गायत्री मंत्र को यूं ही नहीं कहते हैं महामंत्र

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ऊर्जा का अजस्र स्रोत है गायत्री मंत्र
ऊर्जा का अजस्र स्रोत है गायत्री मंत्र।
Gayatri mantra is mahanatra : गायत्री मंत्र को यूं ही महामंत्र नहीं कहते हैं। इसकी महिमा निराली है। इसके जप मात्र से व्यक्ति का चतुर्दिक कल्याण निश्चित है। मनोकामना पूर्ति के लिए भी मंत्र का प्रयोग अमोघ है। मुंडकोपनिषद् में गायत्री को वेदों की जननी कहा गया है। यही एक मात्र ऐसा मंत्र है जिसकी उपासना से समस्त देवी-देवताओं का ध्यान हो जाता है। इसी कारण इसे अतिगोपनीय माना गया है। उपनयन संस्कार के समय आचार्य कान में मंत्र का ज्ञान देते हैं। देवी पुराण में गायत्री मंत्र और उसके अक्षरों की चैतन्य शक्तियों के बारे मे विस्तार से बताया गया है।
 
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गायत्री मंत्र

ऊं भूभुर्व: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात्। 
 
मंत्र में ऊं भूभुर्व: स्वः को देवी का प्रणव माना जाता है। इसके बाद के शब्दों की कुल संख्या 24 है। इनके अक्षरों की चैतन्य शक्तियां और इनके कार्य अलग-अलग हैं। यजुर्वेद के अनुसार इनका विभाजन ऐसे किया गया है। नीचे उनका विवरण देंखें। आप खुद समझ जाएंगे कि गायत्री मंत्र को यूं ही महामंत्र नहीं कहा जाता है।

गायत्री  वर्ण देवता   शक्ति / कार्य


तत्      गणेश            सफलता, विघ्‍नहरण, बुद्धि वृद्धि
स       नरसिंह           पराक्रम, पुरूषार्थ, शत्रुनाश
वि       विष्णु            प्राणियों का पालन, रक्षा
तु:       शिव            निश्चलता, आत्मपरायण, मुक्तिदान, आत्मनिष्ठा
व        श्री कृष्ण         योग, क्रियाशीलता, कर्मयोग, सौन्दर्य
रे        राधा             प्रेम, द्वेष समाप्ति, प्रेम दृष्टि
णि       लक्ष्मी           धन, पद, यश और योग्य पदार्थ की प्राप्ति
यं        अग्नि            तेज, उष्णता, प्रकाश, सामर्थ्‍यवृद्धि, तेजस्विता
भ        इन्द्र             रक्षा,शत्रु के अनिष्ट आक्रमण से रक्षा
र्गो       सरस्वती         बुद्धि, मेधावृद्धि, चातुर्य,दूरदर्शिता, विवेकशीलता
दे        दुर्गा             दमन, विध्न पर विजय, शत्रुसंहार
व        हनुमान            निष्ठा, कर्तव्यपरायणता, निर्भयता, ब्रह्मचर्य निष्ठा
स्य       पृथ्वी             गंभीरता, क्षमाशीलता, भारवहनक्षमता, सहिष्‍णुता

घी        सूर्य              प्राण, प्रकाश,आरोग्य वृद्धि
म        श्रीराम            मर्यादा,मर्यादा पालन, मैत्री, अविचलता
हि        सीता             तप,निर्विकारता, पवित्रता,शील      
घि        चन्द्र             शांति, क्षोभ, उद्विग्धनता का शमन
यो        यम              मृत्यु से निर्भयता, समय सदुपयोग,जागरूकता
यो        ब्रह्म             उत्पादन वृद्धि, संतान वृद्धि
न:        वरुण             ईश, भावुकता, आर्द्रता, माधुर्य
प्र         नारायण          आदर्श, महत्वाकांक्षा वृद्धि, उज्जवल चरित्र
चो        हयग्रीव           साहस, उत्साह, वीरता, निर्भयता, जूझने की शक्ति
द         हंस              विवेक, उज्जवल कृति, सत्संगति, आत्मतुष्टि
यात्       तुलसी            सेवा, सत्यनिष्ठा, पतिव्रत्यनिष्ठा, आत्मशक्ति, परकष्ट निवारण 

अत्यंत कल्याणकारी है गायत्री साधना

आप समझ गए होंगे कि गायत्री मंत्र को यूं ही महामंत्र नहीं कहते हैं। यदि साधक इसी मंत्र की साधना करे तो निश्चय ही वह सभी देवी-देवताओं का कृपापात्र बन जाएगा। गायत्री मंत्र के साधकों ने इसे प्रत्यक्ष महसूस किया है। सामान्य रूप से भी गायत्री का नियमित जप या साधना अत्यंत कल्याणकारी है। कल्याण चाहने वाले हर व्यक्ति को इस महामंत्र का जप अवश्य करना चाहिए।

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