Hanuman still meets Matangs in Srilanka : आज भी श्रीलंका में मातंगों से मिलते हैं हनुमान। इस तथ्य से तो सभी परिचित हैं कि भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान माता सीता के आशीर्वाद से आज भी जीवित हैं। लेकिन कम लोगों को पता है कि वे हर 41 साल में श्रीलंका में वहां के मूल निवासी मातंगों (जनजातियों) से मिलने आते हैं। कहा जाता है कि हनुमान ने मातंगों को शिव के शरीर पर राख लपेटे होने का रहस्य बताया। इस कथा की सच्चाई तो वे ही जानें जो इससे जुड़े हैं। मैं उस कथा को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
हनुमान ने बताया शिव के शरीर पर लगे राख का महत्व
हनुमान जी ने मातंगों को बताया कि भगवान शिव ने एक बार सोचा कि मैं हर किसी चीज का विनाश कर सकता हूं। यह बात ब्रह्मा और विष्णु को पता चल गई। तब ब्रह्मा ने शिव से अनुरोध किया कि वे उन पर अपनी शक्तियों का प्रयोग करें। शिव ने ऐसा ही किया। देखते ही देखते ब्रह्मा जी जल कर राख बन गए। इस घटना से शिव जी दुखी हो गए। उन्होंने पश्चाताप करना शुरू किया। पश्चाताप करते हुए उस राख को मुट्ठी में लेने वाले थे कि उन्होंने ब्रह्मा जी को राख से प्रकट होते देखा। तब ब्रह्मा ने कहा कि आपकी विनाश शक्ति के कारण इस राख की रचना हुई है। जहां रचना होती है वहां मैं होता हूं।
विष्णु ने शिव की विनाशक शक्ति का खुद पर कराया प्रयोग
आज भी श्रीलंका में मातंगों ने मिलते हैं हनुमान। उन्होंने जो कथा सुनाई, उसके अनुसार ब्रह्मा पर शिव की विनाशक शक्ति का असर देख विष्णु ने भी खुद पर उन शक्तियों का प्रयोग करने को कहा। भगवान के हठ पर उन्होंने ऐसा ही किया। फिर विष्णु के स्थान पर भी राख का ढेर हो गया। उस राख से आवाज आ रही थी कि महादेव, मैं अब भी यहीं हूं। अपनी शक्तियों का प्रयोग इस राख पर तब तक करें जब तक इसका आखिरी कण भी समाप्त नहीं हो जाए। शिव ने ऐसा ही किया। लेकिन, जैसे ही राख का आखिरी कण बचा, उससे भगवान विष्णु प्रकट हो गए। इस रहस्य को देखते हुए शिव ने स्वयं अपने ऊपर अपनी विनाशक शक्तियों का प्रयोग किया। उन्होंने सोचा कि जब विनाश ही नहीं रहेगा तो रचना और पालन कैसे संभव होगा?
राख विनाश का प्रतीक, जहां विनाश वहीं निर्माण
अपनी ही विनाशक शक्ति से शिव राख बन गए। उनके राख बनते ही ब्रह्मा और विष्णु भी राख में बदल गए। कुछ समय के लिए सब कुछ अंधकारमय हो गया। लेकिन, जल्दी ही राख से फिर ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रकट हो गए। सब कुछ पहले की तरह हो गया। इस घटना की स्मृति के रूप में भगवान शिव ने उस राख को अपने शरीर पर लपेट लिया। यह घटना इस ज्ञान का भी प्रतीक है कि विनाश और निर्माण एक दूसरे के पूरक हैं। जहां निर्माण होता है, वहां विनाश अवश्यंभावी है और जहां विनाश होता है, वहां निर्माण होना तय है।
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