भगवान ने इंसान बनाए, हमने बनाए अलग-अलग धर्म

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भगवान ने इंसान बनाए, हमने बनाए अलग-अलग धर्म
भगवान ने इंसान बनाए, हमने बनाए अलग-अलग धर्म।

God made humans we created different religions :  भगवान ने इंसान बनाए और हमने बनाए अलग-अलग धर्म। स्वामी विवेकानंद ने इसकी व्याख्या की है। उन्होंने बड़े सुंदर तरीके से इसके कारण भी बताए हैं। यह प्रकरण काफी चर्चित हुआ। घटनाक्रम इस प्रकार है। यह तो सभी जानते हैं कि विवेकानंद हर धर्म व क्षेत्र के लोगों के चहेते रहे। उन्हीं के एक अनुयायी मुशीं फैज अली ने स्वामी जी से इस बारे में सवाल पूछा था।

अल्लाह एक तो लोग इतने प्रकार के क्यों

मुंशी ने पूछा, स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लाह एक है। यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा? स्वामी जी बोले, सत्य है। मुंशी जी ने पूछा, तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये? जैसे- हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि। हद तो यह कि सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दे दिए। एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे क्या एतराज था? सब एक होते तो न कोई लड़ाई होती और न कोई झगड़ा होता। स्वामी जी हंसते हुए बोले, ऐसी सृष्टि कैसी होती? उसमें एक ही प्रकार के फूल होते? कल्पना करें उस बाग का जिसमें केवल गुलाब हो। यदि कमल, रजनीगंधा एवं गेंदा जैसे फूल न हो? यह तो वही बात हुई कि भोजन में रोज एक ही भोजन परोसा जाए। फिर कैसा लगेगा? दुनिया फीकी नहीं लगती? यह बात फैज की समझ में आ गई।

इंसान ने बनाए धर्म

मुंशी जी ने फिर पूछा, इतने मजहब क्यों? स्वामी जी ने कहा, ” मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं। भगवान ने इंसान बनाए हैं। मुंशी जी ने फिर सवाल दागा। ऐसा क्यों है कि एक मजहब में कहा गया गाय व सुअर खाओ, दूसरे में कहा गया है कि गाय मत खाओ, सुअर खाओ और तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ, सुअर न खाओ। इतना ही नहीं कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो। स्वामी जी हंस पड़े। फिर मुंशी जी से पूछा कि क्या ये सब प्रभु ने कहा है? मुंशी जी बोले नहीं,”मजहबी लोग कहते हैं।

क्षेत्र के हिसाब से बदलते हैं भोजन व रीति-रिवाज

स्वामी जी बोले, किसी भी जगह का भोजन वहां की जलवायु की देन है। सागर तट पर बसने वाला व्यक्ति खेती नहीं कर सकता। वह सागर से पकड़ कर मछलियां ही खाएगा। उपजाऊ भूमि में खेती हो सकती है। वहां के लोगों को खेती के लिए गाय, बैल, धरती, नदी व पानी बहुत उपयोगी लगे। उन्होंने उन सब को माता माना।  क्योंकि ये सब माता के समान उनका पालन-पोषण करती हैं। जहां मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी? खेती नहीं होगी तो वे गाय और बैल का क्या करेंगे? अन्न है नहीं तो खाद्य के रूप में पशु को ही खाएंगे। तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है? वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नहीं है कि कृषि पर निर्भर रह सकें।

स्थिति के आधार पर बनती है व्यवस्था

स्वामी जी बोले, भगवान ने इंसान बनाए हमने स्थिति के आधार पर व्यवस्था बनाई।  हिंदू कहते हैं कि मंदिर जाने या पूजा करने से पहले स्नान करो। मुसलमान नमाज पढ़ने से पहले वजु करते हैं। क्या अल्लाह ने कहा है कि नहाओ मत। उन्होंने ही जवाब दिया, नहीं, अल्लाह ने नहीं कहा। अरब देश में पानी कम है। वहां पीने के लिए पानी की समस्या रहती है। ऐसे में पांच समय नहाना कैसे तर्कपूर्ण होगा? भारत में यह संभव है। यहां खूब नदियां, झरने, तालाब व कुएं हैं। तिब्बत में पानी तो है लेकिन मौसम के कारण पांच बार नहाना संभव नहीं है। स्वामी जी ने कहा कि यही हाल अंतिम संस्कार में है। अरब में पेड़ कम थे। जलाना संभव नहीं था। अतः दफनाया जाता है। भारत में वृक्ष प्रचूर हैं। यहां अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ। बाद में लोगों ने इसे धर्म से जोड़ दिया।

तार्किक आधार पर नियम बदलने से प्रभु नाराज नहीं होते

फैज अली ने पूछा कि यदि मुसलमान शव को जलाया जाए और हिंदू दफनाए तो क्या प्रभु नाराज नहीं होंगे? स्वामी जी ने कहा, प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश है। भगवान ने इंसान बनाए इसलिए वे हमसे कभी रुष्ट नहीं होते। वे प्रेम से भरे करुणा के सागर हैं। हमें उनसे डरना नहीं, प्रेम करना चाहिए। वे पिता समान हैं। डरते तो उससे हैं, जिससे हम प्यार नहीं करते। स्वामी जी ने शांत स्वर में कहा। प्रभु की माया को कोई नहीं समझता। मेरा मानना है कि, सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है। जिस प्रकार विभिन्न मार्गों से बहती हुई नदियां समुद्र में गिरती हैं। उसी प्रकार सभी रास्ते परमात्मा की ओर ले जाते हैं।

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