जन्मकुंडली में बनने वाले ग्रहों के अच्छे एवं बुरे योग

54
जन्मकुंडली में बनने वाले ग्रहों के दोष
जन्मकुंडली में बनने वाले ग्रहों के दोष

Good and bad planetary movements in kundali: जन्मकुंडली में बनने वाले योग। ग्रहों के अच्छे एवं बुरे योग के बारे में बिना ज्योतिषी की सहायता के स्वयं जानें। इस लेख में वह आसान विधि बताई जा रही है जिसकी सहायता से आप जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति, दशा और उनके आपके जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जान सकेंगे। इसमें सरल तरीके से बताया जा रहा है कि कुंडली के किस स्थान या घर में स्थित ग्रह का जातक पर क्या प्रभाव पड़ता है?

भाइयों पर प्रभाव

अगर आपकी कुंडली में पाप ग्रह तृतीय स्थान में है तो ऐसा जातक संभवतः बिन भाई-बहनों के होते हैं।

लग्न से तृतीय भाव मे केतु और चन्द्रमा हो तो जातक की आर्थिक स्थिति मज़बूत होती है। परन्तु भाई-बहनों की स्थिति इतनी मज़बूत नहीं होती है ।

तृतीय स्थान में सूर्य हो तो मंगल बड़े भाई को तथा शनि छोटे भाई को और राहु हो तो बड़े और छोटे दोनो भाइयों को हानि पहुंच सकती है। लेकिन इसके साथ ही केतु शुभ फल देता है अर्थात वह हर तरह की समस्या का निवारण करता है।

जन्मकुंडली में बनने वाले योग राहु और उसके साथ अगर द्वितीय स्थान में गुरु और बुध हों तो ऐसे जातक के संभवतः तीन भाई हो सकते है।

लग्न में चन्द्रमा, दूसरे भाव में शुक्र, बारहवें भाव में बुध के साथ सूर्य विराजमान हों तथा पांचवे में राहु हो तो ऐसे जातक का भाई का कष्ट में रह सकता है।

द्वितीय भाव मे कोई क्रूर ग्रह हो। शनि के साथ मंगल कहीं भी विराजमान हों और राहु तृतीय भाव मे हो तो ऐसे जातक के भाई नहीं होता है। अगर है तो या तो वो कष्ट में रहता है या उनके आपसी सामान्य अच्छे नहीं होते है।

यह भी पढ़ें- बेजोड़ है सिद्धकुंजिका स्तोत्र और बीसा यंत्र अनुष्ठान

जन्मकुंडली में बनने वाले योग छठे भाव मे मंगल, सातवें में राहु और आठवें में शनि हो तो ऐसे जातक का भाई कष्ट में रहता है।

लग्न में गुरु दूसरे स्थान पर शनि और राहु का तीसरा हो तो ऐसे जातक के भाई कष्ट में रहता है।

चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह हो तो ऐसे लोग बाल्यवस्था में माता को कष्ट देते है। शुभ ग्रह हो तो माँ को सुख-सम्मान प्राप्त होता है।

माता पर प्रभाव

लग्न से चतुर्थ भाव मे यदि पाप ग्रह हो तो ऐसे जातक की माता को कष्ट रह सकता है।

यदि दूसरे और बारहवे भाव मे पाप ग्रह हो तो जातक के माता के साथ अनबन रह सकती है।

सभी शुभ ग्रह पंचम स्थान में हो तो यह सन्तान कारक होते है। यदि पाप ग्रह पंचमस्थ हो तो यह सन्तान से सम्बंधित कष्ट प्रदान कर सकते है।

संतान पर प्रभाव

जन्मकुंडली के पंचम भाव मे मंगल का होना शुभ नही है। यदि मंगल पंचम स्थान पर विराजमान है तो ऐसे जातक को संतान सुख में बाधा आ सकती है।

यदि कुंडली के पंचम स्थान में सूर्य हो तो जातक को सन्तान सुख में कमी हो सकती है। यदि चन्द्रमा हो तो एक सन्तान प्राप्त होती है।

जन्मकुंडली में बनने वाले योग यदि कुंडली के षष्ठ भाव मे पाप ग्रह हो तो शत्रु रोग को नाश करने वाला होता है। शुभ ग्रह यहाँ पर अच्छा प्रभाव नही दे पाते।

यह भी पढ़ें- महाविपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र का कोई नहीं कर सकता सामना </ a>

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here