इच्छाएं और अज्ञानता बनाती हैं रूप, पढ़ें ओशो का प्रवचन

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अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक
अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक।

Desires and actions make forms, read osho’s discourse : इच्छाएं और अज्ञानता बनाती हैं रूप। प्रेरक प्रसंग में पढ़ें ओशो का प्रवचन। ओशो ने महात्मा बुद्ध के जीवन से बहुत अच्छी कथा सुनाई थी। यह कथा बुद्ध और एक ब्राह्मण के संवाद पर आधारित है। इसमें उन्होंने अध्यात्म की राह दिखाई थी। बताया था कि इंसान को कैसा होना चाहिए? कथा इस प्रकार है।

ब्राह्मण ने बुद्ध से पूछा-क्या आप देव हैं?

एक ब्राह्मण ने महात्मा बुद्ध के बारे में काफी सुन चुका था। उसे उनके बारे में और जानने की जिज्ञासा हुई। वह महात्मा के पास ही जानने के लिए पहुंचा। उसने पूछा-क्या आप देव हैं? जवाब मिला-नहीं, मैं देव नहीं हूं। उसने फिर पूछा-क्या आप गंधर्व हैं? बुद्ध ने कहा-नहीं। उसने फिर पूछा-तो क्या आप यक्ष हैं? तथागत ने कहा-नहीं, मैं यक्ष भी नहीं हूं। ब्राह्मण परेशान होने लगा। उसने पूछा-तब क्या आप आदमी ही हैं? बुद्ध ने कहा- नहीं, मैं मनुष्य भी नहीं हूं। अब ब्राह्मण का धैर्य जवाब देने लगा था। उसने पूछा, गुस्ताखी माफ, तो क्या आप पश या पक्षी हैं? उन्होंने कहा, नहीं। अब वह चिढ़ने लगा था। उसने कहा, आप मुझे गुस्ताखी के लिए मजबूर किए दे रहे हैं। क्या आप पत्थर, पहाड़ या वनस्पति हैं? बुद्ध ने कहा, नहीं। यह कथा इच्छाएं और अज्ञानता बनाती हैं रूप का ज्वलंत उदाहरण है।

परेशान ब्राह्मण ने फिर पूछा-आप कौन हैं?

अब ब्राह्मण निराश हो चुका था। उसने बुद्ध से कहा-फिर आप ही बताएं कि आप कौन हैं? आप क्या हैं? तथागत ने मुस्कराते हुए कहा- मैं बुद्ध हूं। वे वासनाएं, वे इच्छाएं, वे कर्म, वे दुष्कर्म, वे सत्कर्म जिनका अस्तित्व मुझे देव, गंधर्व, यक्ष, आदमी, वननस्पति या पत्थर बना सकता था, समाप्त हो गई हैं। वे सभी तिरोहित हो गई हैं जिनसे मैं किसी रूप में ढलता था। किसी आकार में बंध जाता था। इसलिए हे ब्राह्मण, जानो कि मैं इनमें से कुछ भी नहीं हूं। न मैं देव हूं। न मैं गंधर्व हूं। न मैं यक्ष हूं। न मैं मनुष्य हूं। न मैं पशु हूं। न मैं पौधा हूं। न मैं पत्थर हूं। मैं जाग गया हूं। अतः मैं बुद्ध हूं। वे सब सोए होने की अवस्थाएं हैं।

तथागत ने कहा-मैं बुद्ध हूं, इच्छाएं और अज्ञानता बनाती हैं रूप

बुद्ध ने कहा- ये जो अशोक के वृक्ष खड़े हैं, ये अशोक के वृक्ष की तरह सोए हैं। बस इतना ही फर्क है तुममें और इनमें। तुम आदमी की तरह सोए हो। ये अशोक के वृक्ष की तरह सोया है। कोई पहाड़ या पत्थर की तरह सोया है। कोई स्त्री की तरह सोया है तो कोई पुरुष की तरह। ये सब सोने की ही दशाएं हैं। सब निद्रा की स्थितियां हैं। बुद्धत्व सारी स्थितियों से जाग जाने का नाम है। जो जाग गया। उसने जान लिया कि मैं अरूप और निराकार हूं। मेरा न कोई रूप, न मेरा कोई आकार और न मेरी कोई देह है। बुद्ध ने ठीक ही कहा कि बुद्धत्व सबकी संभावना है। जो सोया है, वह जाग सकता है। तुम सोए हो, इसमें ही यह संभावना छिपी है कि तुम चाहो तो जाग सकते हो। क्योंकि इच्छाएं और अज्ञानता बनाती हैं रूप।

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