वर्ण व्यवस्था के पतन से मिटी सोने की चिड़िया की पहचान

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वर्ण व्यवस्था के पतन से मिटी सोने की चिड़िया की पहचान
वर्ण व्यवस्था के पतन से मिटी सोने की चिड़िया की पहचान।

Identity of the erased gold bird due to the collapse of Varn : वर्ण व्यवस्था के पतन से मिटी सोने की चिड़िया की पहचान। बात सुनने में थोड़ी अटपटी है लेकिन सच है। वर्ण व्यवस्था का अर्थ जन्म से किसी जाति विशेष का होना नहीं है। इसका अर्थ है कि कार्य के आधार पर लोगों का बंटवारा। विदेशी आक्रांताओं द्वारा प्राचीन ग्रंथों में फेरबदल से अर्थ का अनर्थ हो गया है। लोग मनु स्मृति से घृणा करने लगे हैं। वास्तव में उसका मौजूदा रूप स्वीकार्य नहीं हो सकता है। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि मनु स्मृति में मनगढ़ंत बातें जोड़कर उसका मूल भाव ही खत्म कर दिया गया है। वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मणों को सम्मान दिया गया तो बदले में वे समाज को उससे अधिक देते थे। इसी तरह क्षत्रिय स्वयं खतरों में रहकर समाज के बाकी लोगों को शांति और सुकून देते थे।

ब्राह्मणों के लिए पुरोहित का कार्य अच्छा नहीं

प्राचीनकाल में ब्राह्मणों के लिए पुरोहित का कार्य अच्छा नहीं माना जाता था। ब्रह्मा ने जब महर्षि वशिष्ठ को सूर्यवंश का पुरोहित (कुलगुरु) बनने का आदेश दिया तो उन्होंने इसे निंदित कहकर मना कर दिया था। तब ब्रह्मा ने उन्हें समझाया कि उस कुल में भगवान अवतार लेंगे। इससे उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा। तब जाकर वे कुलगुरु बनने के लिए तैयार हुए। ब्राह्मण का कार्य समाजहित में निरंतर शोध करना और शिक्षा देना था। वे बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देते थे। बदले में जीने लायक सामग्री के साथ वन में रहते थे। क्षत्रियों का कार्य भी कम कठिन नहीं था। वेद के मूल भाव को देखें तो संदेश साफ है। ‘वर्णो वृणोतेः’ अर्थात वरण करने से वर्ण बनता है। मतलब जन्म से वर्ण नहीं बनता था। वर्तमान व्यवस्था विदेशी आक्रांताओं की देन है। वर्ण व्यवस्था के पतन ने देश के गौरव को खत्म कर दिया।

वर्ण व्यवस्था के बारे में अधिक जानने के लिए लिंक पर कर क्लिक करें- मनु स्मृति : सामाजिक समरसता का देती है संदेश

चाणक्य और सेल्युकस का प्रसंग

वर्ण व्यवस्था को स्पष्ट करने के लिए पढ़ें चाणक्य व सेल्युकस का एक प्रसंग। सिकंदर की मौत के बाद उसके सेनापति सेल्युकस ने उसके जीते गए राज्यों का खुद को राजा घोषित कर दिया था। जब वह यूनान गया तो वहां उसका भव्य स्वागत हुआ। स्वागत समारोह में राजनीति के प्रकांड विद्वान अरस्तु भी थे। उन्होंने सेल्युकस से पूछा- सिकंदर तो कभी नहीं हारे। आप कैसे हार गए? सेल्युकस ने गर्व से उत्तर दिया कि अपने जामाता चंद्रगुप्त मौर्य के शौर्य के कारण उन्हें हारना पड़ा। यह सुनकर अरस्तु हंस पड़े। उन्होंने कहा कि आपको अपनी हार का कारण भी नहीं मालूम है। हार का कारण चंद्रगुप्त नहीं, चाणक्य हैं। सेल्युकस यह सुनकर चौंक गया। उसे काफी आश्चर्य हुआ। अरस्तु की बात गलत नहीं होती थी। फिर भी वह इसे पचा नहीं पा रहा था। तब उसने चाणक्य से मिलने की ठानी।

व्यापारी के वेश में भारत पहुंचा सेल्युकस

उसने सच जानने की योजना बनाई। इसलिए उसने छद्म रूप बनाया और व्यापारियों के दल के रूप में चल पड़ा। उसने खैबर दर्रे के पास से भारत की सीमा में प्रवेश किया। वर्तमान में यह स्थान अफगानिस्तान से सटा है। वह दल महीनों यात्रा कर पाटलिपुत्र पहुंचा। यहां पहुंचने के बाद अपनी पहचान उजागर की। चंद्रगुप्त ने उसका भव्य स्वागत किया। शाम को सेल्युकस ने चंद्रगुप्त से कहा कि उसका इस बार भारत आने का कारण चाणक्य हैं। वह चाणक्य से मिलना चाहता है। चंद्रगुप्त ने कहा कि इसके लिए अनुमति लेनी होगी। सेल्युकस ने आश्चर्य से पूछा कि सम्राट को भी अनुमति लेनी होगी? खैर, अनुमति मिल गई। सेल्युकस के मन में चाणक्य की विराट छवि बनी। लगा कि किसी आलीशान महल में शानदार जगह पर वह रहते होंगे। तय समय पर दोनों चाणक्य से मिलने चल पड़े।

कुटिया में रहता था देश का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति

वर्ण व्यवस्था के पतन के मर्म को समझने के लिए यह प्रसंग सटीक है। सम्राट का रथ शहर के बाहर नदी तट के किनारे वन में पहुंचा। सेल्युकस आश्चर्यचकित था। वहां दूर-दूर तक कोई महल नहीं था। थोड़ी दूर पर एक कुटिया थी। दोनों पैदल चल पड़े। चंद्रगुप्त ने अंदर सामान्य वस्त्र पहने तेजस्वी व्यक्ति से अंदर आने की अनुमति मांगी। सेल्युकस का आश्चर्य बढ़ता जा रहा था। अंदर पहुंच कर चंद्रगुप्त ने सेल्युकस का चाणक्य से परिचय कराया और बताया कि मेरे ससुर आपसे मिलने यूनान से यहां आए हैं। चाणक्य ने कहा कि अब मेरी चिंता दूर हुई। यह सुनकर सेल्युकस चौंका। उसने पूछा-कैसी चिंता! चाणक्य ने दस्तावेज मंगवाए। सेल्युकस ने जब खैबर दर्रे से भारत में कदम रखा था, उस समय से पाटलिपुत्र पहुंचने तक की हर बात दस्तावेज में दर्ज थी। चाणक्य के गुप्तचर वहीं से नजर रख रहे थे।

चाणक्य के पास थी सेल्युकस की यात्रा की हर सूचना

आचार्य चाणक्य ने कहा कि आगंतुक विदेशी है। इस कारण उस पर नजर रखनी जरूरी थी। आपने पूरी यात्रा के दौरान कभी भारत आगमन का उद्देश्य स्पष्ट नहीं किया था। इसलिए मैं चिंतित और सतर्क था। अब यह जानकार कि विदेशी आगंतुक चंद्रगुप्त के ससुर हैं। उनकी मंशा चाणक्य से मिलने व जानने की थी। अतः चिंता खत्म हो गई है। सेल्युकस समझ गया कि वास्तव में उसकी हार का कारण चाणक्य ही हैं। उसने कहा जब कि जब तक वन में रह कर आप जैसे ज्ञानी देश की चिंता करते रहेंगे, तब तक इस देश का बाल भी बांका नहीं होगा।

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