प्रतिकूल ग्रह होते हैं बीमारियों के कारण, जानें बचाव के उपाय

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प्याज और लहसुन अमृत समान, फिर व्रत में परहेज क्यों
प्याज और लहसुन अमृत समान, फिर व्रत में परहेज क्यों।

Adverse planets are the cause of diseases, know the reasons and remedies : प्रतिकूल ग्रह होते हैं बीमारियों के कारण। जानें उनसे बचाव उपाय। बीमारियों पर नौ ग्रहों के प्रभाव और संबंध के क्रम में इस अंक में पढ़ें बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु के बारे में। पहले अंक में आपने सूर्य, चंद्रमा, मंगल और बुध के बारे में पढ़ा है। जानें कि ये किस तरह से मनुष्य को प्रभावित करते हैं। इसमें भी ग्रहों के सामान्य परिचय, गुण और असर की सामान्य जानकारी दी जाएगी। साथ ही इन्हें अनुकूल बनाने के उपाय बताए जाएंगे। विशेष जानकारी के लिए इलाके के लिए योग्य ज्योतिषी या मुझसे संपर्क कर सकते हैं। शुरुआत बृहस्पति या गुरु से।

ज्ञान, शील और धर्म का निर्धारण करते हैं बृहस्पति

बृहस्पति को मीन राशि का स्वामी कहा जाता है। सत्व गुणी बृहस्पति ज्ञान, शील और धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें आकाश तत्व माना जाता है। ये व्यक्तित्व की विशालता, विकास और जीवन में स्थिति को तय करते हैं। लोगों को रोजगार शनि से मिलता है लेकिन बेहतर स्थिति और तरक्की बृहस्पति से तय होता है। कमजोर हों तो कम वेतन, बार-बार नौकरी बदलने जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है। शरीर के अंगों की बात करें तो ये कमर से जांघ, वसा, हृदय, किडनी, लीवर, पित्त की थैली कान से जुड़े हैं। कमजोर बृहस्पति से मोटापा, मधुमेह, किडनी, लीवर, पेट, कफ, मिर्गी एवं कान संबंधी बीमारियों का खतरा रहता है। पुखराज इनका प्रमुख रत्न और पीला शुभ रंग माना जाता है। इसके साथ ही अपने से बड़े का सम्मान, बृहस्पति का मंत्र जप, बृहस्पतिवार का व्रत और विष्णु पूजन से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है।

दांपत्य जीवन व प्रेम की स्थिति के लिए देखें शुक्र

प्रतिकूल ग्रह होते हैं कई मामलों के निर्धारक। फिलहाल बात शुक्र की। ये दांपत्य जीवन, प्रेम, रोमांस, प्रजनन, कामुक विचार आदि को निर्धारित करते हैं। इनके अनुकूल रहने से व्यक्ति अत्यंत सुखी रहता है। अन्यथा जातक पैसा, पद और प्रतिष्ठा होते हुए भी अधूरा महसूस करता है। ये वृष तुला राशि के स्वामी हैं। शरीर के अंगों की बात करें तो गुप्तांग, प्रजनन अंग और उससे संबंधित ताकत, चेहरा, आंख, मूत्राशय, किडनी, आंतें, ग्रंथियां और हार्मोन्स को नियंत्रित करते हैं। ये प्रतिकूल हों तो यौन रोग, मूत्र रोग, किडनी की समस्या, अपेंडिक्स, जलन,  गुप्त रोग, नेत्र रोग, सुंदरता में कमी आदि का खतरा रहता है। शुक्र को अनुकूल करने के लिए मुख्य रत्न हीरा है। शुक्र का मंत्र जप, यंत्र धारण करने तथा शिव की पूजा करने से भी ये अनुकूल होते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ भी काफी उपयोगी होता है।

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न्याय करने वाले शनि

शनि न्याय करने वाले हैं। ये लोगों को उनके कर्मों के अनुसार शुभ-अशुभ फल देते हैं। इसलिए इन्हें प्रसन्न करना भी आसान नहीं होता है। ये मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। शरीर में कमर के नीचे का भाग, आंतें, नस, बाल व मांसपेशियों की स्थिति तय करते हैं। प्रतिकूल हों तो वायु रोग, कमर, घुटने व जोड़ों का दर्द, स्नायु रोग, कैंसर, टीबी, अल्सर, लकवा आदि का खतरा रहता है। शनि के मंत्र का जप, शनिवार को काला उड़द गरीबों को दान करने, शिव को काला तिल मिलाकर कच्चा दूध चढ़ाने, पीपल के पेड़ में जल चढ़ाने, हनुमान चालीसा का पाठ, मां काली की उपासना आदि शनि के प्रकोपों से बचाने वाले उपाय हैं। इनका प्रमुख रत्न नीलम है। घोड़े की नाम की अंगूठी भी उपयोगी होती है। ध्यान रहे कि उपायों से ही प्रतिकूल ग्रह होते हैं अनुकूल।

छाया ग्रह हैं राहु

राहु को छाया ग्रह माना जाता है। इसलिए इनके किसी राशि के स्वामी होने पर भी विवाद है। कुछ विद्वानों के अनुसार इन्हें कन्या राशि का स्वामी माना जाता है। चंद्रमा से जुड़े और छाया ग्रह होने के कारण यह मानसिक स्थिति को ज्यादा प्रभावित करते हैं। पैर व श्वास प्रणाली को भी प्रभावित करते हैं। इनके प्रतिकूल होने पर मनुष्य डरा-डरा सा रहता है। उसे सर्प दंश, दवा से संक्रमण, मानसिक रोग, दुर्घटना, आंखों के नीचे काले घेरे, मोटापा, वायु रोग और ऊपरी बाधा (भूत–प्रेत, डायन आदि) का खतरा रहता है। इनसे बचाव के लिए हनुमान चालीसा का पाठ कारगर तरीका है। प्रमुख रत्न गोमेद और सुलेमानी है। राहु के मंत्र जप से भी राहत मिलती है। दुर्गा की उपासना से भी फायदा होता है।

केतु से मिलता है अच्छा और बुरा प्रभाव

प्रतिकूल ग्रह होते हैं बीमारियों का कारण में जानें केतु के बारे में। ये राहु की तरह छाया ग्रह हैं। इनसे अच्छा व बुरा दोनों प्रभाव मिलता है। आध्यात्मिक, तांत्रिक, और परा भौतिक शक्ति पाने में इनका भी योगदान रहता है। केतु प्रतिकूल हो तो व्यक्ति को दुख और नुकसान देते हैं तो अनुकूल होने पर देवता जैसा बना सकते हैं। राहु के साथ मिलकर यही कालसर्प दोष बनाते हैं। बीमारियों की बात करें तो ये वात रोग, शिथिलता, नस, त्वचा रोग, हकलाहट, पहचानने में परेशानी आदि के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन्हें अनुकूल करने के लिए इनके मंत्र का जप, लहसुनिया रत्न धारण करना तथा गणेश जी की पूजा प्रमुख उपाय हैं।

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