वायरस से अधिक खतरनाक है मरने का भय

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संत के लिए महल, झोपड़ी और वन बराबर
संत के लिए महल, झोपड़ी और वन बराबर।

Fear of dying is more dangerous than virus : वायरस से अधिक खतरनाक है मरने का भय। यह बात ओशो ने दशकों पहले हैजा महामारी के संदर्भ में कही थी। उसकी प्रासंगिकता कोरोना में भी समान है। ये बातें मनुष्य की चेतना से जुड़ी और उपयोगी है। अतः इसे साझा कर रहा हूं। ओशो ने समय-समय पर कई बहुत ही उपयोगी बातें कहीं थी। उनकी विचारधारा से कई लोगों को असहमति भी है। लेकिन जो उपयोगी है उन्हें देखना, समझना और आत्मसात करना चाहिए। इसी भावना के अंतर्गत यह लेख दे रहा हूं। इसका लक्ष्य किसी विचारधारा का समर्थन या विरोध नहीं, बल्कि उपयोगी सामग्री देना है। इसमें कुछ सीख निहित है। उसे जानने व समझने की आवश्यकता है। जो उपयुक्त नहीं लगे, उन्हें नजरअंदाज कर देना चाहिए।

ओशो से पूछा कि हैजा के वायरस के कैसे बचें

बात 70 के दशक की है। विश्व भर में हैजा महामारी का प्रकोप था। बड़ी संख्या मैं लोगों की मौत हो रही थी। तभी किसी ने उनसे इस पर प्रश्न किया। पूछा कि इस महामारी से कैसे बचें? ओशो ने जवाब दिया कि आप प्रश्न ही गलत पूछ रहे हैं। प्रश्न होना चाहिए कि इस महामारी को लेकर मेरे मन में मृत्यु का जो भय बैठा है, उससे कैसे बचें? उन्होंने बताया कि वायरस से बचना आसान है। इसे लेकर लोगों के मन में जो आतंक बैठ गया है, उससे बेचना अत्यंत कठिन है। लोग इस महामारी से अधिक भय के कारण मरेंगे। भय से अधिक घातक कोई वायरस नहीं हो सकता है।

भयावह माहौल का वायरस से संबंध नहीं

उन्होंने कहा कि इस भयावह माहौल का वायरस से संबंध नहीं है। वायरस से अधिक खतरनाक मरने का भय है। भय के कारण को समझिए। उससे निकलने का मार्ग तलाश करिए। अन्यथा मृत्यु से पहले ही आप मर जाएंगे। अर्थात जीवित शव बन जाएंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस भयावह स्थिति का वायरस से लेना-देना नहीं है। वस्तुतः यह सामूहिक पागलपन है। जो निश्चित अंतराल के बाद होता रहता है। बस कारण बदलते रहते हैं। उन्होंने उसी समय कह दिया था कि कभी सरकारों के बीच प्रतिस्पर्द्धा, कभी दो देशों के बीच युद्ध तो कभी जैविक हथियारों की जांच से सामूहिक पागलपन की स्थिति बनती रहती है। व्यक्तिगत पागलपन की तरह ही यह होता है। इसमें कुछ लोग सदा के लिए विक्षिप्त हो जाते हैं। कुछ तो मर भी जाते हैं।

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भविष्य में युद्ध तोपों नहीं, जैविक हथियार से होंगे

ओशो ने तभी कह दिया था कि भविष्य में होने वाले युद्ध तोपों नहीं बल्कि जैविक हथियार से लड़े जाएंगे। वास्तव में हर समस्या मूर्खों के लिए होती है। ज्ञानी के लिए वह अवसर होता है। इस महामारी के दौरान आप घर बैठे अच्छी पुस्तकें पढिए। योग, प्राणायम और व्यायाम कीजिए। वजन अधिक हो तो उसे कम कीजिए। अपने अधूरे शौक पूरे कीजिए। चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइए। धन कमाने का बारे में सोचिए। बीमारी और वायरस के बारे में सोच कर निरर्थक समय नहीं गंवाइए। ऐसा अवसर मिलना अत्यंत कठिन होता है। इसका भरपूर लाभ उठाइए। उन्होंने कहा कि डर में रस लेना बंद कीजिए। आमतौर पर हर मनुष्य डर में भी थोड़ा-बहुत रस लेता है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग डरावनी फिल्म देखने नहीं जाते।

ओशो ने कहा कि टीवी देखना व अखबार पढ़ना बंद करें

उन्होंने कहा कि सामूहिक पागलपन को टीवी व अखबारों के माध्यम से बांटा जा रहा है। इसके माध्यम से आप सामूहिक पागलपन का शिकार होते हैं। यह वायरस से अधिक खतरनाक है। इसमें लोग अपना निजत्व हो देते हैं। आप भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। अतः इनसे दूरी बनाएं। इस तरह की कोई भी खबर, वीडियो आदि देखना बंद करें। महामारी की बात करनी बंद करें। उन्होंने कहा कि डर भी एक तरह का आत्म-सम्मोहन है। एक ही विचार में बार-बार डूबने से शरीर के अंदर रासायनिक बदलाव होने लगता है। यह बदलाव कई बार इतना जहरीला हो जाता है कि जान तक ले लेता है। उन्होंने कहा कि महामारी के अलावा भी विश्व में बहुत कुछ है। उनकी ओर ध्यान दें।

धैर्य रखें और ध्यान-साधना से जुड़ें

धैर्य रखें, जल्दी ही सब बदल जाएगा। तब तक ध्यान-साधना से जुड़ें। इसमें साधक के चारों ओर एक औरा बन जाता है। वह नकारात्मकता को पास नहीं फटकने देता है। अभी दुनिया में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ गई है। जो इसकी चपेट में आएंगे वे ब्लैक होल में गिर सकते हैं। इस समय शास्त्रों का अध्ययन कीजिए। विद्वानों और संगतों में बैठिए। आहार और जल पर ध्यान दीजिए। याद रखिए कि जब तक मौत आ न जाए, तब तक उससे डरें नहीं। और ऐसा संभव नहीं कि मृत्यु कभी नहीं आए। एक दिन मरना ही है। वह दिन कोई भी हो सकता है। इसलिए विद्वानों की तरह जीएं, भीड़ की तरह नहीं। ध्यान रहे कि वायरस से अधिक खतरनाक भय से दूर रहें। अतः नकारात्मक सोच से दूर रहें।

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