संघर्ष और चुनौतियों से डरें नहीं, ये निखारते हैं

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कर्म बनते हैं भाग्य का आधार : विचार प्रवाह
कर्म बनते हैं भाग्य का आधार : विचार प्रवाह।

Do not be afraid of conflict and challenges, it enhances : संघर्ष और चुनौतियों से डरें नहीं, ये निखारते हैं। जीवन में यह उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितनी सफलता। जो इसे समझ लेता है, वह जीवन मजे में जीता है। अन्यथा उसका समय अपने भाग्य और ईश्वर से शिकायत करते बीतता है। सच यह है कि ईश्वर कभी किसी से पक्षपात नहीं करते हैं। वे किसी को कम या अधिक नहीं देते हैं। सभी के लिए समान अवसर रहता है। चूंकि इंसान कर्म करने के लिए स्वतंत्र है तो फल भी कर्म के अनुसार ही फल मिलता है। ईश्वर तो दयालु हैं। वे करुणानिधान हैं। उनका हर फैसला जीव के हित में ही होता है। किसी के जीवन में संघर्ष ज्यादा है, तो उसके अपने फायदे हैं। इसे स्पष्ट करता एक प्रसंग दे रहा हूं। इसमें संघर्ष और चुनौतियों के सकारात्मक पहलू को उदाहरण सहित स्पष्ट किया है।

किसान को थी ईश्वर से शिकायत

ईश्वर से नाराज एक किसान अत्यंत दुखी रहता था। फसल लगाने से लेकर उसे बड़ा करने और उसकी रखवाली करने तक वह बहुत परिश्रम करता था। कभी बाढ़, कभी ओले, कभी तेज धूप तो कभी जमकर बारिश से फसल को हर बार नुकसान पहुंचता था। जब फल मिलने का समय आता तो उसे निराशा होती थी। फल उसकी अपेक्षा से बहुत कम होता था। इसके लिए वह ईश्वर को दोषी मानता था। उनसे शिकायत करते हुए प्रतिदिन करुण भाव में प्रार्थना करता था। अंततः ईश्वर ने उसकी करुण पुकार सुन ली। उसे दर्शन दिया और पूछा कि वह क्या चाहता है? वे उसकी मांग पूरी करेंगे। किसान उनकी बात सुनकर अभिभूत हो गया।

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मांगा, मौसम निर्धारित करने का अधिकार

किसान ने कहा- प्रभु, आप परमात्मा हैं। पूरी सृष्टि को आप ही चला रहे हैं। फिर भी मुझे लगता है आपको खेतीबाड़ी की कोई जानकारी नहीं है। इसलिए हर साल फसल के एक हिस्से को बर्बाद कर देते हैं। मेरी प्रार्थना है कि एक वर्ष का मौसम मेरे हाथ में दे दीजिए। मैं जैसा चाहूं वैसा मौसम हो। फिर आप देखें कि मैं पृथ्वी को अन्न के भंडार भर दूंगा। कहीं भी अन्न की कमी नहीं रहेगी। परमात्मा मुस्कराए। उन्होंने कहा, ठीक है। इस साल जैसा तुम कहोगे मैं वैसा ही मौसम दूंगा। मैं कहीं दखल नहीं दूंगा। यह सुनकर किसान बड़ा खुश हुआ। उसे लगा कि वह साल भर में ही मालामाल हो जाएगा। संघर्ष और चुनौतियों से इसे मुक्त कर दूंगा।

अधिकार पाकर गदगद किसान ने खूब परिश्रम किया

मौसम निर्धारित करने का अधिकार पाकर किसान गदगद हुआ। उसने पहले से भी ज्यादा मेहनत की। अधिक पूंजी लगाई। अधिक क्षेत्र में गेहूं की फ़सल बोई। जैसी धूप चाही, मिली। जैसा पानी चाहा, मिला। तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी। समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी। ऐसी जबरदस्त फसल तो आज तक नहीं हुई थी। किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को कि फ़सल कैसे उगाई जाती है? फ़सल काटने का समय आया। किसान गर्व और खुशी से फ़सल काटने गया। लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा। एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया। गेहूं की एक भी बाली के अंदर गेहूं नहीं था, सारी बालियां अंदर से खाली थीं। बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा, प्रभु ये क्या हुआ?

परमात्मा ने कहा-संघर्ष से मिलती है शक्ति

परमात्मा बोले, ये तो होना ही था। तुमने पौधों को संघर्ष का अवसर ही नहीं दिया। तेज धूप में उनको तपने दिया। आंधी और ओलों से जूझने दिया। उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास नहीं होने दिया। इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए। जब आंधी-बारिश आती है, ओले गिरते हैं तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है। वह अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करता है। इस संघर्ष से उसमें बल पैदा होता है। वही उसे शक्ति देता है। ऊर्जा देता है। अंततः उसे अन्न से भर देता है। उसकी जीवटता को उभारता है। सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने, गलने जैसी चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है। तभी वह अनमोल बनाता है। इसी तरह संघर्ष और चुनौतियों से मनुष्य निखरता है।

सब पर लागू होता है जीवन का सिद्धांत

ईश्वर ने किसान को समझाया। कहा कि यही सिद्धांत जीवन सहित सब पर लागू होता है। जिंदगी में संघर्ष न हो, चुनौती न हो तो मनुष्य खोखला रह जाता है। उसके अंदर कोई गुण नहीं आ पाता। चुनौतियां ही मनुष्य रूपी तलवार को धार देती है। उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं। प्रतिभाशाली बनना है तो चुनौतियां स्वीकार करनी ही पड़ेगी। अन्यथा तुम खोखले रह जाओगे। यदि प्रखर और प्रतिभाशाली बनना है, तो संघर्ष और चुनौतियों का सामना करना सीखो। उनका स्वागत करो, उनसे भागो नहीं।

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