हिंदू धर्म मात्र सिद्धांत नहीं, जीवन जीने का मार्ग

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मात्र संयोग नहीं किसी से मिलना, इसके पीछे होते हैं कारण
मात्र संयोग नहीं किसी से मिलना, इसके पीछे होते हैं कारण।

Hinduism is not just a doctrine, it is a way of living : हिंदू धर्म मात्र सिद्धांत नहीं, जीवन जीने का मार्ग है। इसके अन्य धर्मों की तरह किसी गुरु, ईश्वर या व्यक्ति विशेष ने नहीं बनाया है। इसमें विभिन्न ऋषि, मुनि, देवता, राक्षस, मनुष्य और अवतारों ने भी अपनी आहूति दी है। सभी के संयुक्त ज्ञान और अनुभव का निचोड़ है हिंदू धर्म। यही कारण है कि इसमें कई बार विरोधाभास भी दिखता है। यह इसकी कमी नहीं विशेषता है। वसुधैव कुटुंबकम् के साथ अनेकता में एकता का अद्भुत संगम है हिंदू या सनातन धर्म। सभी विचारों को मान्यता देने के साथ ही सम्मान भी दिया जाता है। अपने विश्वास, रुचि और क्षमता के अनुसार लोगों को अपने मार्ग चुनने की पूरी स्वतंत्रता है। इसमें पाप-पुण्य और स्वर्ग-नर्क को मान्यता दी गई है तो कर्म और उसके फल के सिद्धांत भी स्वीकार्य हैं।

कर्म करने की स्वतंत्रता मात्र मनुष्यों को

सनातन धर्म के अनुसार सृष्टि में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे कर्म करने की स्वतंत्रता है। जब वह कर्म करेगा तो उसका फल भी भोगेगा। ऐसे में सनातन धर्म मनुष्यों को वह मार्ग बताता है जिस पर चल कर वह लक्ष्य पा ले। विश्व का यह विरला धर्म है जिसमें भौतिक सुख के साथ ही मोक्ष पाने का मार्ग बताया गया है। यह वसुधैव कुटुंबकम् के साथ प्रकृति संरक्षण के सिद्धांत को मानता है। वैदिक युग के बाद भी काफी समय तक इसमें कर्मकांड का पाखंड नहीं के बराबर था। इसमें मंदिर, मूर्ति पूजा जैसी व्यवस्था भी नहीं थी। समय के साथ-साथ यह जुड़ती गई। साथ ही मनीषियों ने कुरीतियों के विरुद्ध आवाज भी उठाई। उसे ठीक किया और पुनः सही मार्ग दिखाया। यही कारण है कि इसमें कई मार्ग नजर आते हैं। हालांकि उनकी विवेचना करें तो सभी का लक्ष्य एक है, संतुलित जीवन जीना।

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सनातन धर्म के चार मुख्य मत

हिंदू धर्म मात्र सिद्धांत नहीं है। इस पर ऋषियों ने विज्ञान की तरह इसमें भी गहन शोध किया है। वर्तमान में प्रचलित विचारों को देखें तो उस आधार पर चार अधिक प्रचलित मत हैं। वे हैं- वैष्णव (विष्णु को ही परम ब्रह्म मानते हैं) शैव (शिव को ही सर्वेसर्वा मानने के साथ ही प्राकृतिक जीवन पर जोर), शाक्त (मातृ शक्ति को परम शक्ति मानते हैं) और स्मार्त (देवी-देवताओं को विभिन्न रूपों के परमब्रह्म का अंश मानते हैं)। प्राचीनकाल में इन मतावलंबियों के जोरदार लड़ाई भी होते रहने के संकेत मिले हैं। बाद में मनीषियों के नए सिद्धांत के बाद युद्ध समाप्त हो गए। सभी मतावलंबियों ने एक-दसरे के मत को स्वीकार कर लिया। अब अधिकतर हिंदू मत के विवाद से ऊपर हैं। बलि पूजा करने वाले विष्णु की भी पूजा करते हैं। इसी तरह विष्णु की पूजा करने वाले शक्ति की भी उपासना करते हैं।

कुछ प्रमुख सिद्धांत और विचार

ईश्वर एक और सर्वव्यापी हैं। उनसे डरें नहीं, प्रेम करें। वे करुणानिधान और भक्त वत्सल हैं। धर्म की रक्षा के लिए वे बार-बार अवतार (जन्म) लेते हैं। परोपकार पुण्य और दूसरों को कष्ट देना पाप है। मातृ शक्ति किसी भी रूप में हो, पूजनीय है। पूरा विश्व अपना है, कुटुंब है। जीव मात्र की सेवा परमात्मा की सेवा है। प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता। प्रकृति से जुड़े पर्व-त्योहार खुशियों व उल्लास से जुड़े हैं। अलग-अलग देवी-देवता के बाद भी परम ब्रह्म एक हैं। एक ही शक्ति ब्रह्मांड को बनाती, संचालित करती और नष्ट करती है। विश्व के कण-कण में वही शक्ति विराजमान है। अतः हर प्राणी व वस्तु को उसी का अंश समझना चाहिए। सब उसी शक्ति से निकलते और फिर विलीन हो जाते हैं। वह शक्ति, ऊर्जा व ब्रह्म वाक्य ऊं है। उसकी गूंज पूरे ब्रह्मांड को गूंजायमान करती रहती है।

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