इन मंत्रों से हनुमान जी देते हैं मनोवांछित फल

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हनुमान की अद्भुत शक्तियों का राज वरदान में निहित
हनुमान की अद्भुत शक्तियों का राज वरदान में निहित

hanuman ji gives desired results with these Mantras : इन मंत्रों से हनुमान जी देते हैं मनोवांछित फल। कलियुग में हनुमान को सबसे प्रभावी देवता कहा गया है। वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। भक्तों को मनवांछित फल देते हैं। रामभक्त हनुमान यूं तो भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही कुछ अमोघ मंत्र भी हैं। उनके प्रयोग से पवनपुत्र की प्रसन्नता शीघ्र हासिल की जा सकती है। प्रस्तुत हैं हनुमान के कुछ अत्यंत प्रभावी मंत्र। उनकी जप संख्या, विधि एवं प्रयोग के तरीके की भी जानकारी है। जिनके इष्ट हनुमान हैं, उन्हें उनके मंत्रों का तय संख्या में जप अवश्य करना चाहिए। इससे उनका जीवन सुखद और निरापद हो जाएगा।

हनुमान जी के अत्यंत प्रभावी मंत्र

नीचे हनुमान जी के कुछ प्रभावी मंत्र दे रहा हूं। उनके नियमित जप से भारी फायदा होना निश्चित है। मंत्रों के साथ जप की विधि है। फल की भी जानकारी है। लोग अपनी जरूरत के हिसाब से इनका उपयोग करें। इन मंत्रों से हनुमान जी फल जरूर देते हैं। चूक होने पर फल मिलने में देर होती है। ग्रह प्रतिकूल हों या समय खराब हो तो भी जप संख्या बढ़ानी चाहिए। इसके लिए योग्य गुरु का सानिध्य जरूरी है। समस्या हो तो मेल पर मुझसे भी संपर्क कर सकते हैं।

बाधा मुक्ति व उपद्रव शांति मंत्र

हौं ह् स्फ्रें ख्फ्रें ह् सैं ह् स्ख्फ्रें ह् सों हनुमते नम:

जप से पूर्व हनुमान जी का इस मंत्र से ध्यान करें

बालार्कायुत तेजसं त्रिभुवन प्रक्षोभकं सुंदरम्। 
सुग्रीवादि समस्त वानर गणै: संसेव्य पादांबुजम्। 
नादेनैव समस्त राक्षसगणान् संत्रासयंतं प्रभुम्। 
श्रीमद्राम पदांबुज स्मृति रतं ध्यायामि वातात्मजम्। 

विधि एवं फल

मंत्र जप शुरू करने से पहले समय और स्थान तय कर लें। फिर उसी स्थान पर निर्धारित अवधि में मंत्र का बारह हजार जप करें। इससे मंत्र सिद्ध हो जाएगा। अनुष्ठान के दौरान साधक को पूर्ण सात्विक भोजन करना है। भोजन में कंद, मूल व फल हो तो सर्वश्रेष्ठ होगा। जप अवधि में जमीन पर पतले कपड़े बिछा कर सोएं। इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है। यह अनुष्ठान हर तरह, खासकर घर में होने वाले उपद्रव को शांत करता है। साधक के घर में भूत, पिशाच, प्रेत की बाधा कभी नहीं आती। अकालमृत्यु का खतरा भी टल जाता है। जप करने वाले में अत्यधिक आत्मबल आता है। उसके कार्य स्वत: सिद्ध होने लगते हैं। इन मंत्रों से हनुमान जी रुके कार्य भी पूरे कर देते हैं।

अष्टादशाक्षर मंत्र

ऊं नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा

दिन में निश्चित समय पर नहा-धोकर मंत्र का जप करने से पूर्व हनुमान का ध्यान निम्न मंत्र से करें।

ऊं दह्नतप्त सुवर्ण समप्रभं भयहरं हृदये विहितांजलिम्। 
श्रवण कुंडल शोभि मुखांबुज वानराज मिहाद्भुतम्।

