किसी भी तरह की मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाने वाला छठ व्रत चार दिनों तक मनाया जाने वाला महापर्व है । यह महापर्व कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक चलता है। यह महापर्व सूर्य देवता और उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित कर मनाया जाता है।
छठ महापर्व इस बार 11 नवंबर से 14 नवंबर तक मनाया जा रहा है। चार दिनों के इस पर्व में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि शुक्ल पक्ष के षष्टि तिथि को होता है। इसी कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत पड़ा।
यह व्रत साल में दो बार मनाया जाता है। पहला चैत्र में तथा दूसरा कार्तिक में। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए स्त्री और पुरुष सामान रूप से इस पर्व को मानते हैं। इसे मुख्य रूप से संतान की प्राप्ति और कुष्ठ जैसे भयानक रोगों से मुक्ति के लिए मनाया जाता रहा है लेकिन वास्तव में यह हर तरह की मनोकामना पूर्ण करने में सक्षम है। छठ महापर्व में
इस चार दिन के इस महापर्व में पहला दिन नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। इसमें पवित्रता का ध्यान रखते हुए सेंधा नमक और घी से बना हुआ अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बना कर प्रसाद के रूप में खाया जाता है। दूसरा दिन खरना कहलाता है। इस दिन से उपवास शुरू होता है। इस दिन व्रती को पूरा दिन अन्न जल का त्याग करना पड़ता है। व्रती शाम में शुद्ध दूध और अरवा चावल का खीर बना कर पूजा कर के प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करते हैं। तीसरा दिन संध्या अर्ध्य कहलाता है। इस दिन व्रती को दिन और पूरी रात निर्जला व्रत करना होता है। इस दौरान पूरी शुद्धता का पालन करते हुए आटे का ठेकुवा और फल-फूल प्रसाद के साथ बांस, पीतल या सोने के सूप को सजा कर अस्त होते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। चौथा दिन प्रातः अर्ध्य कहलाता है इस दिन भी संध्या अर्ध्य के सामान ही सूप को सजाकर उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।
छठ व्रत का शुभ संयोग और मुहूर्त:
इस बार छठ महापर्व में 11 नवंबर नहाय खाय के दिन सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। 13 नवंबर संध्या अर्घ्य के दिन अमृत योग एवं सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। 14 नवंबर प्रातः अर्घ्य को छत्र योग बन रहा है।
पौराणिक कथा :
महाभारत में जब पांडव अपना सारा राज-पाट जुए में हार गए तो श्रीकृष्ण के द्वारा छठ की महता बताने पर द्रौपदी ने पूरे विधि-विधान से छठ व्रत किया। उनकी मनोकामना पूर्ण हुई और पांडवों का पूरा राज-पाट और मान-सम्मान वापस मिल गया।
वैज्ञानिक कारण :
षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है। इस दिन सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य मात्रा से अधिक होती है जिससे बहुत सारे कुप्रभाओं से पृथ्वी के जीव को लाभ मिलता है।
आरोग्य के देवता के रूप में सूर्य की उपासना : सूर्य को आरोग्य का देवता भी कहा गया है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है। एक बार कृष्ण के पुत्र शाम्ब को कुष्ट रोग हो गया था। इस रोग से उनकी मुक्ति के लिए शाक्य दीप से ब्राह्मणों को बुलाकर विशेष सूर्य की उपासना की गई थी जिससे शाम्ब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली थी।