Gujrat is the centre of religious culture and historical heritage : धर्म-संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर का केंद्र है गुजरात। सोमनाथ, दीव, द्वारका और पोरबंदर सहित बहुत कुछ देखने लायक है। इनके बारे में काफी कुछ लिखा गया है। अतः इस बार कुछ अलग अंदाज में जानकारी दे रहा हूं। यहां नाश्ते में ढोकला, फाफड़ा व खांडवी की बहार है। तो कहीं हर सब्जी में मिठास डालकर तैयार थाली। अहमदाबाद पार करते ही काठियावाड़ी भोजन का अलग स्वाद है। तेज मिर्च-मसाले वाली काठियावाड़ी थाली जीभ में पानी ला देती है। टमाटर-सेव की सब्ज़ी मालवा का प्रिय व्यंजन है। जो काठियावाड़ी थाली का हिस्सा है। पता नहीं यह व्यंजन मूलत: मालवा का है या काठियावाड़ का।
सांस्कृतिक एकता के सूत्रों को पिरोते सोमनाथ व द्वारका
सोमनाथ और द्वारका दो सुप्रसिद्ध तीर्थस्थल है। सांस्कृतिक एकता के दो सूत्रों को पिरोते हैं। सोलह बार आक्रांताओं द्वारा तोड़े जाने के बाद सोमनाथ फिर भव्य रूप में खड़ा है। सरदार पटेल के नेतृत्व में इस भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। यह अपनी व्यवस्थाओं के कारण भी देखने योग्य है। देश के अधिकतर मंदिरों में अव्यवस्था और अराजकता फैली रहती है। तुलना करना मानव का सहज स्वभाव है। अतः यहां पहुंच कर अनायास ही मन अन्य मंदिरों से इसकी तुलना करने लगा। वाराणसी के काशी-विश्वनाथ मंदिर में शिव पर श्रद्धा से चढ़ाए जाने वाले पुष्प और बेल पत्र उन्हीं तीर्थ यात्रियों के पैरों से कुचले जाते हैं। लेकिन सोमनाथ ट्रस्ट ने यहां इसे खूब सहेजा है।
सागर तट का अलग आकर्षण
धर्म-संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर से अलग सागर का भी अगल आकर्षण है। मंदिर से सटा ठाठें मारता सागर आकर्षित करता है। लोग सागर का आनंद लेने के लिए उतावले हो रहे थे। हालांकि सोमनाथ से द्वारका तीर्थ क्षेत्र का विस्तार अधिक है। वहां समुद्र के दर्शन के लिए द्वारिकाधीश मंदिर से सटकर बनाए गए तटों की अलग ही सुंदरता है। समुद्र में मिलने को लालायित नदी को देखना अद्भुत अनुभव है। लगता है कि सागर उसे पीछे धकेलकर कह रहा था-अभी ठहरो। पहले मुझे स्वयं को संयत कर लेने दो। फिर भी समुद्र की भेजी झूमती-झाग उठातीं गर्वोन्मत्त लहरें बार-बार गोमती के किनारों को नहा जाती थीं। गोमती को अपने आगोश में लेने के लिए आतुर दिखते सागर की लहरों से यहां सावधान रहना आवश्यक है।
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मूड खराब कर देती है गोमती तट की गंदगी
गोमती के किनारे तीर्थ प्रबंधन ने कई शेड बनाए हैं। इसमें एकबारगी कुरुक्षेत्र के ब्रह्म सरोवर की याद आती है। हालांकि ब्रह्म सरोवर में काफी साफ-सफाई है। उसके विपरीत यहां गंदगी और बदबू का आधिपत्य है। तीर्थ समिति इसका रखरखाव करने में नाकाम है। सुखद बात यह है कि समीपस्थ द्वादश ज्योर्लिंग का नागेश्वर तीर्थ को स्वच्छ रखा गया है। वहां शिवलिंग को जलधार से होने वाले क्षरण से बचाने के लिए ढंका भी गया है। इसे देखकर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्मरण हो जाता है। वहां शिवलिंग का क्षरण साफ दिखता है। उज्जैन के महाकाल की भी याद आ गई। वहां शिवगंदालिंग को चीनी और दूध से रगड़कर नहलाया जाता है। धर्म-संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर में अब बारी थी दीव की।
द्वारका में पंडों व दीव में सरकार से हुई निराशा
पंडों से भी निराश हुई। उनसे प्राचीन द्वारका और उसकी अब तक की खोज के बारे में पूछा था। उन्हें श्रद्धालुओं की जेब खाली कराने के अलावा कुछ पता नहीं था। सोमनाथ और द्वारका मंदिर में हाफ पेंट पहनकर प्रवेश की पाबंदी है। इसका कारण कथित रूप से ग़ैर हिंदुओं का प्रवेश रोकना बताया गया। दीव में सागर दर्शन का मजा लेते हुए चालक ने कि़ला देखने की पेशकश की। एक बार तो मैंने मना कर दिया। फिर मन ने कहा कि देख लिया जाए। देखकर महसूस हुआ कि इसे न देखना भूल होती। यह पुर्तगाली वास्तुशैली का अनोखा नमूना है। अब तक देखे कि़लों से अलग। सागर के किनारे की इस शानदार धरोहर की शायद किसी सरकार की जरूरत नहीं है। इसीलिए इसे मिटने दिया जा रहा है।
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