मां काली की आराधना किस मंत्र से करें

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सृष्टि की मूल शक्ति महाकाली ही प्राणियों का दु:ख दूर करने के लिए देवी भगवती के अलग-अलग रूपों में अवतार लेती हैं। महाविद्या की बात करें तो उन्हें उसमें भा पहला स्थान हासिल है। सत्व, रज और तम-इन तीनों गुणों का संकलन और समायोजन की शक्ति भी मां भगवती के पास ही है। मां अपनी इन्हीं शक्तियों के माध्यम से संपूर्ण विश्व का सृजन, पालन और संहार करती हैं। उनकी साधना करने वाले के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं रह जाता है। मेरा निजी अनुभव है कि उनके मंत्र का जप शुरू करते ही साधक के स्वभाव, आत्मविश्वास और क्षमता में अभूतपूर्व सुधार होने लगता है। दरअसल माता के मंत्रों की रचना इस तरह से की गई है कि साधक के अंदर उसके जप मात्र से इच्छानुसार प्राकृतिक शक्तियों का वास होने लगता है। माता के बारे में कहा भी गया हैृ ‘घंटा शूल हलानि शंखममुसलेश्चक्रम धनु: सायकं हस्त्राव्जैर्दधतिं घनान्त विलसच्छीतांशू तुल्य प्रभाम्। गौरी देह समुदभ्वां त्रिजगतां आधार भूतामहां पूर्वामत्र सरस्वतीमनु भजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम। काल पर भी शासन करने के कारण महाशक्ति काली कहलाती हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ नामक दो दैत्य थे। उनके उपद्रव से पीडित होकर देवताओं ने महाशक्ति का आह्वान किया। तब पार्वती के शरीर से कौशिकी प्रकट हुई। देवी से अलग होते ही देवी का स्वरूप काला हो गया। इसलिए शिवप्रिया पार्वती काली नाम से विख्यात हुई।
तंत्रशास्त्रमें कहा गया है- कलौ काली कलौकाली नान्यदेव कलौयुगे।
कलियुग में एकमात्र काली की आराधना ही पर्याप्त है। साथ ही यह भी कहा गया है-कालिका मोक्षदादेवि कलौशीघ्र फलप्रदा। मोक्षदायिनीकाली की उपासना कलियुग में शीघ्र फल प्रदान करती है।
काली माता का ध्यान करने से उनके मन में सुरक्षा का भाव आता है। उनकी अर्चना और स्मरण से बडे से बडा संकट भी टल जाता है। माता काली के स्वरूप और शक्तियां सभी देवताओं से अधिक हैं। माता काली के शीघ्र्र फलदायक और प्रबल शक्तिशाली मन्त्रों तथा अनेक विभित्र रूपों के भी मन्त्रों का संकलन सभी मन्त्रों में, ‘क्रीं, हूं, हीं और स्वाहा शब्दों का प्रयोग होता है।
इनमें क्रीं का अत्यंत विशिष्ट महत्व है। इसमें अक्षर ‘क जलस्वरूप और मोक्ष प्रदायक माना जाता है। ‘क्र में लगा आधा र अग्रि का प्रतीक तथा सभी प्रकार के तेजों का प्रदायक है। ई की मात्रा मातेश्वरी के तीन कार्यों यथा- सृष्टि की उत्पत्ति, पालन व संहार का प्रतीक है जबकि  मात्रा के साथ लगा हुआ बिंदू उनके ब्रह्मस्वरूप का द्योतक है। इस प्रकार केवल क्रीं शब्द ही एक पूर्ण मन्त्र का रूप ले लेता है। हूं का प्रयोग अधिकांश मन्त्रों में बीजाक्षर के रूप में होता है। इसे ज्ञान प्रदायक माना जाता है।
हीं शब्द ई की मात्रा के समान आद्याशक्ति के सृष्टि के रचयिता, धारणकर्ता और संहारकर्ता के रूपों का प्रतीक तथा ज्ञान का प्रदायक है। जहाँ तक मन्त्रों के अंत में लगने वाले स्वाहा शब्द का प्रश्‍न है, यह सभी मन्त्रों का मातृस्वरूप है तथा सभी पापों का नाशक माना जाता है।
एकाक्षर मन्त्र-क्रीं–यह काली का एकाक्षर मन्त्र है। यह इतना शक्तिशाली है कि शास्त्रों में इसे महामंत्र की संज्ञा दी गई है। इसे मातेश्वरी काली का प्रणव कहा जाता है और इसका जप उनके सभी रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है।
द्विअक्षर मन्त्र-क्रीं क्रीं। इस मन्त्र का भी स्वतन्त्र रूप से जप किया जाता है। लेकिन तांत्रिक साधनाएं और मन्त्र सिद्धि हेतु बड़ी संख्या में किसी भी मन्त्र का जप करने के पहले और बाद में सात -सात बार इन दोनों बीजाक्षरों के जप का विशिष्ट विधान है।
त्रिअक्षरी मन्त्र-क्रीं क्रीं क्रीं। यह काली की तांत्रिक साधनाओं और उनके प्रचंड रूपों की आराधनाओं का विशिष्ट मन्त्र है। मां की आराधना का सर्वश्रेष्ठ मन्त्र-क्रीं स्वाहा। महामंत्र ‘क्रीं में स्वाहा से संयुक्त यह मन्त्र उपासना अथवा आराधना के अंत में जपने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
ज्ञान प्रदाता मन्त्र-ह्रीं —-यह भी एकाक्षर मन्त्र है। माँ काली की आराधना अथवा उपासना करने के पश्चात इस मन्त्र के नियमित जप से साधक को सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसे विशेष रूप से दक्षिण काली का मन्त्र कहा जाता है।
क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के चारों ध्येयों की आपूर्ति करने में समर्थ है। आठ अक्षरों का यह मन्त्र। उपासना के अंत में इस मन्त्र का जप करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
ऐं नम: क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा—-ग्यारह अक्षरों का यह मन्त्र अत्यंत दुर्लभ और सर्व सिंद्धियों को प्रदान करने वाला है। उपरोक्त पांच, छह, आठ और ग्यारह अक्षरों के इन मन्त्रों को दो लाख की संख्या में जपने का विधान है। तभी यह मन्त्र सिद्ध होता है।

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