ऊर्जा का अजस्र स्रोत है गायत्री मंत्र

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ऊर्जा का अजस्र स्रोत है गायत्री मंत्र
ऊर्जा का अजस्र स्रोत है गायत्री मंत्र।

Gayatri Mantra is the inexhaustible source of energy : ऊर्जा का अजस्र स्रोत है गायत्री मंत्र। गायत्री को वेदमाता कहा जाता है। बिना उनकी उपासना के वेद मंत्रों की जागृति संभव नहीं है। ये ब्रह्ममयी तेजस शक्ति हैं। उनकी साधना करने वाला असाधारण तेजस्वी और ऊर्जावान बन जाता है। इस ऊर्जा का पात्र बनने के लिए साधक को ब्राह्मणोचित कर्म करने वाला होना चाहिए। इसका अर्थ जन्म से नहीं बल्कि कर्म से है। इसका प्रमाण इस मंत्र के ऋषि क्षत्रिय कुल में जन्मे विश्वामित्र थे। उन्होंने इसे धारण करने के लिए सदबुद्धि होने पर बल दिया है। अतः ऐसा व्यक्ति जो ब्राह्मणों की तरह कर्म करता है, वही इस महान ऊर्जा को धारण कर सकता है। अन्य लोग साधारण जप तो कर सकते हैं लेकिन इसकी साधना के पात्र नहीं हैं। हठपूर्वक साधना करने वाले कुपात्र को कई बार नुकसान उठाना पड़ता है।

अवश्य करें संध्या उपासना

इसकी साधना करने वाले को पहले सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वे इससे जुड़ी सभी आवश्यक क्रियाओं को करते हैं। इसमें सबसे आवश्यक है मन और बुद्धि पर नियंत्रण। उसका सही दिशा में उपयोग। साथ ही गायत्री मंत्र का जप करने वाले को यज्ञोपवीत संस्कार करा लेना चाहिए। उसे नियमित रूप से जनेऊ धारण करना चाहिए। गायत्री मंत्र की साधना करने वाले के लिए संध्योपासना आवश्यक है। नियमानुसार तीनों काल में संध्या करने की परंपरा रही है। वर्तमान समय में उतना कर पाना संभव नहीं है। अतः कम से कम एक बार संध्योपासना करना आवश्यक है। इसके लिए सुबह स्नान के बाद साफ वस्त्र व साफ स्थान में पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की ओर मुंह कर बैठें। तब संध्या उपासना की संक्षिप्त विधि करें। इसमें विनियोग, आचमन, प्राणायाम, मार्जन और सूर्य को अर्घ्य देना भी अवश्य शामिल होना चाहिए। तब आप गायत्री साधना के पात्र बन सकेंगे।

गायत्री मंत्र में सभी देवी-देवता, ग्रह व ऋषि

यह महामंत्र अपने आप में संपूर्ण है। इस एक मंत्र में सभी देवी-देवता, ग्रह और ऋषि समाहित हैं। इसके साथ ही इसमें ब्रह्मांड की सारी शक्ति, तत्व, कला और वर्ण निहित हैं। इसलिए मात्र इसी की साधना करने से सभी इच्छित फल प्राप्त हो जाते हैं। अतः इसके साधक को और कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं रहती है। इसके महत्व को इससे भी समझ सकते हैं कि सभी प्रमुख देवी-देवता और ग्रहों के लिए भी अलग-अलग गायत्री मंत्र हैं। संबंधित साधकों के लिए उन मंत्रों का जप अत्यंत कल्याणकारी होता है। उन मंत्रों के जप से ही संबंधित देवी-देवता के मंत्रों की सिद्धि के द्वार खुलते हैं। इसी कारण गायत्री को ऊर्जा का अजस्र स्रोत कहा जाता है।

साधना के दौरान रखें ध्यान

इसके पुरश्चरण को लेकर अलग-अलग संख्या कही जाती है। मैं इस मंत्र के ऋषि विश्वामित्र को ही आधार मानता हूं। उन्होंने 32 लाख जप करने का विधान बताया है। जय जप घर के शांत कोने, पर्वत शिर, नदी तट, देवालय, पीपल की छाया आदि स्थान पर किया जाता है। इसमें मुख्य आशय यह है कि जप के दौरान ध्यान एकाग्रचित और शांत हो। जप के दौरान साधक का पूर्ण सात्विक रहना आवश्यक है। इसमें भोजन, शयन और आचरण पर विशेष ध्यान हो। शारीरिक और मानसिक शुधद्धता का भी पालन करना चाहिए। साधना शुरू करने के पहले गायत्री माता की पूजा और जप का संकल्प अवश्य लें। फिर मंत्र का चार शाप विमोचन करें। ये हैं- ब्रह्म शाप विमोचन, वशिष्ठ शाप विमोचन, विश्वामित्र श्राप विमोचन और शुक्र शाम विमोचन। फिर ध्यान और मुद्राएं कर जप शुरू करें। जप संख्या, स्थान व समय हर दिन समान हो।

गायत्री मंत्र

ऊं भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।

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