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विधि एवं संख्या

यह मंत्र अत्यंत उपयोगी है। 21 हजार जप तथा दसवें हिस्से का हवन करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। साधक के घर में सुख-शांति आती है। सभी प्रकार के उपद्रवों से मुक्ति मिलती है। इससे बीमारी से भी मुक्ति मिलती है। भूत, प्रेत, पिशाच आदि बाधा एवं उपद्रव खत्म हो जाते हैं।

द्वादशाक्षर मंत्र

हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्।

मंत्र का ध्यान

महाशैलं समुत्पाट्य धावन्तं रावणं प्रति।
तिष्ठ तिष्ठ रणे दुष्ट घोरारावं समुच्चरन्। 
लाक्षा रसारुणं गात्रं कालांतक यमोपमम्।
ज्लदग्नि लसन्नेत्रं सूर्य्यकोटि समप्रभम्।
श्रंगदाद्यैर्महावीरं र्वेष्टितं रुद्ररूपिणम्।
एवं रूपं हनुमन्तं ध्यात्वा पूजां समारभेत्। 

इस मंत्र को गोपनीय माना गया है। इन मंत्रों से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं। उपरोक्त की सिद्धि से अन्य कई सिद्धियां मिलने में मदद मिलती है। सिद्ध करने वाले का यश और प्रभाव तीनों लोकों में फैलता है। किसी प्रकार की कमी नहीं रह जाती है। इसकी जानकारी महादेव ने भगवान श्रीकृष्ण को दी थी। कृष्ण ने अर्जुन को इसका ज्ञान दिया। उन्होंने इसे सिद्ध कर त्रिलोक में ख्याति प्राप्त की। साथ ही अपनी क्षमता का डंका बजाया।

जप संख्या और विधि

एक लाख जप करें। फिर दसवें हिस्से का हवन करें तो मंत्र सिद्ध हो जाएगा। नदी का किनारा, निर्जन वन, मंदिर, पहाड़, गुफा या घर में ही पूरी तरह एकांत कमरे में संकल्प कर इस मंत्र का जप करना चाहिए। जप के दौरान हनुमान जी की मूर्ति या चित्र सामने हो। तेल का दीपक जलता रहना चाहिए। अनुष्ठान के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।

वीर साधन मंत्र

हं पवननंदनाय स्वाहा।

मंत्र का ध्यान

ध्यायेद्रणे हनुमंतं कपि कोटिसमन्वितम्।
धावंतं रावणं जेतुं दृष्टा वकमुत्थितम्।
लक्ष्मणं च महावीरं पतितं रणभूतले।
गुरं च क्रोधमुत्पाद्य गृहीस्त्वा गुरुपर्वतम्।
हाहाकारै: सदर्पेश्च कंपयंतं जगत्रयम्। 
ब्रह्मांडं स समावाप्य कृत्वा भीमं कलेश्वरम्।

जप विधि और फल

इन मंत्रों से हनुमान जी प्रसन्न की कड़ी में यह मंत्र अत्यंत प्रभावशाली है। इसकी साधना भी कठिन है। एक सप्ताह की इस साधना में संकल्प लेकर छह दिन-रात मिलाकर प्रतिदिन छह-छह हजार जप करना होता है। सातवें दिन रात के चौथे पहर में जप के दौरान हनुमान पहले विकराल रूप में दर्शन देते हैं। उस दौरान गुरु का रहना उपयोगी होता है। अन्यथा साधक डर सकता है। हनुमान जी दर्शन देकर मनचाहा वरदान देते हैं। साधना के दौरान पूर्णत: ब्रह्मचर्य का पालन करें। रोज सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें। संध्यादि करके पहले आठ बार मूल मंत्र का जप करें। फिर बारह बार जल हाथ में लेकर मंत्र पढ़कर जल को अपने शरीर पर छिड़कें। तब नदी के किनारे या पहाड़ पर बैठकर रेचक व कुंभक कर फिर ध्यान कर मंत्र जप शुरू करें। 

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