संकट मुक्ति में बेजोड़ ब्रह्मास्त्र स्तोत्र, जानें प्रयोग विधि

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संकट मुक्ति में बेजोड़ ब्रह्मास्त्र स्तोत्र, जानें प्रयोग विधि
निष्फल नहीं जाता ब्रह्मास्त्र स्तोत्र, जानें कैसे करें प्रयोग।

Brahmastra stotra never goes waste, learn how to use it : संकट मुक्ति में बेजोड़ ब्रह्मास्त्र स्तोत्र, जानें प्रयोग विधि। बगलामुखी ही ब्रह्मास्त्र विद्या की जननी हैं। उनका ब्रह्मास्त्र स्तोत्र रामबाण की तरह है। इसका हर संकट में उपयोग किया जा सकता है। दुख, कष्ट, धन की समस्या, नौकरी, व्यवसाय, शत्रु पीड़ा, मुकदमा, रोग, शोक आदि सभी में यह लाभकारी है। इसका प्रतिदिन पाठ कल्याणकारी है। समस्या ज्यादा हो तो स्तोत्र की संख्या बढ़ा दें। प्रतिकूल ग्रहदशा में भी काम होने में थोड़ा समय लग सकता है लेकिन सफलता जरूर मिलती है। ध्यान रहे कि स्तोत्र के पाठ में चूक न हो। इसमें चूक खुद के लिए मुसीबत बन सकती है। सावधानी के बाद भी चूक का खतरा रहता है। ऐसे में दोष से बचने के लिए गणेश या वटुक भैरव की पहले संक्षिप्त पूजा करें। साथ ही उनके मंत्र का भी जप करें। इस पुराने पोस्ट को फिर से देने का कारण मौजूदा संकट है। इसमें इसका पाठ अत्यंत प्रभावी है।

समस्या के आधार पर तय करें पाठ संख्या

इसका प्रयोग कभी निष्फल नहीं जाता है। अतः कई लोग रोजाना इसका पाठ करते हैं। उन्हें दुश्मन छू भी नहीं पाते। यहां दुश्मन का अर्थ सिर्फ व्यक्ति नहीं, अपितु प्रतिकूल स्थिति से भी है। विशेष प्रयोजन के लिए प्रयोग करना हो तो पाठ की संख्या का विचार जरूरी है। काम सामान्य हो तो रोज दस पाठ करें। समस्या गंभीर हो होने पर 51 पाठ करें। चूंकि स्तोत्र बड़ा और कठिन है। अतः इसे खुद करना समस्या एवं जोखिम वाला होता है। इसे देखते हुए योग्य पंडित से कराया जा सकता है। वैसे स्वयं करना सर्वोत्तम है। मेरा अनुभव है कि इसका पाठ बेकार नहीं जाता है। आवश्यकता सही तरीके और उचित संख्या में पाठ की है। पाठ से पहले बगलामुखी की संक्षिप्त पूजा करें। अनुष्ठान के समय पीले वस्त्र पहनना चाहिए। मानसिक व शारीरिक पवित्रता आवश्यक है।

इस तरह करें न्यास

संकट मुक्ति में बेजोड़ स्तोत्र को शुरू करने से पहले न्यास करें। यद्यापि यह आवश्यक नहीं है। श्री नारद ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छंदसे नमः मुखे। श्री बगलामुखी देवतायै नमः हृदि। ह्लीं बीजाय नमः गुह्यै। स्वाहा शक्तयै नमः नाभौ। बगलामुखी कीलकाय नमः पादयोः। मम सन्निहितानां सन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वांगमुख गतीनां स्तंभनार्थं श्री महामाया बगलामुखी वर प्रसाद सिद्ध्यर्थं पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

बगलामुखीस्तोत्रम (ब्रह्मास्त्र)

जानें स्तोत्र के विनियोग, ध्यान और पाठ के बारे में। चाहें तो इस आधार पर खुद भी पाठ कर सकते हैं। पूजा के बाद पहले विनियोग पढ़ें। फिर ध्यान और उसके बाद स्तोत्र का क्रम से पाठ करें।

