो उसके मन में उपजते भावों का उस मूल्यांकन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए जब भी किसी से मिलें तो एक सकारात्मक सोच के साथ ही मिलें। ताकि आपके शरीर से सकारात्मक ऊर्जा निकले। वह व्यक्ति उस सकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित होकर आसानी से आप के पक्ष में विचार करने के लिए प्रेरित हो। यही किसी कार्य में होता है। हम जिस विचार से उसे करते हैं, उसका परिणाम वैसा ही निकलता है। क्योंकि जैसी दृष्टि होगी, वैसी सृष्टि होगी। अंग्रेजी में भी कहावत है कि वेल बिगन इज हाफ डन। चूंकि किसी भी कार्य में प्रारंभ में विचार या भाव की प्रधानता रहती है। अतः उसी का प्रभाव निर्णायक होता है।

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