कर्म और उसके फल पर रखें विश्वास, करुणानिधान हैं भगवान

251
कर्म और उसके फल पर रखें विश्वास, करुणानिधान हैं भगवान
कर्म और उसके फल पर रखें विश्वास, करुणानिधान हैं भगवान।

Have faith in karma and its fruits, God does not do injustice : कर्म और उसके फल पर रखें विश्वास। भगवान करुणानिधान हैं। वे कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करते हैं। इसे सूत्र वाक्य मानें और उन पर विश्वास रखें। अक्सर लोग यह कहते दिख जाते हैं कि मैंने कभी किसी का बुरा नहीं किया। फिर मेरे साथ बुरा क्यों होता है? दूसरी ओर कई लोग हमेशा बुरा करते रहते हैं लेकिन मजे में जीवन बिताते हैं। ऐसे में कई बार लोग भगवान पर पक्षपाती होने या उनके होने न होने पर संशय करने लगते हैं। ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर समेटे एक बोध कथा है। इस तार्किक कथा को कुछ विद्वान श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद के रूप में प्रस्तुत करते हैं। भगवान और अर्जुन का ऐसा प्रसंग मुझे किसी अधिकृत ग्रंथ में नहीं दिखा। प्रासंगिक और उपयोगी होने के कारण साझा कर रहा हूं।

अच्छे और सच्चे के साथ बुरा क्यों

कथा के अनुसार अर्जुन ने एक बार श्रीकृष्ण से इस बाबत पूछा। उन्होंने कहा कि आप अपने भक्त और अच्छे लोगों को भी संकट में जाते क्यों देखते रहते हैं? क्यों नहीं उसका दुख दूर करते हैं? दूसरी ओर आपकी निंदा करने वाला पापी सुख पाता है। इसका रहस्य क्या है? भगवान यह सुन मुस्कराए। उन्होंने कहा कि कई बार लोग जो देख और समझ रहे होते हैं, वह पूरा नहीं होता है। वह सत्य का एक रूप भर होता है। उसके पीछे कई कारण निहित होते हैं। उसे पूरे परिदृश्य में देखने की आवश्यकता है। तभी सत्य को पूरी तरह समझा जा सकता है। इसे स्पष्ट करने के लिए दो ऐसे ही चरित्र वाले लोगों की कथा सुनो। तुम्हें कर्म और उसके फल के साथ ही सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।

दो विरोधी चरित्र वाले लोगों की कथा

श्रीकृष्ण ने बताया कि एक नगर में दो व्यक्ति रहते थे। पहला व्यक्ति अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति का था। धर्म और नीति का पालन करता था। प्रभु भक्ति के साथ ही हमेशा दूसरों के भले में लगा रहता था। फिर भी अत्यंत सामान्य जीवन जीता था। दूसरा अत्यंत दुष्ट और नास्तिक था। अधर्म और अनीति के कार्य में लिप्त रहता था। वह झूठा और मक्कार था। चोरी, नशाखोरी दूसरे को परेशान करता रहता था। यहां तक की मंदिर में भी चोरी से हिचकिचाता नहीं था। एक दिन देर शाम को तेज बारिश हो रही थी। चारों ओर अंधेरा छा गया था। यह देख दुष्ट व्यक्ति चुपचाप मंदिर घुसकर गुल्लक से सारे पैसे निकाल लिये। यहां तक कि भगवान की मूर्ति पर चढ़े आभूषणों को भी चोरी कर भाग निकला। उसी समय रोज की तरह पहला व्यक्ति आरती में शामिल होने और भगवान के दर्शन करने मंदिर पहुंचा।

