प्रेम के भूखे भगवान

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प्रेम के भूखे होते हैं भगवान।
प्रेम के भूखे होते हैं भगवान।

God wants your love : प्रेम के भूखे भगवान। वृन्दावन में श्री कृष्णा की एक बहुत ही समर्पित भक्त थी । नाम था रूपा दाई घर-परिवार त्याग चुकी थी। कान्हा को अपना लल्ला कहा करती थी उन्हें ही अपना परिवार मान चुकी थी। उन पर खूब प्रेम लुटाती। बहुत ही लाड़-दुलार से रखा करती। दिन-रात उनकी सेवा में लीन रहती थी। दुनियादारी से जैसे हर मतलब उनको ख़त्म ही हो गया था। क्या मजाल कि उनके लल्ले को ज़रा भी तकलीफ हो जाए।

एक बार की बात है रूपा बाई अपने लल्ला के विश्राम का सारा प्रतिबन्ध कर खुद भी थोड़ी देर के लिए विश्राम करने गयीं तभी अचानक उसे जोर से हिचकियाँ आने लगी और उन हिचकियों से वो इतनी बेचैन हो गयी कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था। उन सब का कारण वो सोच ही रही थी की उसी समय रूपा बाई की पुत्री जिसका विवाह पास ही के गाँव में किया हुआ था उससे मिलने व उसका हाल-चाल लेने उसके घर आई। उसके आते ही रूपा बाई की हिचकियां जैसे गायब हो गयीं । अच्छा महसूस होने पर उसने अपनी पुत्री को सारा वृत्तांत सुनाया।

पूरी बात सुनने के बाद पुत्री ने बताया कि ” माँ मैं तुम्हे सच्चे मन से याद कर रही थी हो सकता है उसी के कारण तुम्हे हिचकियां आ रही हों और अब जब मैं तुम्हारे हूँ तो तुम्हारी हिचकिया बंद हो गयीं ।

रूपा बाई इस बात को सुन कर हैरान रह गयी “भला ऐसा भी कभी होता है ?” तब पुत्री ने कहा हाँ माँ ऐसा ही होता है, जब भी हम किसी अपने को मन से याद करते है तो हमारे अपने को हिचकियां आने लगती हैं।

तब रूपा बाई ने सोचा कि मैं तो अपने कान्हा को हर पल याद करती हूँ ऐसे तो मेरे लल्ला को भी हिचकियां आती होंगी?इस बात से बिल्कुल अनजान कि प्रेम के भूखे भगवान।

“हाय मेरा छोटा सा लल्ला हिचकियों से कितना बेचैन हो जाता होगा। अब से मैं अपने लल्ला को जरा भी बेचैन नहीं होने दूंगी। ” उसी दिन से रूपा बाई ने ठाकुर जी को याद करना छोड़ दिया।

अपने लल्ला तथा उनकी सेवा की ज़िम्मेदारी उसने अपनी पुत्री को दे दी। उस दिन के बाद से रूपा बाई ने अपने लल्ला को याद करना भी छोड़ दिया। और इस तरह से महीनों बीत गए और फिर एक दिन जब रूपा बाई सो रही थी तो स्वयं बांके बिहारी उसके सपने में आये और रूपा बाई के पैर पकड़ कर ख़ुशी के आंसू बहाने लगे ? रूपा बाई फौरन उठ कर प्रणाम करते हुए रोने लगती है और कहती है कि..

“प्रभु आप तो उन को भी नहीं मिल पाते जो ध्यान लगाकर निरंतर आपका ध्यान करते हैं। फिर मैं पापिन जिसने आपको याद भी करना छोड़ दिया आप सपने में दर्शन देने कैसे आ गए ?”

तब बिहारी जी ने मुस्कुराते हुए कहा- माँ, कोई भी मुझे स्वार्थ से याद करता है। या फिर कोई साधू ही जब मुझे याद करता है तो उसके पीछे भी उसका मुक्ति पाने का स्वार्थ छिपा होता है। प्रेम के भूखे  भगवान ।

लेकिन माँ तुम ऐसी पहली भक्त हो जिसने ये सोचकर मुझे याद करना छोड़ दिया कि मुझे हिचकियां बेचैन करती होंगी।

तभी रूपा बाई अपने मिटटी के शरीर को छोड़ कर अपने कान्हा में लीन हो जाती हैं।

कान्हा हमारी भक्ति और चढ़ावे के भूखे नहीं हैं, प्रेम के भूखे होते हैं भगवान।

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