अमावस्या व पूर्णिमा का सब पर पड़ता है प्रभाव

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ऐसे करें मंत्र साधना तो अवश्य मिलेगी सफलता
ऐसे करें मंत्र साधना तो अवश्य मिलेगी सफलता।

Amavasya and full moon have an effect on every one : अमावस्या व पूर्णिमा का सब पर पड़ता है प्रभाव। इसके साथ ही ग्रहण और संक्रांति भी अति महत्वपूर्ण होते हैं। इन सभी का प्रभाव मनुष्य के साथ ही पूरी पृथ्वी पर पड़ता है। इसी कारण विद्वानों ने इस काल में धर्म-कर्म को आवश्यक बताया है। इसलिए कई लोगों में इन्हें लेकर भय है। विशेष रूप से अमावस्या के प्रति अधिक भय है। इसमें आंशिक सत्यता भी है। सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि यह मनुष्य के लिए अवसर लेकर आता है। तंत्र में, विशेष रूप से शाबर क्षेत्र में यह बहुत बड़ा अवसर होता है। जब कम श्रम और समय में बड़ी उपलब्धि मिल जाती है। इस लेख में इसी विषय पर प्रकाश डाल रहा हूं। इसकी सामान्य जानकारी के साथ लाभ के तरीके बताऊंगा।

इस अवसर का उठाएं लाभ

अमावस्या व पूर्णिमा का तो लाभ उठाना ही चाहिए। इसके साथ ही संक्रांति और ग्रहण काल भी दान-पुण्य, जप आदि के लिए अनुकूल समय है। कई शाबर मंत्रों को तो इसी एक दिन में अपने उपयोग लायक बनाया जा सकता है। प्राकृतिक रूप से भी देखें तो यह महत्वपूर्ण समय है। हर माह शुक्ल और कृष्ण पक्ष के रूप में 15-15 दिन में दो भाग में बंटा है। शुक्ल पक्ष का अंत पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष का अमावस्या से होता है। नाम के अनुरूप ही दोनों पक्ष क्रमशः सकारात्मक और नकारात्मक संदेश लिये होता है। यही स्थिति रात और दिन की भी है। ब्रह्मांड में प्रारंभ से ही दोनों शक्तियों का अस्तित्व रहा है। इस समय का अलग महत्व भी रहा है। देवता और मनुष्य शुक्ल पक्ष और दिन में साधना सहित हर काम करते रहे हैं। असुर कृष्ण पक्ष और रात में करते रहे।

जानें कि कैसे पड़ता है प्रभाव

इन दोनों के बीच मिश्रित काल भी हमेशा से हैं। जैसे- संक्रांति, संध्या, उषा काल आदि। इसी तरह मिश्रित शक्तियां अस्तित्व में हैं। तंत्र और शाबर में अमावस्या, रात और संक्रांति, ग्रहण में साधना का विशेष महत्व है। ऋषियों ने सदियों पहले इस मर्म को समझ लिया था। उन्होंने उसके आधार पर समय की सटीक गणना की। उसकी शक्ति और कमजोरी को भी स्पष्ट किया है। यह भी बताया कि मनुष्य कैसे इसका सदुपयोग कर सकता है। वैज्ञानिक शोध से भी स्पष्ट हो चुका है कि पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण काल का असर जल, थल, जीव-जंतु, मनुष्य सब पर पड़ता है। इसे इस उदाहरण से समझें कि उस दौरान समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। अर्थात जल तत्व उससे प्रभावित होता है। शरीर में भी जल तत्व है। अतः वह भी प्रभावित होता है। इसी तरह अमावस्या व पूर्णिमा का मनःस्थिति पर भी असर पड़ता है।

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अमावस्या व पूर्णिमा का संबंध शक्तियों व मानसिक स्थिति से

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी चंद्रमा मन को निर्धारित करता है। तदनुसार स्वाभाविक रूप से चंद्रमा, अमावस्या और ग्रहण का असर मन पर पड़ता है। इस दौरान चंद्रमा काफी बलशाली होता है। आप ध्यान दें तो उस दौरान मनुष्य ही नहीं जीव-जंतुओं की मानसिक स्थिति में बदलाव आता है। अलग-अलग लोगों में कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार असर भी भिन्न पड़ता है। मोटे तौर पर देखें तो उत्तेजना, भावुक होना, उदास होना, प्रसन्न होना आदि के रूप में देखा जा सकता है। इसी तरह उस दिन भोजन पचने की क्षमता में भी कमी आती है। पूर्णिमा के दिन मानवीय संवेदनाएं बढ़ती हैं। कई लोगों में देवत्व तक का भाव दिखता है। वहीं अमावस्या में नकारात्मक शक्ति का वर्चस्व रहता है। इसी कारण इन तिथियों को धर्म-कर्म, स्नान-ध्यान, दान, जप आदि से जोड़ा गया है। ताकि व्यक्ति सहज बना रह सके।

सात्विक रहें, जप, दान व ध्यान पर जोर दें

इन दिनों सात्विक रहना चाहिए। स्नान, ध्यान, दान जप पर जोर देना चाहिए। इससे न सिर्फ नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सकता है। अपितु अपने अंदर सकारात्मक शक्ति को मजबूत किया जा सकता है। कुछ खास मंत्रों का जप करना भी अत्यंत कल्याणकारी होता है। उसमें सिद्धि आसानी से मिलती है। हालांकि मंत्र का चयन करने से पहले योग्य गुरु से सलाह अवश्य ले लें। इस वेबसाइट पर भी विभिन्न लेखों में ऐसे मंत्रों का जिक्र है। उनका चयन कर जप करें तो शीघ्रता से फल मिलेगा। ध्यान रहे कि ये अवसर डरने का नकारात्मक होने का नहीं है। इसका सदुपयोग कर बेहतर फल की प्राप्ति की जा सकती है। यदि आपने ऐसा किया तो अमावस्या व पूर्णिमा का पूरा फायदा उठा सकेंगे।

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