Do Mantra meditation like this, you will definitely get success : ऐसे करें मंत्र साधना तो अवश्य मिलेगी सफलता। कई लोग काफी मंत्रों का जप करके भी अपेक्षित फल प्राप्त नहीं कर पाते हैं। फिर मंत्र या भाग्य को दोष देते हैं। वास्तव में इस असफलता का कारण भाग्य या मंत्रों में दोष नहीं है। इसका कारण मंत्र जप की विधि में खामी होती है। छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देकर आध्यात्म के क्षेत्र में अपेक्षित सफलता पाई जा सकती है। वास्तव में मंत्र एक शब्द विज्ञान है। यह शब्द मन एवं त्र के संयोग से बना है। यहां मन का अर्थ- विचार है और त्र का अर्थ-मुक्ति। यानी गलत विचारों से मुक्ति।
मंत्र के उच्चारण से निकलता है विशिष्ट ध्वनि तरंग
मंत्र का उच्चारण विशिष्ट ध्वनि तरंग कंपन एवं अदृश्य आकृतियों को जन्म देता है। इस प्रकार मंत्र द्वारा निराकार शक्तियां साकार होने लगती हैं। इसके लगातार जप से उत्पन्न घ्वनि वायुमंडल में छिपी शक्तियों को नियंत्रित करती हैं। इस तरह उन शक्तियों पर साधक का अधिकार हो जाता है। मंत्र दो प्रकार के होते हैं- ध्वन्यात्मक एवं कार्यात्मक। ध्वन्यात्मक मंत्रों का कोई विशेष अर्थ नहीं होता है। इसकी ध्वनि ही बहुत प्रभावकारी होती है। क्योंकि यह सीधे वातावरण और शरीर में प्रवेश कर एक अलौकिक शक्ति से परिचय कराती है। इस प्रकार के मंत्र को बीज मंत्र कहते हैं। जैसे- ओं, ऐं, ह्रीं, क्लीं, श्रीं, अं, कं, चं आदि। कार्यात्मक मंत्र:-इसका उपयोग पूजा पाठ में किया जाता है। इनकी विधि को जानना आवश्यक है। जानें ऐसे करें मंत्र साधना, अवश्य मिलेगी सफलता।
हर मंत्र का अलग प्रभाव
प्रत्येक मंत्र का अलग-अलग उपयोग एवं प्रभाव है। जैसे ‘ऊं का संबंध नाभि से है। नाभि से जो श्वास के साथ उच्चारण होता है वह सीधे हमारी कुंडलिनी तक पहुंचता है। वैसे मंत्रों का उच्चारण मानसिक रुप से अधिक लाभकारी होता है। हालांकि बीज मंत्रों का उच्चारण ध्वनि के साथ करना लाभकारी होता है। दोनों आंखों के मध्य के भाग को तीसरा नेत्र कहा जाता है। यहां पर छठा चक्र अवस्थित है। इस बीज मंत्र के प्रभाव से नाभि से लेकर मस्तिष्क के भीतर बने सहस्र दल कमल तक एक स्वरूप अपने आप बनता है। इसके लगातार उच्चारण से सिद्धि प्राप्त होती है। जैसे विज्ञान के किसी प्रयोग में कितना भी प्रयास किया जाए, यदि विधि गलत होगी तो सफलता नहीं मिल सकती, उसी तरह मंत्र साधना में भी होता है। इस लेख में उन्हीं छोटी-छोटी बातों की जानकारी दी जा रही है।
मंत्र साधना के दौरान पांच शुद्धियां अनिवार्य हैं। ये हैं भाव शुद्धि, मंत्र शुद्धि, द्रव्य शुद्धि, देह शुद्धि और स्थान शुद्धि। जप के दौरान अपनी बायीं ओर दीपक तथा दायीं तरफ धूप रखें। शुभ मुहूर्त में निश्चित संख्या में संकल्प करके ही जप शुरू करें। सभी इष्ट की साधना के लिए भिन्न प्रकार की मालाओं का विधान है। मालाओं में 108 गुडिया भगवान शिव के ‘शिवसूत्र’ में वर्णित 108 ध्यान पद्धतियों के सूचक हैं। अलग-अलग कार्यो के लिए गुडियों की संख्या का विशेष महत्व होता है। जैसे -मोक्ष प्राप्ति के लिए 25 गुडियों की माला, धन और लक्ष्मी के लिए 30 गुडियों की माला, निजी स्वार्थ के लिए 27 गुडियों की माला, प्रिया प्राप्ति के लिए 54 गुडियों की माला और समस्त कार्यों एवं सिद्धियों के लिए 108 गुडियों की माला का विधान है।
जानें किस माला से किस देवी-देवता का करें जप
ऐसे करें मंत्र साधना में जानें कि किस माला से किस देवी-देवता की उपसाना उचित है। रूद्राक्ष की माला से गायत्री, दुर्गा, शिव, गणेश व मां पार्वती का जप किया जा सकता है। तुलसी की माला से श्रीराम, श्रीकृष्ण, सूर्य नारायण व विष्णु का जप किया जा सकता है। स्फटिक की माला दुर्गा, सरस्वती एवं गणेश के मंत्र जप में उपयोगी है। सफेद चंदन की माला सभी देवी देवताओं के लिए उपयुक्त है। लाल चंदन की माला से दुर्गा समेत महाविद्या का जप कर सकते हैं। कमलागट्टे की माला से लक्ष्मी का जप प्रभावी होता है। बगलामुखी साधना में हल्दी की माला उपयोगी होती है।
शुभ मुहूर्त व स्थान का भी रखें ध्यान
मंत्र साधना को शुरू करने में शुभ मुहूर्त एवं स्थान का ध्यान रखना आवश्यक है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया, दशहरा, दीपावली (सायं काल के बाद) को स्वतः शुभ मुहूर्त कहा जाता है। इन मुहूर्तों में कोई भी काम शुरू करने से सफलता मिलती है। बाकी दिनों में उपासना करने के लिए किसी योग्य पंडित की सहायता लें। मंत्र साधना में मंदिर, वन-पर्वत, नदी का तट, जलाशय, घर का पूजा स्थान एवं अशोक वृक्ष का बहुत महत्व है। इन स्थानों पर या अशोक वृक्ष के नीचे मंत्र साधना करने से शीघ्र सफलता मिलती है।