Do Worship Chandraghanta and Kushmanda on third day : इस बार नवरात्र के तीसरे दिन करें चंद्रघंटा और कूष्मांडा की पूजा। तिथियों के क्षय होने से इस नवरात्र (2021) में यह स्थिति आई है। चंद्रघंटा अति कल्याणकारी हैं। दुर्गा के इस तीसरे रूप की महिमा निराली है। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं की उपासना होती है। मां के चौथे स्वरूप कूष्मांडा ने ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति की है। चौथे दिन इन्हीं की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में स्थित होता है। माता कूष्मांड की उपासना अत्यंत कल्याणकारी होती है। इससे भक्तों के समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते हैं तथा आयु, यश, बल एवं आरोग्य की वृद्धि होती है।
चंद्रघंटा का रूप अत्यंत शांतिदायक
माता यह स्वरूप परम शांतिदायक है। वे भौतिक और आध्यात्मिक सुख देती हैं। उनकी कांति अद्भुत है। माता के शरीर का रंग सोने के समान है। युद्ध के लिए हमेशा उद्धत रहती हैं। उनके दस हाथ हैं। उनमें खडग, वाण अस्त्र-शस्त्र रहते हैं। मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। सिंह पर सवार माता भयानक चंड ध्वनि से दुष्टों का नाश करती हैं। माता भक्तों को शांति व अभय प्रदान करती हैं। इनके भक्तों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। बाधाएं दूर हो जाती हैं। प्रेत बाधा में शीघ्र आराम मिल जाता है। इनकी उपासना से शुक्र ग्रह को भी अनुकूल बनाया जा सकता है।उपासना से शीघ्र फल मिलता है
इस बार नवरात्र के तीसरे दिन चंद्रघंटा की पूजा होती है। इनकी उपासना शीघ्र फल देने वाली है। उपासना के दौरान कई बार माता की कृपा का प्रत्यक्ष अनुभव होने लगता है। इस दौरान अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंध का अनुभव होता है। विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई पड़ने लगती हैं। इस दौरान साधक को सावधान रहना चाहिए। अपना पूरा ध्यान माता के चरणों में लगाए रखें। तीसरे दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है। अपने मन, वचन, कर्म से शरीर को पवित्र रखें। तभी माता की उपासना का फल मिलेगा। यह भी पढ़ें- राशि के आधार पर जानें अपना व्यक्तित्व और भाग्यचंद्रघंटा का मंत्र
पिंडजप्रवरारूढ़ा चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता।।
कूष्मांडा ने की ब्रह्मांड की रचना
पौराणिक कथा के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार व्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने मंद-मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। अतः इस ब्रह्मांड की यही आदि शक्ति हैं। आठ भुजाओं वाली इस देवी के माथे पर रत्नजड़ित मुकुट है। इनकी भुजाओं में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृत कलश, चक्र, गदा तथा सभी सिद्धियों व निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। बाकी किसी देवी-देवता का वास इस लोक में नहीं है। माता के शरीर की कांति भी सूर्य के समान है। अन्य कोई देवी-देवता इनके तेज की समानता नहीं कर सकते हैं। पूरे ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं में इन्हीं का तेज व्याप्त कहा गया है।माता की पूजा से भौतिक व आध्यात्मिक लाभ संभव
कूष्मांडा की पूजा नवरात्र के चौथे दिन होती है। इस बार तिथियों के क्षय के कारण तृतीया के उदय में ही चतुर्थी भी है। इस बार नवरात्र के तीसरे दिन चंद्रघंटा और कूष्मांडा की पूजा होगी। माता कूष्मांडा कम पूजन में भी अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें अपनी कृपा प्रदान करती हैं। यदि व्यक्ति सच्चे मन से उनके शरणागत होकर उपासना करे तो सारे भौतिक सुखों के साथ उसे अत्यंत सुगमता से परमपद की भी प्राप्ति होती है। अतः साधक को शांत चित्त होकर सिंह वाहिनी कूष्मांड माता का ध्यान, पूजन और इनके मंत्र का जप करना चाहिए। संस्कृत में कूष्मांड को कुम्हड़ा कहा जाता है। इसलिए इन्हें कुम्हड़े की बलि अत्यंत प्रिय है। इनकी उपासना से सूर्य ग्रह अनुकूल होते हैं।कूष्मांडा के मंत्र
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माध्यां कूष्मांडा शुभदास्तु में।।