यह भी पढ़ें- सकारात्मकता है बड़ी ताकत इससे मिलती है निश्चित सफलता

चोरी की दुष्ट ने सजा मिली धार्मिक व्यक्ति को

पहले व्यक्ति के मंदिर में कदम रखते ही पुजारी भी आ गए। उन्होंने देखा कि भगवान के सारे आभूषण गायब हैं। गुल्लक टूटा हुआ और खाली पड़ा था। यह देख पुजारी ने शोर मचा दिया। वहां भीड़ इकट्ठी हो गई। सबने यही माना कि पहले व्यक्ति की चोरी की है। उसकी जमकर पिटाई हुई। किसी तरह जान बचाकर बाहर भाग तो एक वाहन की चपेट में आकर घायल हो गया। दूसरी ओर मंदिर से चोरी कर निकला व्यक्ति जब बाहर सड़क पर पहुंचा तो उसे नोटों और स्वर्णाभूषणों से भरी पोटली मिल गई। वह अत्यंत प्रसन्न हुआ। उन पैसों को उसने जुआ, शराब और दूसरे गलत कामों में खर्च करने लगा। सब जानकर पहला व्यक्ति अत्यंत दुखी हुआ। वह भगवान को कोसने लगा। कहा कि भगवान पर विश्वास और उसके अच्छे आचरण का उसे तो सिर्फ दंड मिला। कर्म और उसके फल पर से उसका विश्वास उठने लगा।

चित्रगुप्त ने स्थिति स्पष्ट की

समय के साथ दोनों बूढ़े होकर एक ही दिन मरे। एक साथ यमपुरी में चित्रगुप्त के समक्ष प्रस्तुत हुए। उनके कर्मों का हिसाब पूछा जाने लगा। यह देखकर पहला व्यक्ति चिल्लाया कि इस नाटक का क्या अर्थ है, जबकि होता उलटा है। चित्रगुप्त ने कहा कि शांत होओ। पहले उसका रहस्य जानो। पिछले जन्म के कर्मों के आधार पर तुम्हारा जीवन अत्यंत कष्ट में बीतना था। जिस दिन तुम्हारी मंदिर में पिटाई हुई और तुम दुर्घटनाग्रस्त हुए, उस दिन अत्यंत अपमानजनक स्थिति के बाद तुम्हारी मृत्यु होनी थी। तुम्हारे सत्कर्मों से वह काफी कम हो गया। अत्यंत दुख के बदले तुमने सामान्य जीवन बिताया। दूसरी ओर दुष्ट व्यक्ति को पिछले जन्म के कर्म से शानदार जीवन बिताना था। जब मंदिर में चोरी की और धन से भरी पोटली मिली, उस दिन उसका राजयोग था। अपने कुकर्मों से उसने सामान्य जीवन जीया और राजयोग कुछ धन तक में सिमट गया।

भगवान अत्यंत दयालु, उनके निर्णय को सहर्ष स्वीकारें

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म और उसके फल पर विश्वास रखने की सीख दी। उन्होंने कहा कि मनुष्य तात्कालिक आधार पर कर्म और फल का आकलन करता है। वह पूर्व जन्म के कर्म और उसके फल के मर्म को समझ नहीं पाता है। ईश्वर सब जानते हैं। वे करुणानिधान हैं। सबका भला चाहते हैं। जैसे ही कोई मनुष्य अच्छा कर्म करने लगता है, उसके बुरे कर्म के फलों को कम या अधिक करने लगते हैं। कर्म फल से पूरी तरह मुक्ति संभव नहीं है। मनुष्य यह बात नहीं समझ पाता है। अधर्म व अनीति से दूर रहकर अच्छे कर्म करते रहें। ईश्वर पर विश्वास रखें। वे निश्चय ही अपनी कृपा बनाए रखते हैं। दुख और परेशानियों को देख यह न समझें कि ईश्वर साथ नहीं हैं। यह समझें कि वे साथ हैं। हमारा और अधिक बुरा होने से रोक रहे हैं।

यह भी पढ़ें- बिना जन्मकुंडली व पंडित के जानें ग्रहों की स्थिति और उनके उपाय

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here