जैन रामायण में रावण को लक्ष्मण ने मारा

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सनातन धर्म विज्ञान से आगे, धंधेबाजों ने भ्रम फैलाया
सनातन धर्म विज्ञान से आगे, धंधेबाजों ने भ्रम फैलाया।

According to Jain Ramayana Laxman killed Ravana : जैन रामायण में रावण को राम ने नहीं लक्ष्मण ने मारा। राम अहिंसावादी थे। वे बाद में जैन साधु बन गए। ये बातें जैन धर्म के सबसे प्रचलित रामायण पौमचरिता में है। जैन धर्मावलंबी खुद को सनातन धर्म के मानते हैं। उनके पौराणिक पात्र भी हिंदू धर्म से मिलते-जुलते हैं। लेकिन उनमें कुछ मौलिक अंतर है। हिंदू धर्म में वाल्मीकि, कंब और तुलसी रामायण की सबसे अधिक मान्यता है। उसमें राम को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। लक्ष्मण शेषनाग के अवतार बताए गए हैं। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद राक्षस कहे गए हैं। पौमचरिता में उनको जैन धर्म से जुड़े विशिष्ट मानव के रूप में चित्रित किया गया है। इस लेख का उद्देश्य कोई विरोध खड़ा करना नहीं है। अपितु भारतीय धर्म-संस्कृति में अनेकता में एकता और विरोधी विचारों के प्रति सहिष्णुता को स्पष्ट करना है।

जैन रामायण में अहिंसा और धर्म स्थापना पर जोर

जैन रामायण में पात्र भले समान है लेकिन तथ्यों में अंतर है। उसमें राजा दशरथ की तीन नहीं चार रानियां कहीं गई हैं। वे थीं- अपराजिता, सुमित्रा, सुप्रभा और कैकेई। अपराजिता के पुत्र पद्मा हुए जिन्हें राम कहा गया। सुमित्रा के पुत्र नारायण हुए। वे लक्ष्मण के नाम से जाने गए। कैकेई के पुत्र भरत और सुप्रभा के पुत्र शत्रुघ्न हुए। इस रामायण में अधिकतर प्रमुख पात्रों को अहिंसावादी और जैन धर्म का अनुयायी कहा गया है। उसके अनुसार अयोध्या के राजा राम अहिंसावादी थे। उन्होंने शस्त्र धारण नहीं किया। लक्ष्मण की मृत्यु के बाद वे राजपाट त्याग कर जैन साधु बन गए। रावण को न्यायप्रिय और अहिंसावादी राजा बताया गया है। सिर्फ सीता हरण का अपराध किया। उसमें कुभंकर्ण और मेघनाद को भी मनुष्य कहा गया है। उनके वध की बात नहीं है। इसके बदले रावण की मृत्यु के बाद दोनों के जैन साधु बनने का जिक्र है।

लक्ष्मण वासुदेव और रावण प्रति वासुदेव

जैन रामायण में रावण को प्रति वासुदेव और लक्ष्मण को अधिक मजबूत वासुदेव कहा गया है। राम उनसे भी बड़े थे। प्राकृत भाषा में लिखित पौमचरिता नामक इस रामायण को जैन संत विमलासुरी ने लिखा। उनका समय तीसरी सदी के आसपास का था। उन्होंने महाभारत की भी रचना की। जैन धर्म में 17 अन्य रामायण भी प्रचलित हैं। लेकिन सबसे अधिक मान्यता पौमचरिता को है। यहां यह स्पष्ट करना प्रासंगिक होगा कि वाल्मीकि रामायण का रचनाकाल इससे बहुत पहले का माना जाता है। भाषा के विकास क्रम को देखें तो वाल्मीकि रामायण की भाषा भी बहुत पुरानी है। वाल्मीकि का समय भी विमलासुरी से बहुत पहले का था। कथा के अनुसार वाल्मीकि ने रामायण की रचना राम जन्म से पहले की थी। उन्होंने दिव्य शक्ति से भावी घटनाओं को देख लिया था। इस विरोधाभास को यहीं विराम देते हुए अब पुनः जैन रामायण की बात।

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राम की चार पत्नी, उन्होंने बाली को नहीं मारा

पौमचरिता के अनुसार राम की चार पत्नी थी। उसमें सीता की बहुत चर्चा नहीं है। हालांकि उनका रावण द्वारा अपहरण का वर्णन और बदले में लक्ष्मण के हाथों मारे जाने की बात है। अपहरण के कारण रावण और हत्या के कारण लक्ष्मण के नरक भोगने की बात भी लिखी है। हालांकि दोनों को जैन धर्म में विशिष्ट मनुष्य कहा गया है। रावण के बारे में यह भी लिखा है कि वह बाद में तीर्थंकर बनेगा। इसमें राम के मोक्ष पाने और सीता के स्वर्ग जाने की भी बात है। इसमें रावण वध के बाद अयोध्या लौटने पर राम राजा बन जाते हैं। बाद में लक्ष्मण की मृत्यु हो जाती है। इससे दुखी होकर उन्होंने राजपाट त्याग दिया। फिर जैन साधु बन गए। इसमें यह भी जिक्र है कि राम ने बाली का वध नहीं किया। उनसे राजपाट लेकर सुग्रीव को दिया। इसके बाद बाली ने जैन धर्म अपना लिया।

रावण के दस सिर नहीं, हनुमान व सुग्रीव वानर नहीं

जैन रामायण में रावण को दस सिर वाला नहीं माना गया है। लिखा है कि जन्म के समय एक हार में उसके नौ प्रतिबिंब दिख रहे थे। मुख मिलाकर दस हुआ। इसी कारण उसका नाम दशानन पड़ा। उसमें हनुमान, सुग्रीव, बाली आदि को भी वानर नहीं मनुष्य कहा गया है। वे वानर चिह्न वाले मुकुट और ध्वज का प्रयोग करने के कारण वानर कहलाए। वे सभी विद्याधर और आकाश मार्ग से उड़ने में सक्षम थे। उनमें से हनुमान अत्यंत सुंदर थे। बाद में उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। कैकेई ने राम को वनवास के लिए बाध्य नहीं किया, बल्कि वह भरत के मुनि बन जाने की आशंका से भयभीत थीं और उन्हें इससे रोकने के लिए राज देना चाहती थी. इसे जानकार राम ने स्वयं वनवास चुना। इसके अनुसार कैकेई दयालु महिला थीं। सीता जी के पुत्रों का नाम जैन ग्रंथ में लवण और अंकुश लिखा है।

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