पांच प्रकार के विनाशकारी शाप और बचने के उपाय

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अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक
अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक।

Five type of destructive curses, avoid them : पांच प्रकार के विनाशकारी शाप होते हैं। इनसे बचने के उपाय भी जानें। शब्द कभी खत्म नहीं होते। वे अपनी फ्रिक्वेंसी में घूमते रहते हैं। उनका अपना प्रभाव क्षेत्र होता है। दैनिक जीवन में भी देखें तो हर शब्द उसे सुनने वाले के मनो-मस्तिष्क को प्रभावित करता है। मंत्रों की सफलता का भी यही आधार है। उसमें अक्षरों और शब्दों को खास तरीके से ब्रह्मांड में प्रेषित किया जाता है। वे ब्रह्मांड की शक्ति को खींचकर मंत्रकर्ता को अपेक्षित फल दिलाते हैं। गांवों में बड़े-बूढ़े अक्सर कहते थे कि कभी किसी के लिए बुरी बात नहीं कहें। भगवान तथास्तु कहते रहते हैं। कहीं ऐसा न हो कि आपने क्रोध में किसी को कुछ गलत कह दिया और उसी समय भगवान ने तथास्तु कह दिया। ऐसी बात सही हो जाती है। जानें पांच प्रकार के विनाशकारी शाप के बारे में।

पहला शाप बच्चों को अपशब्द कहना व कोसना

अक्सर लोग गुस्से में अपनी संतान को अपशब्द कह देते हैं। उन्हें खूब कोसते हैं। ऐसा दूसरों के बच्चों के साथ भी करते हैं। इस दौरान कई बार वे इससे तेरा न होना अच्छा था। मर जा, बर्बाद हो जा, तू बर्बाद जाएगा आदि कहना कई घरों में आम है। यह बहुत ही गलत बात है। माता-पिता कहकर थोड़ी देर बाद ही अपनी बात भूल जाते हैं लेकिन शब्द ब्रह्मांड में गूंजता रहता है। धर्मग्रंथों के अनुसार बड़े, विशेष रूप से माता-पिता के कथन का सीधा असर बच्चों के भविष्य पर पड़ता है। मनोवैज्ञानिक रूप से भी देखें तो बच्चे का मन कोमल और कच्चा होता है। इसके लिए माता-पिता ही सब कुछ होते हैं। जब वे कोई बात कहते हैं तो जाने-अनजाने वह बात बच्चों के मन में गहरे उतर जाता है। वह उसके भविष्य का निर्धारण करता है। प्रभावअतः भूलकर भी बच्चों को नकारात्मक बातें नहीं कहें।

परिवार व कुल के नाश की बात न बोलें न सोचें

पांच प्रकार के विनाशकारी शाप में परिवार व कुल के नाश के बारे में बोलना या सोचना है। हर घर व कुल में विवाद होता रहता है। समय के साथ वह ठीक भी हो जाता है। कई बार लंबा भी खिंच जाता है। ऐसे में सकारात्मक रहते हुए स्थिति को सुधारने का प्रयास करें। अधिक नकारात्मक होना गलत है। कई बार देखा गया है कि परिवार का कोई सदस्य क्रोध या पीड़ा में सबके नाश की बात करने लगता है। वह स्वयं या दूसरे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। वास्तव में यह गंभीर बात है। कई बार ये बातें परिवार और कुल पर भारी पड़ जाती है। ऐसे परिवार या कुल में समस्याएं बनीं रहती हैं। इस तरह के श्राप देने वाले को कुलहंता कहा जाता है।

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काली जुबान वाले से रखें दूरी

कुछ लोगों की आदत होती है दूसरे के बारे में बुरा बोलने की। दुर्भाग्य से ऐसी बातें कई बार सही साबित हो जाती हैं। ऐसे लोगों को काली जुबान वाला कहा जाता है। उनमें नकारात्मकता कूट-कूट कर भरी होती है। दूसरों के बारे में हमेशा बुरा सोचने और बोलने से उस व्यक्ति का भले बुरा होता है लेकिन बोलने वाला भी बरी नहीं होता। उसके अपने कृत्य का दुष्परिणाम भोगना ही पड़ता है। प्रकृति के कार्यकारिणी नियम के तहत उसकी बुरी सोच और बातें घूम-फिर कर उस तक भी लौटती है। उसका अपना और परिवार की जीवन भी कठिन होता है। ऐसे व्यक्ति से दूरी बनाकर रखना चाहिए। उनसे न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। आप अच्छी सोच के साथ भी उनसे मिलेंगे या कोई बात कहेंगे तो पहली नजर में उनकी नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है। वह आप में भी नकारात्मक भावना भर देते हैं।

मजबूर का दिल दुखाना व अपने बारे में बुरा सोचना विनाशकारी

किसी मजबूर, परेशान, दीन-हीन और दुखी व्यक्ति का दिल दुखाना भी पांच प्रकार के विनाशकारी श्रापों में एक है। क्योंकि इस तरह के लोगों का दिल दुखाने पर उनकी हृदय की गहराइयों से आह निकलती है। ब्रह्मांड पर इसका तीव्र असर पड़ता है। फिर जिसके बारे में आज या बद्दुआ होती है, उस तक वह मजबूती से लौटकर पहुंचता है। ऐसा ही विनाशकारी है किसी गंभीर रोग या समस्या से पीड़ित होकर अपने लिए मौत मांगना। कई लोग गंभीर बीमारी या समस्या में घिर जाने क बाद सोचते और कहते हैं कि इससे अच्छी तो मृत्यु ही है। ब्रह्मांड की शक्ति इस आवाज और भाव को सुनकर ऐसी परिस्थिति का निर्माण करने लगती है। परिणामस्वरूप स्थिति और जटिल हो जाती है। डाक्टरों का भी अनुभव है कि बीमारी के ठीक होने में दवा के साथ रोगी की सकारात्मक सोच और जीवनी शक्ति का बड़ा हाथ होता है।

ये हैं शाप से मुक्ति के उपाय

जाने-अनजाने लोग शाप की चपेट में आ जाते हैं। ऐसा होने पर भयभीत या निराश नहीं हों। मजबूती से उसका सामना करने का निश्चय करें। इसके लिए सबसे पहले मन को सशक्त बनाएं। फिर किसी योग्य पंडित की सलाह लेकर महामृत्युंजय का जप करें या करा लें। चाहें तो गायत्री मंत्र का अनुष्ठान या गायत्री शाप विमोचन का पाठ कर सकते हैं। यदि यह भी संभव न हो तो दुर्गा सप्तशती का अनुष्ठानपूर्वक पाठ या चंडिका शाप विमोचन का कुछ दिन नियमित पाठ कल्याणकारी होता है। इससे शाप के दुष्प्रभाव को कम या समाप्त किया जा सकता है। उपाय विधिपूर्वक हो। स्वयं न कर सकें तो योग्य पंडित से करा लें। इसमें चूक न हो। ऐसे शाप जन्मकुंडली में भी नहीं दिखते लेकिन जातक को तबाह कर देते है। आशा करता हूं कि आपने पांच प्रकार के विनाशकारी श्राप, उसके प्रभाव और बचाव के उपाय समझ लिये होंगे।

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