पितरों के कोप से देवता भी नहीं बचा सकते

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पितृपक्ष में स्वयं करें श्राद्ध और तर्पण
पितृपक्ष में स्वयं करें श्राद्ध और तर्पण।

Even God can’t save anger of Pitaron : पितरों के कोप से देवता भी नहीं बचा सकते हैं। इसे कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। मौजूद जीवनशैली और एकल परिवार में मान्यताएं टूट रही हैं। परंपराओं को बोझ समझा जाने लगा है। इसमें सबसे बड़ी गत वृद्धों की हो रही है। उनकी खूब अवहेलना होती है। पितृ पक्ष औपचारिकता बन कर रह गया है। जीवन भर की अवहेलना और मृत्यु के बाद भी श्राद्ध में लापरवाही का कुपरिणाम पूरे खानदान को भोगना पड़ता है। लंबे समय से मैंने देखा है कि अक्सर लोगों की जन्मकुंडली में पितृ दोष रहने लगा है। ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। उनके जीवन में अप्रत्याशित और दुखद घटनाओं की भरमार रहती है। काफी शांति के बाद भी फायदा नहीं हो पाता है। कारण साफ है कि पितरों के कोप से देवता भी नहीं बचा सकते हैं।

बिना श्रद्धा के श्राद्ध निरर्थक

एकल परिवार में संस्कार और सामूहिक दायित्व का लोप हो रहा है। लोग इन्हें बोझ मानते हैं। कुछ तो खुलकर मानने से ही इंकार करते हैं। जो मानते भी हैं उनमें निपटाने का भाव अधिक होता है। पितृ पक्ष में इस प्रक्रिया को पूरी कर लेते हैं। अर्थात श्रद्धा का अभाव होता है। ऐसे श्राद्ध करने वाले भी पितृ दोष का शिकार होते हैं। सनातन धर्म में श्राद्ध की अत्यधिक मान्यता है। इसे महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता के अनुसार विधि और भावपूर्वक श्राद्ध नहीं होने से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसे में पितरों का कोपभाजन बाद की पीढ़ियां होती हैं। चाहे कितना भी पितृ दोष की शांति करा लें, आत्मा भटकती रहेगी तो फायदा नहीं होगा। बाद में लोग ज्योतिषियों और कर्मकांडियों को दोष देने लगते हैं। सच यह है कि पितरों के कोप से देवता भी नहीं बचा सकते हैं।

सरल है श्राद्ध की प्रक्रिया

शास्त्रों में वैसे तो 96 प्रकार के श्राद्ध बताए गए हैं । उनमें पांच ही अब प्रचलित हैं। वे हैं- एकोददिष्ट, संपिडीकरण, पार्वण, महालय एवं नांदी। मत्स्यपुराण में तीन पर ही जोर दिया गया है। वे हैं- नित्य, नैमित्तिक और काम्य। नित्य श्राद्ध का अर्थ है रोज करने वाला श्राद्ध। इसमें पितरों का स्मरण कर उन्हें जल या तिल तर्पण किया जाता है। नैमित्तिक श्राद्ध में दिवंगत पितर के लिए किया जाने वाला एकोद्दिष्ट और अन्य प्रकार के श्राद्ध होते हैं। काम्य श्राद्ध कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। इसे विशेष दिन, नक्षत्र और समय देखकर फल विशेष की कामना से किया जाता है।

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पितरों के क्रुद्ध होने पर इस तरह की आती है समस्याएं

कुल (खानदान) के हर व्यक्ति पर नकारात्मक असर पड़ने लगता है। अकाल मृत्यु, हर शुभ कार्य में बाधा, रोगों का प्रकोप आम होता है। पितृ दोष की शांति कराने पर भी कोई फायदा नहीं होता है। यदि ऐसा हो रहा है तो समझ लें कि पितर की आत्मा को मुक्ति नहीं मिली है। यदि उक्त समस्याएं पितृ दोष को शांत कराने से समाप्त होने लगे तो समझ लें कि पितर की मुक्ति तो हो गई है लेकिन दोष था। फिर उन्हें नित्य जल या तिल का तर्पण दें। कुल में प्रसन्नता लौट आएगी। यदि इससे फायदा नहीं हो रहा तो किसी योग्य कर्मकांडी से पितर का विधिवत श्राद्ध कराएं। फिर गया जैसी जगह में पिंडदान कर तब पितृ दोष की शांति कराएं। ऐसा करने पर निश्चय ही फायदा होगा। ध्यान रहे कि पितरों के कोप से उपजी समस्याओं से पितर ही मुक्त कर सकते हैं।

नित्य श्राद्ध को दिनचर्या बनाएं, माता-पिता को दें सम्मान

नित्य श्राद्ध को दिनचर्या में ही शामिल कर लें। स्नान के बाद एक मिनट में इस प्रक्रिया को पूरी कर सकते हैं। इसमें हाथ में कुश लेकर पितरों का ध्यान करें। दोनों हाथों को जोड़कर मन ही मन उनका आवाहन करें और जल समर्पित करें। ध्यान रहे कि पितर जब प्रसन्न होते हैं तो मन से आशीर्वाद देते हैं। वह आशीर्वाद अत्यंत फलदायी होता है। देवता की तुलना में पितरों को प्रसन्न करना आसान है। वे हमारे पूर्वज हैं। उनके मन में पहले से ही कुल के प्रति आत्मीयता का भाव होता है। पुराने दोष का परिमार्जन आवश्यक है। बाद में यह दोष नहीं हो, इसके लिए माता-पिता को प्रेम और सम्मान दें। वे मन से आशीष देंगे। उनका आशीष कवच की तरह रक्षा करता है। शोध से भी सिद्ध हो चुका है कि हम प्रकृति में जो भाव देते हैं, वही हमें लौटकर मिलता है।

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