God is the five elements : पंचतत्व ही हैं भगवान के रूप। समझना चाहिए। इसीलिए कहा गया है कि कण-कण में भगवान हैं। पंचतत्व या पंचभूत को सभी ग्रंथों में महत्व दिया गया है। मानव शरीर भी इन्हीं पंच तत्वों से बना है। कई विद्वानों ने तो यहां तक कहा है कि यही पंचतत्व सृष्टि का आधार है। इनके संतुलन से सृष्टि का संचालन होता है। इसमें गड़बड़ी हुई तो शरीर क्या सृष्टि का संतुलन भी बिगड़ जाता है। अतः सबसे पहले यह जानें कि पंचतत्व है क्या? इसे स्पष्ट करने के लिए भगवान शब्द को भी अलग-अलग करके देखें। भगवान शब्द में भ से भूमि (पृथ्वी), ग से गगन, व से वायु, आ से आग और न से नीर (जल) बनता है। हो गया पंचतत्व पूरा सात ही भगवान भी। वास्तव में विज्ञान की ताजा खोज गॉड पार्टिकल्स का यह मूर्त रूप है।
पंचतत्व का संतुलन आवश्यक
धर्मग्रंथों में ही नहीं आयुर्वेद में भी पंचतत्व का संतुलन जरूरी माना गया है। इसके संतुलन में गड़बड़ी से ही मनुष्य बीमार पड़ता है। प्रकृति में समस्याएं आती हैं। उदाहरण के लिए यदि जल तत्व बढ़ जाए तो भारी बारिश, भू-स्खलन और बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है। भूमि या पृथ्वी के असंतुलन से भूकंप, ज्वालामुखी आदि से सभी परिचित हैं। इसकी अति जल प्रलय के रूप में हो सकती है। इसी तरह वायु, आग और गगन या आकाशीय के असंतुलन के प्रभाव को सहज समझा जा सकता है। शास्त्रों में इन्हीं पंचतत्व या पंचमहाभूत को संतुलन पर जोर दिया जाता रहा है। ऋषि-मुनि भी इन्हें ही साधने या संतुलन बनाने की बात करते थे। क्योंकि पंचतत्व ही हैं भगवान के रूप। इसका मनुष्य पर प्रभाव देखें। मनुष्य की पांच इंद्रियां इन्हीं पंचतत्वों से संचालित और प्रभावित होती हैं। इन पर एक-एक कर नजर डालें।
बुध ग्रह हैं भूमि या पृथ्वी के स्वामी
बुध को पृथ्वी का स्वामी माना गया है। इसके अधिकार क्षेत्र में मानव शरीर का हड्डी और मांस आता है। वात, पित्त और कफ भी इसके अंतर्गत है। आयुर्वेद में इसी आधार पर चिकित्सा की बात है। पृथ्वी के पांच गुण माने जाते हैं। वे हैं-शब्द, स्पर्श, रूप, स्वाद और आकार। आकार के साथ भार व गंध भी इसका विशिष्ट गुण है। वास्तव में पृथ्वी विशालकाय और शक्तिशाली चुंबक है। विज्ञान भी गुरुत्वाकर्षण बल के रूप में इसे स्वीकार कर चुका है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की बात स्थापित हो चुकी है। ऋषियों ने हजारों साल पहले इसे समझ लिया था। इसलिए वास्तु शास्त्र में घर के दक्षिण भाग को ऊंचा व भारी रखने को कहा गया है। सोते समय दक्षिण की ओर सिर रखना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता रहा है। कहा जाता है कि उधर पैर न रखें। उधर यमराज व पूर्वजों का वास है।
ब्रह्मांड का कारक है आकाश
पंचतत्व ही हैं भगवान को प्रमाणित करने वाला तत्व आकाश भी है। वह ब्रह्मांड का कारक है। इसके स्वामी गुरु और देवता शिव हैं। यह असीम अर्थात सीमारहित है। आशा व उत्साह इसके गुण हैं और वात व कफ धातु। इसका संबंध कान से हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार शब्द, अक्षर और नाद को ब्रह्म का रूप माना गया है। ये कान के माध्यम से जब मस्तिष्क में पहुंचते हैं तो इसका अर्थ निकलता है। इसी कारण ज्योतिष में श्रवण शक्ति का कारक बृहस्पति को माना गया है। आकाश में होने वाली प्रकाश, ताप, तरंगें व चुंबकीय क्षेत्र आदि का प्रभाव मनुष्य ही नहीं प्रकृति पर भी सीधा पड़ता है। वास्तु शास्त्र में इसे रिक्त क्षेत्र माना जाता है।
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स्पर्श से जुड़ा है वायु, विष्णु इसके देवता
वायु का कारक तत्व स्पर्श है। इसके स्वामी शनि और देवता विष्णु हैं। सांस लेने की क्रिया तमाम जीव-जंतु को जीवित रखने में यह महत्वपूर्ण होता है। इसके बिना धरती पर जीवन की भी कल्पना नहीं की जा सकती है। नाड़ी तंत्र भी इससे ही संचालित होता है। यह पृथ्वी का पालक तत्व है। इसलिए विष्णु को पालनहार कहा जाता है। शरीर ही नहीं, ब्रह्मांड में इसका संतुलन बहुत जरूरी है। इसमें तनिक भी गड़बड़ी घातक साबित हो सकता है। इसके नियंत्रण से बेहतर स्वास्थ्य के साथ आयु वृद्धि भी संभव है। इसी कारण कहा गया पंचतत्व ही हैं भगवान के रूप।
आग में है ऊर्जा का स्रोत व जीवनी शक्ति
आग या अग्नि में है ऊर्जा का स्रोत। इसमें ही ब्रह्मांड की जीवनी शक्ति निहित है। सूर्य और मंगल इसके स्वामी और सूर्य देवता भी हैं। वेदों में सूर्य को प्रधान देवता का दर्ज दिया गया है। इसकी धातु पित्त है। सूर्य की किरणें इसका मुख्य स्रोत है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन ही संभव नहीं है। यह न हो तो चारों ओर अंधकार ही रहेगा। यही ऊर्जा और प्रकाश देती है। इसके भी गुण में शब्द, स्पर्श के साथ रूप हैं। इसका सीधा संबंध नेत्र और रक्त से हैं। इसलिए मंगल और सूर्य से स्वास्थ्य, यश, नेत्र और रक्त के बारे में जाना जाता है।
रस व स्वाद का आधार है जल
जल तत्व के स्वामी ग्रह चंद्रमा और शुक्र तथा देवता इंद्र व वरुण हैं। कुछ विद्वान ब्रह्मा जी को भी जल का देवता मानते हैं। इसका कारक तत्व रस को माना गया है। इसका सीधा संबंध रक्त या खून से है। क्योंकि पानी और खून दोनों तरल होते हैं। इसकी धातु कफ है। जल के चार गुण माने गए हैं। वे हैं- शब्द, स्पर्श, रूप और रस। रस का अर्थ स्वाद से भी है। इस तरह से इसका संबंध जीभ से भी होता है। यह भी जीवन का आवश्यक तत्व है। सभी जानते हैं कि पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। उम्मीद है कि आपने समझ लिया होगा कि किस तरह से पंचतत्व ही हैं भगवान के रूप।
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