विनियोग

ऊं अस्य श्री बगलामुखीस्तोत्रस्य भगवान् नारदऋषि:। श्रीबगलामुखीदेवता। मम सन्निहितानां दुष्टानां प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष समस्तविरोधिनां वांग-मुख-जिह्वा-पद-बुद्धीनां स्तंभनार्थे श्री बगलामुखी वर प्रसाद सिद्धयर्थे पाठे विनियोग:।

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बगलामुखी का ध्यान

इसके बाद हाथ में पीले फूल, अक्षत को पीला करके जल के साथ लें। फिर निम्न मंत्र से ध्यान करें। इसके बाद उसे पूजा पात्र में रख दें। ध्यान रहे कि संकट मुक्ति में बेजोड़ है ब्रह्मास्त्र का प्रयोग।

सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीं।

हेमाभांगरुचिं शशांकमुकुटां सच्चम्पक-स्रग्युताम्।

हस्तैर्मुद्गर-पाश-बद्ध-रसनां संविभ्रतीं भूषणै-

र्व्याप्तांगीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तंभिनीं चिंतये।

मध्ये सुधाब्धि-मणि-मंडप-रत्नेवेद्यां सिंहासनोपरि-गतां परिपीतवर्णाम्।

पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं देवीं भजामि धृत-मुद्गर-वैरिजिह्वाम्।

जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं वामेन शत्रून् परिपीडयंतीम्।

गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीतांबराढ्यां द्विभुजां भजामि।

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ब्रह्मास्त्र स्तोत्र का मूल पाठ

ऊपर वर्णित सारी प्रक्रिया को क्रम से ही पूरा करें। इसमें कोई व्यवधान न हो। उसी क्रम में बिना रुके मूल पाठ शुरू करें। पाठ की आवृत्ति कितनी भी हो, हर बार विनियोग से लेकर नीचे तक पूरा पाठ करें। तब ब्रह्मास्त्र का पाठ पूरा माना जाएगा। न्यास को शुरू में एक ही बार करना है। विनियोग में कामना को शामिल कर लें। इसे हर बार दोहराएं। इसमें और पाठ में कोई चूक न हो। यह संकट मुक्ति में बेजोड़ है तो गलत पाठ से समस्या भी हो सकती है।

चलत्कनक-कुंडलोल्लसित-चारु-गंडस्थलां

लसत्कनक-चंपक-द्युति-मदिंदु-बिंबाननाम्।

गदाहत-विपक्षकां कलित-लोल-जिह्वां चलां

स्मरामि बगलामुखीं विमुख-वांग्-मन:स्तंभिनीम्।

पीयूषोदधि-मध्य-चारु-विलस-द्रक्तोत्पले मंडपे

सत्सिंहासन-मौलि-पातित-रिपुं प्रेतासनाध्यासिनीम्।

स्वर्णाभां कर पीडितारि-रसनां भ्राम्यद् गदां विभ्रमामित्थं

ध्यायति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापद:।

देवी! त्वच्चरणाम्बुजाऽर्चनकृते य: पीत-पुष्पांजलीं

भक्त्या वामकरे निधाय च जपन् मंत्रं मनोज्ञाक्षरम्।

पीठध्यानपरोऽथ कुम्भकवशाद् बीजं स्मरेत् पार्थिवं

तस्यामित्रमुखस्य वाचि हृदये जाड्यं भवेत् तत्क्षणात्।

वादी मूकति रंकति क्षितिपतिर्वैश्वानर: शीतति

क्रोधी शाम्यति दुर्जन: सुजनति क्षिप्रानुग: खंजति।

गर्वी खर्वति सर्वविच्च जडति त्वद्यंत्रणा यंत्रित:

