भौतिक युग में चीनी वास्तु शास्त्र फेंगशुई भी महत्वपूर्ण

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ज्ञानवापी में मंदिर के पक्ष में कई अकाट्य तर्क
ज्ञानवापी में मंदिर के पक्ष में कई अकाट्य तर्क।

Chinese Vastu Shastra Feng Shui is also important in material age :  भौतिक युग में चीनी वास्तु शास्त्र फेंगशुई भी महत्वपूर्ण है। इसमें भी भारतीय वास्तु शास्त्र की तरह पंच तत्वों की बात की गई है। हालांकि उन पंच तत्वों में अंतर है। भारतीय पद्धति में धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश को पंच तत्व माना गया है। फेंगशुई में भारतीय पद्धति के अहम दो तत्व वायु और आकाश के बदले काष्ठ और धातु को शामिल किया गया है। शेष तीन समान हैं। वर्तमान युग में वायु और आकाश का प्रभाव मकान पर कम पड़ता है। यदि फ्लैट में हों तो वायु को कृत्रिम यंत्र से नियंत्रित किया जाता है। प्रदूषण के कारण अब शहरों में आकाश का सही रंग पता चलना कठिन रहता है। उसके बदले मकान में धातु और काष्ठ का प्रयोग अधिक होता है। उसकी प्रासंगिकता देख चीनी पद्धति से भी जानें वास्तु शास्त्र को।

फेंगशुई में आधुनिकता का सम्मिश्रण

फेंगशुई के अनुसार उसका पहला तत्व जल है। वह उत्तरी हिस्सा का प्रतिनिधित्व करता है। मौसम ठंडा, रंग काला और स्थिति नीचा होता है। अग्नि की दिशा दक्षिण है। उसका रंग लाल और मौसम गर्म है। पृथ्वी पीले रंग की है। इसकी दिशा केंद्र (भूभाग का) है। ऋतु वर्ष भर का है। काष्ठ की दिशा पूर्व है। काष्ठ मतलब लकड़ी अर्थात पेड़। इसलिए इसका रंग हरा होता है। यह वसंत ऋतु का प्रतीक है। पांचवां तत्व धातु है। यह पश्चिम दिशा का स्वामी है। इसका रंग सफेद और ऋतु शरद अर्थात पतझड़ या सूखा भी कह सकते हैं। मकान में इन्हीं पांचों तत्वों के सही समायोजन से संतुलित मकान का निर्माण होता है। निर्माण में कमी हो तो घर के अंदर रंग और वस्तुओं के संयोजन से भी उसे ठीक किया जा सकता है। इसमें मकान को संतुलित करने के लिए तोड़फोड़ की आवश्यकता नहीं होती है।

पंच तत्वों से ही एक-दूसरे उत्पत्ति और विनाश

भौतिक युग में चीनी वास्तु शास्त्र फेंगशुई के महत्व का पता पांचों तत्वों की एक-दूसरे पर निर्भरता से भी चलता है। अग्नि जब किसी को राख बनाती है तो पृथ्वी तत्व का निर्माण होता है। अग्नि को सूर्य का प्रतीक माना गया है। सूर्य से ही पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। पृथ्वी से धातु और धातु से जल की उत्पत्ति होती है। जल के कारण वृक्ष अर्थात काष्ठ की उत्पत्ति होती है। काष्ठ ही अग्नि की उत्पत्ति का कारक बनता है। यही तत्व एक-दूसरे को काटने का कारण भी बनते हैं। पृथ्वी तत्व से जल प्रदूषित होता है। जल से अग्नि शांत होती है। अग्नि की ज्वाला में धातु का रूप बदल जाता है। धातु से काष्ठ (लकड़ी) को काटा जाता है। काष्ठ से पृथ्वी को क्षति पहुंचती है। दूसरे शब्दों में कहें तो इन्हीं धातुओं के समायोजन से सभी तत्वों को नियंत्रित और संतुलित किया जा सकता है।

ऐसे करें पंच तत्वों का संतुलन

पंच तत्व को संतुलित करने के लिए पहले उनके रूप, प्रतीक और भाव को समझना आवश्यक है। आप घर का ही उदाहरण लें। हरा रंग, लकड़ी से बने फर्नीचर, हरे रंग की वस्तु, हरे रंग का गमला आदि काष्ठ के प्रतीक हैं। लाल रंग, सूर्य की रोशनी (प्रकाश के हर साधन समेत), लाल कपड़ा, लाल रंग की कोई भी वस्तु को अग्नि का प्रतीक मानें। पृथ्वी तत्व का प्रतीक पीला रंग, मिट्टी या उससे बनी कोई भी वस्तु और पीला वस्त्र आदि है। जल स्रोत, जल पात्र, काला रंग, फव्वारा, एक्वेरियम आदि जल तत्व के प्रतीक हैं। धातु से बनी वस्तुएं, यदि सफेद रंग की हो तो और अच्छा होगा, सफेद रंग आदि धातु तत्व से संबंधित हैं। फेंगशुई के अनुसार वास्तु संतुलन में यदि इनका ध्यान रखा जाए तो घर और उसमें रहने वाले को कभी कोई समस्या नहीं हो सकती है।

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