chhath mahaparva starts from 18 november 2020 : छठ महापर्व 18 नवंबर से, हो जाएं तैयार। यह हर मनोकामना को पूरा करता है। खासकर बेहतर स्वास्थ्य और संतान की रक्षा के लिए यह अत्यंत प्रभावी है। यह पर्व सूर्य देव व उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित होता है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है। यह सप्तमी तक चलता है। चार दिन का पर्व इस बार 18 नवंबर को नहाय-खाय है। 21 नवंबर को पारण के साथ समापन होगा।
अत्यंत फलदायी लेकिन बेहद कठिन व्रत
यह पर्व अत्यंत फलदायी है। इसके साथ ही बेहद कठिन भी है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण समय शुक्ल पक्ष षष्ठी होता है। इसी कारण इसका नाम छठ पड़ा है। इसे स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं। दोनों ही इस कठिन व्रत को करते हैं। इसे सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और संतान के लिए मनाया जाता है। कई लोग संतान प्राप्ति के लिए इसे मनाते हैं। हालांकि संतान के बेहतर स्वास्थ्य के लिए भी इसे मनाते हैं। भगवान सूर्य भक्तों को असाध्य रोगों से भी छुटकारा दिलाते हैं। कई लोग इस कारण भी इसे मनाते हैं। उन्हें इसका फल भी मिलता है। इस पर्व को साल में दो बार मनाया जाता है।
महापर्व की प्रमुख तिथियां
नहाय-खाय- 18 नवंबर
खरना- 19 नवंबर
सांध्यकालीन अर्घ्य-20 नवंबर
प्रातःकालीन अर्घ्य-21 नवंबर
पवित्रता का रखें विशेष ध्यान
पूरे महापर्व में मानसिक और शारीरिक पवित्रता जरूरी है। इसमें व्रत कठिन होता है। उससे भी कठिन और चुनौतीपूर्ण है पवित्रता का ध्यान। इसमें चूक होने पर विपरीत फल मिलता है। चार दिन का छठ महापर्व 18 नवंबर से शुरू होगा। पहला दिन नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। सेंधा नमक और घी का ही प्रयोग किया जाता है। अरवा चावल, चने की दाल व कद्दू की सब्जी का प्रसाद बनता है। उसे ही खाया जाता है। दूसरा दिन 19 नवंबर को खरना है। इस दिन से उपवास शुरू होगा। व्रती को अन्न जल का त्याग करना पड़ता है। शाम में खीर बना कर पूजा करते हैं। उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
सूर्य को अर्घ्य का महत्व
छठ महापर्व 18 नवंबर से शुरू होगा। इसमें तीसरे दिन संध्या अर्ध्य होगा। 20 नवंबर को होगा। इस दिन व्रती 24 घंटे निर्जला व्रत करेंगे। ठेकुवा व प्रसाद के साथ बांस, पीतल या सोने के सूप को सजा कर अस्त होते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। चौथा दिन 21 नवंबर का है। इस दिन प्रातः अर्ध्य दिया जाएगा। संध्या अर्ध्य की तरह सूप को सजाकर उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाएगा।
छठ से जुड़ी पौराणिक कथा
इसकी कथा महाभारत काल से जुड़ी। पांडव अपना सारा राज-पाट जुए में हार गए। वे निराश और हताश थे। उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें छठ की महत्ता बताई। द्रौपदी ने उनकी बात समझी और मानी। उन्होंने विधि-विधान से छठ व्रत किया। उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। पांडवों का राज-पाट और सम्मान वापस मिल गया। इससे यह भी साफ होता है कि छठ पर्व हर तरह की मनोकामना के लिए प्रभावी है।
छठ से जुड़े वैज्ञानिक कारण
षष्ठी तिथि को विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है। सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में होती है। इस दौरान उसके संपर्क में रहना लाभकारी है। इससे बहुत सारे कुप्रभावों से छुटकारा मिलता है। कई शोधों में कहा गया है कि सूर्य की किरणें बेहद लाभकारी है। उनमें रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है। कथा के अनुसार कृष्ण पुत्र शांब को कुष्ट रोग हो गया था। इससे मुक्ति के लिए सूर्य की उपासना की गई थी। तब शांब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली थी। इस बार छठ महापर्व 18 नवंबर से है। इसका अवश्य लाभ उठाएं।
यह भी पढ़ें- जानें उंगलियों में छुपे राज, चुटकियों में दूर होगा दर्द