श्रीनित्ये! बगलामुखी! प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नम:।

मंत्रस्तावदलं विपक्षदलनं स्तोत्रं पवित्रं च ते

यंत्रं वादि-नियंत्रणं त्रिजगती जैत्रं च चित्रं च ते।

मात:! श्रीबगलेति नाम ललितं यस्याऽस्ति जन्तोर्मुखे

तन्नामग्रहणेन संसदि मुखस्तम्भो भवेद् वादिनाम्।

दुष्ट-स्तम्भन-मुग्र-विघ्न-शमनं दारिद्र्य-विद्रावणं

भूभृद्-भी-शमनं चलन् मृगदृशां चेत:समाकर्षणम्।

सौभाग्यैक-निकेतनं मम दृश: कारुण्यपूर्णामृतं

मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपु:।

मातर्भंजय मे विपक्ष-वदनं जिह्वां च संकीलय

ब्राह्मीं मुद्रय नाशयाऽऽशु धिषणामुग्रां गतिं स्तंभय।

शत्रूंश्चूर्णय देवी! तीक्ष्ण-गदया गौरांगि! पीतांबरे!

विघ्नौघं बगले! हर प्रणमतां कारुण्यपूर्णेक्षणे!

मातर्भैरवि! भद्रकालि! विजये! वाराहि! विश्वाश्रये!

श्रीविद्ये समये! महेशि बगले! कामेशि! रामे! रमे!

मातंगि! त्रिपुरे! परात्परतरे! स्वर्गापवर्गप्रदे!

दासोऽहं शरणागत: करुणया विश्वेश्वरि! त्राहि माम्।

संरंभे चौरसंघे प्रहरण-समये बंधने वारिमध्ये

विद्यावादे विवादे प्रकुपित-नृपतौ दिव्यकाले निशायाम्।

वश्ये वा स्तम्भने वा रिपुवधसमये निर्जने वा वने वा

गच्छंस्तिष्ठंस्त्रिकालं यदि पठति शिवं प्राप्नुयादाशु धीर:।

नित्यं स्तोत्रमिदं पवित्रमिह यो देव्या: पठत्यादराद्

धृत्वा मंत्रमिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले।

राजानोऽप्यरयो मदान्धकरिण: सर्पा मृगेंद्रादिकास्ते

वै यांति विमोहिता रिपुगणा लक्ष्मी: स्थिरा: सिद्धय:।

त्वं विद्या परमा त्रिलोक-जननी विघ्नौघ-संछेदिनी

योषाकर्षण-कारिणी त्रिजगतामानन्दसंवद्र्धिनी।

दुष्टोच्चाटन-कारिणी जनमन:-मम्मोह-संदायिनी

जीह्वा-कीलन-भैरवी विजयते ब्रह्मादिमंत्रो यथा।

विद्या लक्ष्मी: सर्वसौभाग्यमायु: पुत्रै: पौत्रै: सर्व-साम्राज्य-सिद्धि:।

मानं भोगो वश्य-मारोग्य-सौख्यं प्राप्तं तत् तद् भूतलेऽस्मिन् नरेन।

यत्कृतं जपसन्नाहं गदितं परमेश्वरि।

दुष्टानां निग्रहार्थाय तद् गृहाण नमोऽस्तुते।

ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्।

गुरुभक्ताय दातव्यं न देयं यस्य कस्यचित्।

पीतांबरां च द्विभुजां त्रिनेत्रां गात्रकोज्ज्वलाम्।

शिला-मुद्गर-हस्तां च स्मरेत्तां बगलामुखीम्।

निष्फल नहीं जाता ब्रह्मास्त्र, अवश्य आजमाएं

आपने उक्त स्तोत्र और उसकी प्रयोग विधि समझ ली है। संकट मुक्ति में बेजोड़ है ब्रह्मास्त्र स्तोत्र। जरूरत सिर्फ उसके सही प्रयोग की है। इसे अवश्य आजमाएं। इसे खुद करने में यदि कोई परेशानी हो तो योग्य विद्वान से संपर्क करें। चाहें तो मुझे भी मेल कर सकते हैं।

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