रति-कामदेव की पूजा का पर्व (वसंत पंचमी-एक)

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वसंत पंचमी का नाम लेने पर सबसे पहले विद्या की देवी सरस्वती और उनकी पूजा का ध्यान आता है। माता सरस्वती की पूजा सचमुच महत्वपूर्ण है लेकिन वैश्विक और सर्वकालिक रूप में यह अवसर उनकी पूजा से ज्यादा मदनोत्सव के रूप में प्रचलित रहा है। पौराणिक काल में इस दिन रति और कामदेव की पूजा की जाती थी। दुनिया के अन्य देशों में भी वसंत के अवसर पर विभिन्न तरीके से वसंतोत्सव से मिलता-जुलता उत्सव मनाया जाता है। वेलेनटाइन डे की भी इसी की एक कड़ी है। एक और कथा प्रचलित है कि इसी दिन भगवान शंकर का तिलकोत्सव और शिव रात्रि को विवाह हुआ था। इस अंक में मैं पुराण समुच्चय के अनुसार वसंत पंचमी के वसर पर रति और कामदेव पूजन की ही जानकारी दे रहा हूं। उनका पूजन गृहस्थ सुख में चार चांद लगाने वाला होता है। एक बार अवश्य प्रयोग करके देखिए।
माघ शुक्ल पूर्वविद्धा पंचमी को उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षतों का कमल दल बनाएं। उसके अग्र बाग में गणेश जी और पिछले भाग में वसंत (जौ व गेहूं की बाल का पुंज, जो जलपूर्ण कलश में डंठल सहित रखकर बनाया जाता है) स्थापित करें। फिर सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। इसके बाद पीछे वाले पुंज में रति और कामदेव का पूजन शुरू करें। पहले उन पर अबीर आदि के पुष्पोम छींटे लगाकर वसंत सदृश बनाएं।
इसके बाद– शुभा रतिः प्रकर्तव्या वसंतोज्ज्वलभूषणा। नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता।। वीणावादनशीला च मदकर्पूरचर्चिता। मंत्र से रति का और कामदेवस्तु कर्तव्यो रूपेणाप्रतिमो भुवि। अष्टबाहुः स कर्तव्यः शङ्खपद्मविभूषणः।। चापबाणकरश्चैव मदादञ्चितलोचनः। रतिः प्रीतिस्तथा शक्तिर्मदशक्ति-स्तथोज्ज्वला।। चतस्रस्तस्य कर्तव्याः पत्न्यो रूपमनोहराः। चत्वारश्च करास्तस्य कार्या भार्यास्तनोपगाः। केतुश्च मकरः कार्यः पञ्चबाणमुखो महान्। मंत्र से कामदेव का ध्यान करें। इसके बाद दोनों को विविध प्रकार के फल, फूल और पत्रादि समर्पित करें तो गार्हस्थ्य जीवन, खासकर दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा और प्रत्येक कार्य में उत्साह से भरे रहेंगे।
मान्यता है कि मदनोत्सव पर रति व कामदेव की उपासना पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी होती है। इसी दिन पाप नाश और स्वर्ग की कामना से एक और अनुष्ठान शुरू किया जा सकता है।  मन्दारषष्ठी नामक यह व्रत तीन दिवसीय होता है। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी को संपूर्ण कामना का त्याग कर जितेंद्रिय होकर थोड़ा सा भोजन लेने के बाद एकभुक्त करें। षष्ठी को प्रातः स्नानादि के बाद ब्राह्मण से अनुमति लेकर दिन भर व्रत रखें और रात्रि में मंदार के पुष्प (आक) का भक्षण कर उपवास करे। सप्तमी सुबह में स्नान व ब्रह्मण पूजन कर मंदार फूल से अष्टदल कमल बनाकर स्वर्णनिर्मित सूर्यनारायण की मूर्ति की स्थापना कर पूजन करें। बाद में उस मूर्ति को किसी ब्राह्मण को दे दें। पुराण के अनुसार इससे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग में जाता है।

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