ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत हैं दस महाविद्या

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ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत हैं दस महाविद्या
ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत हैं दस महाविद्या।

Ten Mahavidyas are the source of the power of universe : ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत हैं दस महाविद्या। उनके बारे में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न जंजालों में उलझा रहता है। वह जिस सुख और अंतत: मोक्ष की खोज करता है, उन सभी के मूल में यही दस महाविद्या हैं। अंक के हिसाब से भी देखें तो दस का सबसे ज्यादा महत्व है। संसार में दस दिशाएं हैं। 1 से 10 के बिना अंकों की गणना संभव नहीं है। ये महाविद्याएं आदि शक्ति माता पार्वती की रूप हैं। इसलिए इनकी पूजा शिव के बिना अधूरी होती है। शक्ति के साथ विष्णु के भी दस अवतार माने गए हैं। उन्हें जानें बिना इनकी साधना संभव नहीं है। साधक रुचि और भक्ति के अनुसार किसी महाविद्या के साथ संबंधित शिव या विष्णु रूप की उपासना करें।

देवी के दस रूप की कथा

एक बार महादेव से संवाद के दौरान एक बार माता पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हो गईं। क्रोध से माता का शरीर काला पड़ने लगा। यह देख विवाद टालने के लिए शिव वहां से उठ कर जाने लगे। तभी अचानक सामने एक दिव्य रूप को मार्ग रोके देखा। तब दूसरी दिशा की ओर बढ़े तो एक अन्य रूप नजर आया। बारी-बारी से दसों दिशाओं में अलग-अलग दिव्य दैवीय रूप देखकर वे स्तंभित हो गए। तभी सहसा उन्हें पार्वती का स्मरण आया। उन्हें लगा कि कहीं यह उन्हीं की माया तो नहीं। वे माता की ओर मुड़े। उन्होंने माता से इसका रहस्य पूछा। पार्वती ने बताया कि मेरे ये दसों रूप धर्म, अर्थ, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। इन्हीं की कृपा से षटकर्मों की सिद्धि और अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

पार्वती ने बताया दस महाविद्या का रहस्य

महादेव के अनुरोध पर माता पार्वती ने ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत दस महाविद्या का रहस्य बताया। उन्होंने कहा कि आपके समक्ष कृष्ण वर्ण में जो स्थित हैं, वह सिद्धिदात्री काली हैं। ऊपर नील वर्णा सिद्धिविद्या तारा हैं। पश्चिम में कटे सिर को उठाए मोक्ष देने वाली श्याम वर्णा छिन्नमस्ता और बायीं ओर भोगदात्री भुवनेश्वरी हैं। आपके पीछे ब्रह्मास्त्र एवं स्तंभन विद्या के साथ शत्रु का मर्दन करने वाली बगला हैं। अग्निकोण में विधवा रूपिणी स्तंभन विद्या वाली धूमावती और नैऋत्य कोण में सिद्धिविद्या व भोगदात्री दायिनी भुवनेश्वरी हैं। वायव्य कोण में मोहिनी विद्या वाली मातंगी हैं। ईशान कोण में सिद्धिविद्या एवं मोक्षदात्री षोडषी और सामने सिद्धिविद्या और मंगलदात्री भैरवी रूपा मैं स्वयं उपस्थित हूं। इनकी उपासना अत्यंत कल्याणकारी है। महादेव के निवेदन करने पर सभी देवियां पार्वती में समाकर एक हो गईं।

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महाविद्या से संबंधित शिव के रूप

किसी भी महाविद्या के पूजन के समय उनकी दाईं ओर शिव का पूजन कल्याणकारी होता है। अनुष्ठान या विशेष पूजन के समय इसे अनिवार्य मानना चाहिए। उनका विवरण निम्न है।

1-काली—————-महाकाल

2-तारा—————-अक्षोभ्य

3-षोडषी————–कामेश्वर

4-भुवनेश्वरी————त्रयम्बक

5-त्रिपुर भैरवी——— दक्षिणा मूर्ति

6-छिन्नमस्ता———— क्रोध भैरव

7-धूमावती————— चूंकि विधवा रूपिणी हैं, अत: शिव नहीं हैं

8-बगला—————- मृत्युंजय

9-मातंगी—————- मातंग

10-कमला————– विष्णु रूप (कमला के लक्ष्मी रूप होने के कारण इसमें शिव नहीं हैं)

महाविद्या से संबंधित विष्णु के दस अवतार

ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत दस महाविद्या के लिए विष्णु के भी दस अवतार माने गए हैं। कई भक्त शिव के बदले महाविद्या के साथ इन्हीं रूपों की पूजा करते हैं। उनके रूपों का विवरण निम्न है।

1-काली————-कृष्ण

2-तारा—————-मत्स्य

3-षोडषी————-परशुराम

4-भुवनेश्वरी———-वामन

5-त्रिपुर भैरवी——–बलराम

6-छिन्नमस्ता———–नृसिंह

7-धूमावती————-वाराह

8-बगला—————-कूर्म

9-मातंगी—————-राम

10-कमला————–बुद्धविष्णु का कल्कि अवतार दुर्गा जी का माना गया है।

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